Tuesday, November 4, 2025

गोलेन्द्रवाद क्या है? गोलेन्द्रवाद का अर्थ और परिभाषा, गोलेन्द्रवाद का विभिन्न वादों से तुलनात्मक अध्ययन / गोलेन्द्रवाद : एक समावेशी मानवतावादी दर्शन

 गोलेन्द्रवाद क्या है? गोलेन्द्रवाद का अर्थ और परिभाषा, गोलेन्द्रवाद का विभिन्न वादों से तुलनात्मक अध्ययन :-

*गोलेन्द्रवाद : एक समावेशी मानवतावादी दर्शन*

गोलेन्द्रवाद का सूत्र वाक्य है –
1.
“गोलेन्द्रवाद (Golendrism) मानवीय जीवन जीने की पद्धति है, जो जाति, धर्म, भाषा और भूगोल से निरपेक्ष, समय-सापेक्ष वैज्ञानिक दर्शन के साथ मानवतावाद पर केंद्रित है।”
2.
“मित्रता में आधार, मुहब्बत में विस्तार, मानवता में सार और मुक्ति में उद्गार— यही है गोलेन्द्रवाद का चारत्व।”
3.
“मित्रता उसका मूलाधार है, मुहब्बत उसका प्रवहमान हृदय; मानवता उसका सत्यस्वरूप है और मुक्ति उसकी परम परिणति— यही गोलेन्द्रवाद का चतुष्कोण, जीवन और सृष्टि का समग्र दर्शन है।”
4.
“मित्रता गोलेन्द्रवाद की सामाजिक ऊर्जा है, मुहब्बत उसकी भावात्मक तरंग; मानवता उसका नैतिक तंत्र है और मुक्ति उसकी चेतना का उत्कर्ष— जहाँ विज्ञान, विवेक और संवेदना एक ही सत् में विलीन हो जाते हैं।”

यह दर्शन उन तमाम विचारधाराओं की श्रेष्ठतम मानवीय परंपराओं का समन्वय है, जिन्होंने सदियों से मनुष्य को स्वतंत्र, समान और गरिमामय बनाने की कोशिश की।


१. भूमिका : गोलेन्द्रवाद का उद्भव:-
‘गोलेन्द्रवाद’ (Golendrism) आधुनिक युग की एक समन्वयवादी और मानवतावादी विचारधारा है, जिसका सूत्रपात कवि-दार्शनिक गोलेन्द्र पटेल के चिंतन और साहित्य से हुआ। यह दर्शन जाति, धर्म, भाषा, लिंग और भूगोल से निरपेक्ष, समय-सापेक्ष वैज्ञानिक मानवतावाद का प्रतिपादन करता है। गोलेन्द्रवाद का उद्देश्य न किसी एक परंपरा का विरोध है, न अंधानुकरण; यह विभिन्न वादों के मध्य सेतु है — एक ऐसा पुल, जो विज्ञान, करुणा, समानता और स्वतंत्रता को जोड़ता है।

गोलेन्द्रवाद का मूल संदेश है —
> “मित्रता में आधार, मुहब्बत में विस्तार, मानवता में सार और मुक्ति में उद्गार — यही है गोलेन्द्रवाद।”

यह दर्शन ‘जीवन जीने की पद्धति’ है — कोई कट्टर विचारधारा नहीं।
इसमें बौद्ध करुणा, अंबेडकर की समानता, मार्क्स की सामाजिक आलोचना, गांधी की संवेदना और आधुनिक विज्ञान की दृष्टि — सब एक सूत्र में गुँथे हैं।
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२. गोलेन्द्रवाद का अर्थ और परिभाषा :-
(क) शाब्दिक अर्थ:
‘गोलेन्द्रवाद’ शब्द दो भागों से बना है — गोलेन्द्र (कवि का नाम, जिसका दार्शनिक अर्थ है “पूर्ण चेतन मानव”) और वाद (दर्शन या विचारधारा)।
इस प्रकार इसका अर्थ हुआ —
> “मानव की पूर्णता और चेतना पर आधारित एक समावेशी जीवन-दर्शन।”

(ख) परिभाषा:
गोलेन्द्रवाद एक मानवतावादी, वैज्ञानिक और समय-सापेक्ष दर्शन है, जो कहता है कि —
> “मनुष्य ही सृजन का केंद्र है; उसका उद्धार न स्वर्ग में है, न वर्ग में, बल्कि उसकी चेतना, करुणा और कर्म में है।”

(ग) मुख्य सिद्धांत:
1. जाति, धर्म, भाषा, भूगोल से निरपेक्ष मानवता।
2. समय और विज्ञान के साथ विकसित होने वाला तर्कशील दृष्टिकोण।
3. प्रेम, मित्रता और सह-अस्तित्व को सामाजिक आधार बनाना।
4. मुक्ति को सामाजिक समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जोड़ना।
5. साहित्य और दर्शन को जनकल्याण का साधन मानना।
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३. गोलेन्द्रवाद का विभिन्न वादों से तुलनात्मक अध्ययन:-
नीचे प्रत्येक वाद की मूल भावना और गोलेन्द्रवाद से उसकी समानता व भिन्नता का संक्षिप्त परंतु सारगर्भित विश्लेषण प्रस्तुत है।

(1) मार्क्सवाद बनाम गोलेन्द्रवाद:-
मार्क्सवाद वर्ग-संघर्ष और आर्थिक समानता का सिद्धांत है।
गोलेन्द्रवाद इसमें मानवतावाद जोड़ता है —
जहाँ वर्ग से ऊपर मानव का अस्तित्व और करुणा रखी जाती है।

बिंदु मार्क्सवाद गोलेन्द्रवाद

केंद्र आर्थिक ढांचा मानव चेतना
उपाय क्रांति संवाद और परिवर्तन
लक्ष्य वर्गहीन समाज मानवतामूलक समाज
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(2) गांधीवाद बनाम गोलेन्द्रवाद:-

गांधीवाद का आधार है अहिंसा, सत्य और आत्मसंयम।
गोलेन्द्रवाद इन मूल्यों को बनाए रखकर धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक बना देता है।

| समानता | मुहब्बत और अहिंसा | | भिन्नता | गांधी धार्मिक थे; गोलेन्द्रवाद धर्म-निरपेक्ष। |
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(3) लोहियावाद बनाम गोलेन्द्रवाद:-
डॉ. राममनोहर लोहिया का दर्शन ‘समानता और विकेन्द्रण’ पर केंद्रित था।
गोलेन्द्रवाद भी असमानता के विरोध में है, परंतु इसका आधार सामाजिक करुणा और वैज्ञानिक नीति है।
लोहिया समाजवादी थे; गोलेन्द्रवाद ‘मानवतावादी समाजवाद’ है।
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(4) अंबेडकरवाद बनाम गोलेन्द्रवाद:-
अंबेडकरवाद सामाजिक न्याय, समानता और संविधान-आधारित मुक्ति का दर्शन है।
गोलेन्द्रवाद इसे और व्यापक बनाकर जाति से ऊपर ‘मनुष्य की सार्वभौमिकता’ तक ले जाता है।
दोनों जातिवाद के घोर विरोधी हैं; अंतर यह कि अंबेडकरवाद कानूनी है, गोलेन्द्रवाद दार्शनिक।
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(5) स्यादवाद बनाम गोलेन्द्रवाद:-
जैन स्यादवाद कहता है — सत्य सापेक्ष है।
गोलेन्द्रवाद भी समय-सापेक्षता को मानता है, परंतु यह सत्य को अनुभव और विज्ञान के साथ जोड़ता है।
स्यादवाद तर्कशास्त्रीय है, गोलेन्द्रवाद सामाजिक-वैज्ञानिक।
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(6) समाजवाद बनाम गोलेन्द्रवाद:-
समाजवाद संपत्ति के समान वितरण का सिद्धांत है।
गोलेन्द्रवाद समाजवाद का मानवीकरण करता है —
यह कहता है, समानता का अर्थ केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मानवीय अवसरों की समानता है।
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(7) बौद्ध दर्शन बनाम गोलेन्द्रवाद:-
दोनों का केंद्र है — दुख-निवारण और करुणा।
बुद्ध ने मध्यम मार्ग दिया, गोलेन्द्रवाद उसे वैज्ञानिक मार्ग में परिवर्तित करता है।
गोलेन्द्रवाद बुद्ध को अपना ‘प्रथम नवरत्न’ मानता है।
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(8) जैन दर्शन बनाम गोलेन्द्रवाद:-
जैन दर्शन आत्मसंयम और अहिंसा पर आधारित है।
गोलेन्द्रवाद कहता है — अहिंसा तभी सार्थक है जब वह सामाजिक न्याय से जुड़ी हो।
अर्थात् केवल आत्म-शुद्धि नहीं, बल्कि सामूहिक मुक्ति भी।
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(9) मनोविश्लेषणवाद बनाम गोलेन्द्रवाद:-
फ्रायड का मनोविश्लेषण व्यक्ति के अवचेतन की व्याख्या करता है।
गोलेन्द्रवाद इस मनोविज्ञान को समाज से जोड़ देता है —
वह कहता है कि अवचेतन दमन केवल व्यक्ति नहीं, सामाजिक संरचना भी उत्पन्न करती है।
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(10) आदर्शवाद (प्लेटो, अरस्तू, विवेकानंद, अरविंद घोष) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
आदर्शवाद विचार को वस्तु से श्रेष्ठ मानता है।
गोलेन्द्रवाद विचार और यथार्थ के बीच संतुलन चाहता है।
विवेकानंद और अरविंद के “मानव-दैवीकरण” का विकास रूप गोलेन्द्रवाद का “मानव-पूर्णत्व” है।
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(11) प्रकृतिवाद (रुसो, स्पेंसर, टैगोर) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
प्रकृतिवाद का सिद्धांत है — प्रकृति के अनुरूप जीवन।
गोलेन्द्रवाद इसे आधुनिक बनाता है —
> “प्रकृति की रक्षा, विज्ञान की दृष्टि और मानवता की वृद्धि”
इसी का त्रिकोण गोलेन्द्रवाद में है।
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(12) प्रयोजनवाद (जॉन डीवी, क्लिपैट्रिक) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
प्रयोजनवाद कहता है कि सत्य वही है जिसका व्यवहारिक उपयोग हो।
गोलेन्द्रवाद भी उपयोगिता को मानता है, परंतु उसमें नैतिक और मानवतावादी प्रयोजन जोड़ता है।
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(13) अस्तित्ववाद (कीर्केगार्ड, हाइडेगर, नीत्शे, सार्त्र) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
अस्तित्ववाद व्यक्ति की स्वतंत्रता और चयन की बात करता है।
गोलेन्द्रवाद अस्तित्ववाद से सहमत है, पर कहता है —
> “स्वतंत्रता तब सार्थक है जब वह दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान करे।”
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(14) अद्वैतवाद (शंकराचार्य) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
अद्वैतवाद में ब्रह्म और जीव एक हैं।
गोलेन्द्रवाद इस एकत्व को सामाजिक स्तर पर लाता है —
> “मनुष्य-मनुष्य में भेद नहीं — यही लौकिक अद्वैत है।”

(15) विशिष्टाद्वैतवाद (रामानुजाचार्य) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
रामानुज ने भक्ति और ईश्वर-सापेक्ष अद्वैत दिया।
गोलेन्द्रवाद भक्ति को “मानव-प्रेम” में रूपांतरित करता है — ईश्वर की जगह मानवता रखता है।
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(16) द्वैतवाद (माधवाचार्य) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
माधवाचार्य का द्वैत ईश्वर और जीव में भेद मानता है।
गोलेन्द्रवाद कहता है — यह भेद तभी तक है जब तक ज्ञान और करुणा का अभाव है।
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(17) शुद्धाद्वैतवाद (वल्लभाचार्य) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
वल्लभाचार्य ने ‘लीला’ को जीवन की सहजता कहा।
गोलेन्द्रवाद भी आनंदवाद को मानता है —
> “मुक्ति का मार्ग संघर्ष में नहीं, सृजन में भी है।”
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(18) द्वैताद्वैतवाद (निंबार्काचार्य) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
निंबार्क का दर्शन ‘एकत्व और भेद’ दोनों को स्वीकार करता है।
गोलेन्द्रवाद इसी संश्लेषण को सामाजिक संदर्भ में उतारता है —
भिन्नता में एकता, एकता में भिन्नता।
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(19) स्वच्छंदतावाद (श्रीधर पाठक) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
स्वच्छंदतावाद भावनाओं की स्वतंत्रता चाहता है।
गोलेन्द्रवाद उसे जिम्मेदारी के साथ जोड़ता है —
> “स्वतंत्रता का अर्थ अनुशासित करुणा है।”
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(20) छायावाद (जयशंकर प्रसाद) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
छायावाद आत्मा की सौंदर्य-यात्रा है।
गोलेन्द्रवाद कहता है — सौंदर्य तभी शाश्वत है जब वह लोक-सौंदर्य बने।
यह छायावाद का लोकवादी रूप है।
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(21) हालावाद (हरिवंश राय बच्चन) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
हालावाद ‘जीवन का रस’ है —
गोलेन्द्रवाद भी जीवन के उत्सव को स्वीकारता है, पर उसमें संघर्ष और समाज जोड़ देता है।
“मदिरा नहीं, मुक्ति” इसका प्रतीक है।
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(22) प्रयोगवाद (‘अज्ञेय’) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
प्रयोगवाद आत्मानुभूति का दर्शन है।
गोलेन्द्रवाद कहता है — आत्मा का अनुभव तभी सार्थक है जब वह सामूहिक अनुभव बने।
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(23) प्रपद्यवाद (नकेनवाद – नलिन विलोचन शर्मा आदि) बनाम गोलेन्द्रवाद:-
नकेनवाद शुद्ध साहित्यिक शास्त्रीयता का आग्रह करता है।
गोलेन्द्रवाद उसे जीवन से जोड़ता है —
> “साहित्य तर्क का नहीं, समाज का सेवक है।”
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(24) तर्कवाद बनाम गोलेन्द्रवाद:-
तर्कवाद बुद्धि पर आधारित है।
गोलेन्द्रवाद बुद्धि के साथ करुणा जोड़ता है —
> “तर्क बिना करुणा अंधा है, करुणा बिना तर्क मूक।”
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४. समापन : गोलेन्द्रवाद की विशिष्टता और समसामयिक प्रासंगिकता:-
इन सभी तुलनाओं से स्पष्ट है कि गोलेन्द्रवाद संश्लेषणात्मक दर्शन (Synthetic Philosophy) है —
जो किसी वाद का विरोध नहीं करता, बल्कि सभी के सार को आत्मसात कर मानव-केंद्रित नये युग का दर्शन रचता है।

यह मार्क्स की चेतना, बुद्ध की करुणा, अंबेडकर का न्याय, गांधी की संवेदना और विज्ञान का तर्क —
सभी को जोड़कर कहता है —
> “मानवता ही धर्म है, करुणा ही नीति है, मुक्ति ही उद्देश्य है।”

21वीं सदी के कृत्रिम बुद्धि, जलवायु संकट और सामाजिक असमानता के युग में —
गोलेन्द्रवाद एक नयी दिशा देता है :
> “विज्ञान में सत्य, समाज में समानता, और जीवन में प्रेम।”

संक्षिप्त निष्कर्ष:-
गोलेन्द्रवाद कोई संकीर्ण ‘वाद’ नहीं, बल्कि ‘मानव-मुक्ति का विज्ञान’ है।
यह कहता है —
> “ना द्वैत, ना अद्वैत — अब केवल मानवत्व का एकत्व।”
***

गोलेन्द्रवाद की परिभाषा:-

गोलेन्द्रवाद की परिभाषा पटेल की रचनाओं से ली जा सकती है: "गोलेन्द्रवाद (Golendrism) मानवीय जीवन जीने की पद्धति है, जो जाति, धर्म, भाषा और भूगोल से निरपेक्ष, समय-सापेक्ष वैज्ञानिक दर्शन के साथ मानवतावाद पर केंद्रित है।" यह एक समावेशी मानवतावाद है, जो निम्न सिद्धांतों पर टिका है:

1. **निरपेक्षता**: जाति-धर्म-भाषा-भूगोल से मुक्ति, जो व्यक्ति को 'श्रमजीवी मानव' के रूप में देखता है।
2. **समय-सापेक्षता**: दर्शन स्थिर नहीं; विज्ञान और तकनीक के साथ विकसित (जैसे AI युग में डिजिटल समानता)।
3. **वैज्ञानिक दृष्टिकोण**: अंधविश्वास का खंडन, तर्क और प्रमाण पर जोर।
4. **मानवतावादी केंद्र**: करुणा, समानता और कल्याण सर्वोपरि। पटेल कहते हैं, "गोलेन्द्रवाद मानवतावादी दर्शन है।"

इसकी व्यावहारिकता 'मेनिफेस्टो' में है, जिसमें 'नवरत्न' हैं: बुद्ध, कबीर, रैदास, तुकोबा, फुले, अंबेडकर, पेरियार, कार्ल मार्क्स, राहुल सांकृत्यायन। ध्वज (नीला-पारदर्शी पृष्ठभूमि पर चारत्व प्रतीक) समानता का प्रतीक है। गोलेन्द्रवाद उत्तर-आधुनिक बहुलता को अपनाता है, लेकिन तर्कवाद से बंधा रहता है।

#गोलेन्द्रवाद का तुलनात्मक अध्ययन:-
गोलेन्द्रवाद को विभिन्न वादों से तुलना करने पर इसकी संश्लेषणात्मक प्रकृति स्पष्ट होती है – यह अन्य दर्शनों को अवशोषित करता है, लेकिन निरपेक्ष मानवतावाद से अलग। प्रत्येक तुलना संक्षिप्त है:

1. **मार्क्सवाद**: मार्क्सवाद वर्ग-संघर्ष और भौतिकवाद पर केंद्रित है, जबकि गोलेन्द्रवाद मानवतावादी मुक्ति पर। समानता: आर्थिक असमानता का विरोध। भिन्नता: मार्क्स क्रांति-केंद्रित, गोलेन्द्रवाद संवाद-वैज्ञानिक। गोलेन्द्रवाद मार्क्स को नवरत्न में समाहित करता है, लेकिन हिंसा अस्वीकार।

2. **गांधीवाद**: गांधीवाद अहिंसा और स्वदेशी पर, गोलेन्द्रवाद मुहब्बत और मानवता पर। समानता: अहिंसा और समानता। भिन्नता: गांधी धार्मिक, गोलेन्द्र निरपेक्ष-वैज्ञानिक। गोलेन्द्रवाद गांधी को पूरक मानता है, लेकिन समय-सापेक्ष।

3. **लोहियावाद**: लोहिया का समाजवाद पिछड़े वर्गों पर केंद्रित, गोलेन्द्रवाद समग्र मानवतावाद। समानता: सामाजिक न्याय। भिन्नता: लोहिया राजनीतिक, गोलेन्द्र दार्शनिक। गोलेन्द्रवाद लोहिया की समानता को वैज्ञानिक बनाता है।

4. **अंबेडकरवाद**: अंबेडकरवाद दलित उत्थान और संवैधानिक समानता पर, गोलेन्द्रवाद निरपेक्ष समानता। समानता: जाति-विरोध। भिन्नता: अंबेडकर कानूनी, गोलेन्द्र वैज्ञानिक। नवरत्न में अंबेडकर प्रमुख।

5. **स्यादवाद (जैन)**: स्यादवाद सापेक्ष सत्य पर, गोलेन्द्रवाद समय-सापेक्षता पर। समानता: बहुल दृष्टि। भिन्नता: स्यादवाद आध्यात्मिक, गोलेन्द्र वैज्ञानिक। गोलेन्द्रवाद जैन अहिंसा को मानवतावाद में विलय करता।

6. **समाजवाद**: समाजवाद सामूहिक स्वामित्व पर, गोलेन्द्रवाद व्यक्तिगत मुक्ति। समानता: कल्याण। भिन्नता: समाजवाद राज्य-केंद्रित, गोलेन्द्र व्यक्ति-केंद्रित।

7. **बौद्ध दर्शन**: बौद्ध चार आर्य सत्य और करुणा पर, गोलेन्द्रवाद मित्रता-मुक्ति पर। समानता: दुख-निवारण। भिन्नता: बौद्ध निर्वाण, गोलेन्द्र वैज्ञानिक मुक्ति। बुद्ध नवरत्न प्रथम।

8. **जैन दर्शन**: जैन अहिंसा और कर्म पर, गोलेन्द्रवाद मुहब्बत पर। समानता: अहिंसा। भिन्नता: जैन आध्यात्मिक, गोलेन्द्र मानवतावादी। गोलेन्द्रवाद जैन तर्क को अपनाता।

9. **मनोविश्लेषणवाद**: फ्रायडियन दमन-विश्लेषण पर, गोलेन्द्रवाद मुक्ति के उद्गार पर। समानता: आंतरिक संघर्ष हल। भिन्नता: मनोविश्लेषण व्यक्तिगत, गोलेन्द्र सामाजिक-वैज्ञानिक।

10. **आदर्शवाद (प्लेटो, अरस्तू, विवेकानंद, अरविंद घोष)**: आदर्शवाद रूप-लोक पर, गोलेन्द्रवाद मानव-सार पर। समानता: नैतिक आदर्श। भिन्नता: प्लेटो/अरस्तू दार्शनिक, विवेकानंद/अरविंद आध्यात्मिक; गोलेन्द्र निरपेक्ष। गोलेन्द्रवाद विवेकानंद की सेवा को वैज्ञानिक बनाता।

11. **प्रकृतिवाद (रुसो, स्पेंसर, टैगोर)**: प्रकृतिवाद प्रकृति-केंद्रित, गोलेन्द्रवाद मानव-केंद्रित। समानता: स्वाभाविक विकास। भिन्नता: रुसो/स्पेंसर विकासवादी, टैगोर काव्यात्मक; गोलेन्द्र समय-सापेक्ष।

12. **प्रयोजनवाद (जॉन ड्यूई, क्लैपारेड)**: प्रयोजनवाद अनुभव-आधारित शिक्षा पर, गोलेन्द्रवाद जीवन-पद्धति। समानता: व्यावहारिकता। भिन्नता: प्रयोजन शैक्षिक, गोलेन्द्र समग्र। गोलेन्द्रवाद इसे मुक्ति में विलय करता।

13. **अस्तित्ववाद (कीर्केगार्ड, हाइडेगर, नीत्शे, सार्त्र)**: अस्तित्ववाद व्यक्तिगत अस्तित्व पर, गोलेन्द्रवाद सामूहिक मुक्ति। समानता: स्वतंत्रता। भिन्नता: नीत्शे/सार्त्र नास्तिक, गोलेन्द्र मानवतावादी। गोलेन्द्रवाद हाइडेगर की प्रामाणिकता को अपनाता।

14. **अद्वैतवाद (शंकराचार्य)**: अद्वैत ब्रह्म-माया पर, गोलेन्द्रवाद मानव-सार। समानता: एकता। भिन्नता: शंकर आध्यात्मिक, गोलेन्द्र वैज्ञानिक। गोलेन्द्रवाद अद्वैत को निरपेक्ष बनाता।

15. **विशिष्टाद्वैतवाद (रामानुजाचार्य)**: विशिष्टाद्वैत भक्ति-एकता पर, गोलेन्द्रवाद मुहब्बत। समानता: समर्पण। भिन्नता: रामानुज धार्मिक, गोलेन्द्र निरपेक्ष।

16. **द्वैतवाद (माधवाचार्य)**: द्वैत जीव-ईश्वर द्वंद्व पर, गोलेन्द्रवाद मित्रता। समानता: संबंध। भिन्नता: माधव भक्ति, गोलेन्द्र वैज्ञानिक।

17. **शुद्धाद्वैतवाद (वल्लभाचार्य)**: शुद्धाद्वैत कृष्ण-भक्ति पर, गोलेन्द्रवाद मुहब्बत। समानता: प्रेम। भिन्नता: वल्लभ आध्यात्मिक, गोलेन्द्र मानवतावादी।

18. **द्वैताद्वैतवाद (निम्बार्क)**: द्वैताद्वैत एकता-द्वंद्व पर, गोलेन्द्रवाद चारत्व। समानता: संतुलन। भिन्नता: निम्बार्क धार्मिक, गोलेन्द्र समय-सापेक्ष।

19. **स्वच्छंदतावाद (श्रीधर पाठक)**: स्वच्छंदतावाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर, गोलेन्द्रवाद मुक्ति। समानता: स्वच्छंदता। भिन्नता: पाठक साहित्यिक, गोलेन्द्र दार्शनिक।

20. **छायावाद (जयशंकर प्रसाद)**: छायावाद काव्यात्मक रहस्यवाद पर, गोलेन्द्रवाद मुहब्बत। समानता: भावुकता। भिन्नता: प्रसाद रोमांटिक, गोलेन्द्र वैज्ञानिक।

21. **हालावाद (हरिवंश राय बच्चन)**: हालावाद व्यक्तिगत अनुभव पर, गोलेन्द्रवाद उद्गार। समानता: आत्मकथा। भिन्नता: बच्चन भावनात्मक, गोलेन्द्र सामाजिक।

22. **प्रयोगवाद (अज्ञेय)**: प्रयोगवाद नवीन प्रयोग पर, गोलेन्द्रवाद समय-सापेक्षता। समानता: नवीनता। भिन्नता: अज्ञेय साहित्यिक, गोलेन्द्र जीवन-केंद्रित।

23. **प्रपंचवाद (नकेनवाद: नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार, नरेश)**: प्रपंचवाद वास्तविकता-माया पर, गोलेन्द्रवाद मानव-सार। समानता: विश्लेषण। भिन्नता: नकेन दार्शनिक, गोलेन्द्र व्यावहारिक।

24. **तर्कवाद**: तर्कवाद तर्क-प्रमाण पर, गोलेन्द्रवाद वैज्ञानिक दृष्टि। समानता: तर्क। भिन्नता: तर्कवाद शुद्ध बौद्धिक, गोलेन्द्र मानवतावादी। गोलेन्द्रवाद इसे चारत्व में समाहित करता।
***

गोलेन्द्रवाद आधुनिक विखंडन के दौर में एक पुल है – विभिन्न वादों को जोड़ते हुए मानव को केंद्र में रखता है। यह न केवल भारत, बल्कि वैश्विक मानवतावाद का नया अध्याय है, जहां "मानवता में सार" सर्वोपरि। पटेल की तरह, यह कविता से राजनीति तक फैल सकता है, लेकिन चुनौती है इसकी स्वीकृति। गोलेन्द्रवाद सिखाता है: निरपेक्षता से मुक्ति।

#गोलेन्द्रवाद #Golendrism #गोलेन्द्रवादी

Friday, October 31, 2025

गोलेन्द्रवाद (Golendrism) क्या है?

 ### गोलेन्द्रवाद: एक मानवतावादी दर्शन की यात्रा

#### परिचय: गोलेन्द्रवाद का उदय और संदर्भ

आधुनिक विश्व में विचारधाराओं का जन्म अक्सर सामाजिक विखंडन, सांस्कृतिक संघर्ष और मानवीय मूल्यों की खोज से होता है। ऐसे में 'गोलेन्द्रवाद' (Golendrism) एक उभरती हुई विचारधारा के रूप में सामने आया है, जो जाति, धर्म, भाषा और भूगोल की सीमाओं को पार करते हुए मानवतावाद को केंद्र में स्थापित करती है। यह दर्शन न तो किसी प्राचीन ग्रंथ पर आधारित है और न ही किसी राजनीतिक आंदोलन का हिस्सा; बल्कि यह समकालीन भारत के एक बहुजन कवि और विचारक, गोलेन्द्र पटेल की कलम और चिंतन से जन्मा है। गोलेन्द्र पटेल, जिन्हें हिंदी साहित्य में 'दूसरे कबीर' के रूप में जाना जाता है, एक ऐसे लोककवि हैं जो श्रमजीवी समाज की पीड़ा, सामाजिक अन्याय और मानवीय एकता को अपनी रचनाओं में उकेरते हैं। उनके अनुसार, गोलेन्द्रवाद कोई कठोर सिद्धांत नहीं, बल्कि 'मानवीय जीवन जीने की पद्धति' है – एक ऐसा मार्ग जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समय-सापेक्षता पर आधारित हो।

गोलेन्द्रवाद का उदय 2020 के दशक के मध्य में हुआ, जब भारत जैसे बहुलतावादी समाज में जातिगत हिंसा, धार्मिक ध्रुवीकरण और आर्थिक असमानता चरम पर पहुंच गई। पटेल की कविताएं और सोशल मीडिया अभियान (जैसे @GolendraGyan) के माध्यम से यह विचारधारा फैली। यह दर्शन बौद्ध दर्शन की करुणा, मार्क्सवाद की वर्ग-संघर्ष की आलोचना, गाँधीवाद की अहिंसा और अंबेडकरवाद की समानता को एक सूत्र में पिरोता है। लेकिन यह इनसे अलग है, क्योंकि यह किसी एक विचारक या ग्रंथ पर निर्भर नहीं; बल्कि यह 'समय-सापेक्ष वैज्ञानिक दर्शन' है, जो बदलते युग के अनुसार विकसित होता रहता है।

इस निबंध में हम गोलेन्द्रवाद के अर्थ और परिभाषा को समझेंगे, उसके मूल सिद्धांतों का विश्लेषण करेंगे और फिर इसे विभिन्न प्रमुख वादों – जैसे गाँधीवाद, अंबेडकरवाद, मार्क्सवाद, बौद्धवाद, समाजवाद, राष्ट्रवाद आदि – से तुलना करेंगे। यह तुलना न केवल समानताओं को उजागर करेगी, बल्कि गोलेन्द्रवाद की विशिष्टता को भी स्पष्ट करेगी। अंत में, हम देखेंगे कि यह दर्शन आधुनिक विश्व की चुनौतियों के लिए कितना प्रासंगिक है। 

#### गोलेन्द्रवाद का अर्थ: मानवतावाद की नई व्याख्या

'गोलेन्द्रवाद' शब्द का निर्माण 'गोलेन्द्र' (पटेल का नाम) और 'वाद' (विचारधारा) से हुआ है। इसका शाब्दिक अर्थ है 'गोलेन्द्र की विचारधारा', लेकिन गहराई में यह 'गोल' (पूर्णता) और 'इन्द्र' (ईश्वर या सर्वोच्च शक्ति) का संकेत देता है – अर्थात् मानव जीवन की पूर्णता की खोज। गोलेंद्र पटेल स्वयं इसे परिभाषित करते हैं: "गोलेन्द्रवाद मानवीय जीवन जीने की पद्धति है, जो जाति, धर्म, भाषा और भूगोल से निरपेक्ष, समय-सापेक्ष वैज्ञानिक दर्शन के साथ मानवतावाद पर केंद्रित है।" यहां 'मानवतावाद' (Humanism) का अर्थ है मानव को केंद्र में रखना, जहां व्यक्ति की गरिमा, स्वतंत्रता और समानता सर्वोपरि हैं। यह दर्शन न तो ईश्वर-केंद्रित है (जैसे धार्मिक वाद) और न ही वर्ग-केंद्रित (जैसे मार्क्सवाद); बल्कि यह 'मानव-सार्वभौमिकता' पर जोर देता है।

गोलेन्द्रवाद का मूल अर्थ जीवन की चार आयामों – मित्रता, मुहब्बत, मानवता और मुक्ति – में निहित है। जनकवि गोलेन्द्र पटेल के 'गोलेन्द्रवादी सूत्रवाक्य' में कहा गया है: "मित्रता में आधार, मुहब्बत में विस्तार, मानवता में सार और मुक्ति में उद्गार – यही है गोलेन्द्रवाद का चारत्व।" यहां मित्रता सामाजिक बंधन का आधार है, मुहब्बत भावनात्मक विस्तार, मानवता नैतिक सार और मुक्ति व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रतीक। यह अर्थ आधुनिक मनोविज्ञान से प्रेरित है, जहां व्यक्ति को सामाजिक प्राणी मानते हुए उसके आंतरिक संघर्ष को वैज्ञानिक रूप से हल करने का प्रयास किया जाता है।

परिभाषा के संदर्भ में, गोलेन्द्रवाद को एक 'समावेशी मानवतावाद' कहा जा सकता है। यह दर्शन निम्नलिखित सिद्धांतों पर टिका है:
1. **जाति-धर्म निरपेक्षता**: गोलेन्द्रवाद किसी भी सामाजिक विभाजन को अस्वीकार करता है। पटेल कहते हैं, "गोलेन्द्रवादी दर्शन जाति, धर्म, भाषा एवं भूगोल निरपेक्ष है।" यह समानता का दावा करता है, जहां हर व्यक्ति बिना पूर्वाग्रह के मूल्यांकित हो।
2. **समय-सापेक्षता**: यह दर्शन स्थिर नहीं; यह विज्ञान और तकनीकी प्रगति के साथ विकसित होता है। उदाहरणस्वरूप, AI युग में गोलेन्द्रवाद डिजिटल समानता पर जोर देता है, जबकि प्राचीन काल में यह कृषि-आधारित समाज पर केंद्रित होता।
3. **वैज्ञानिक दृष्टिकोण**: अंधविश्वासों का खंडन करते हुए, यह तर्क और प्रमाण पर आधारित है। पटेल की कविताएं, जैसे संत अय्यंकाली पर आधारित रचना, विद्रोह को वैज्ञानिक विश्लेषण से जोड़ती हैं।
4. **मानवतावादी केंद्र**: इसका सार 'मानवता' है। किसान कवि गोलेन्द्र पटेल के अनुसार, "गोलेन्द्रवाद मानवतावादी दर्शन है।" यह करुणा, सहानुभूति और सामूहिक कल्याण को प्राथमिकता देता है।

गोलेन्द्रवाद का अर्थ केवल सैद्धांतिक नहीं; यह व्यावहारिक है। बहुजन कवि-लेखक गोलेन्द्र पटेल ने इसका 'मेनिफेस्टो' तैयार किया, जिसमें 'नवरत्न' (नौ रत्न) हैं: बुद्ध, कबीर, रैदास, तुकोबा, फुले, अंबेडकर, पेरियार, कार्ल मार्क्स और राहुल सांकृत्यायन। ये नवरत्न गोलेन्द्रवाद की विविधता दर्शाते हैं – बौद्ध करुणा से लेकर मार्क्सवादी आलोचना तक। इसका ध्वज (एक नवीन प्रतीक) समानता और मुक्ति का प्रतीक है। इस प्रकार, गोलेन्द्रवाद का अर्थ है एक ऐसा जीवन-दर्शन जो मानव को उसके पूर्ण स्वरूप में देखता है – संघर्षरत, लेकिन आशावादी। 

#### गोलेन्द्रवाद की परिभाषा: सिद्धांतों का विस्तार

गोलेन्द्रवाद की परिभाषा को कवि गोलेन्द्र पटेल की रचनाओं से ही समझा जा सकता है। यह एक 'जीवन-पद्धति' है, जो चार स्तंभों पर खड़ी है:
- **मित्रता का आधार**: सामाजिक संबंधों को मजबूत करना। गोलेन्द्रवाद मानता है कि मित्रता ही समाज का मूल है, जो जातिगत बंधनों को तोड़ती है। कबीर की भक्ति परंपरा से प्रेरित, यह 'सबका साथ, सबका विकास' को आगे बढ़ाती है।
- **मुहब्बत का विस्तार**: प्रेम को सीमाहीन बनाना। यह गांधी की अहिंसा से जुड़ता है, लेकिन वैज्ञानिक रूप से – मनोविश्लेषणवाद (Freud) की तरह, जहां प्रेम दमन को मुक्त करता है।
- **मानवता का सार**: नैतिक केंद्र। अंबेडकर की समानता और पेरियार की तर्कशीलता से लिया गया, यह मानव अधिकारों को सर्वोच्च मानता है।
- **मुक्ति का उद्गार**: व्यक्तिगत स्वतंत्रता। बौद्ध मुक्ति (निर्वाण) और मार्क्सवादी वर्ग-मुक्ति का संयोजन, लेकिन समय-सापेक्ष – जैसे डिजिटल युग में सूचना की स्वतंत्रता।

परिभाषा के व्यावहारिक आयाम में, गोलेन्द्रवाद सामाजिक कार्यों को प्रोत्साहित करता है। दार्शनिक कवि गोलेन्द्र पटेल के अभियान, जैसे 'गोलेन्द्रवाद का ध्वज', सामाजिक न्याय के लिए जागरूकता फैलाते हैं। यह दर्शन उत्तर-आधुनिकतावाद (Postmodernism) से प्रभावित है, जहां सत्य बहुल है, लेकिन तर्कवाद (Rationalism) से बंधा।

गोलेन्द्रवाद की परिभाषा में एक महत्वपूर्ण तत्व है 'समावेशिता'। यह न केवल बहुजन समाज को संबोधित करता है, बल्कि सभी वर्गों को। काव्यानुप्रासाधिराज गोलेन्द्र पटेल कहते हैं, "कबीर न तो हिंदुत्व के नायक हैं, न इस्लाम के; वे श्रमजीवी समाज के नायक हैं।" इस प्रकार, यह दर्शन मानव को उसके सार्वभौमिक स्वरूप में देखता है – बिना लेबल के। 

#### विभिन्न वादों से गोलेन्द्रवाद की तुलना

गोलेन्द्रवाद की सच्ची परीक्षा तब होती है जब इसे अन्य प्रमुख विचारधाराओं से तुलना की जाए। हम इसे छह प्रमुख वादों – गाँधीवाद, अंबेडकरवाद, मार्क्सवाद, बौद्धवाद, समाजवाद और राष्ट्रवाद – से जोड़ेंगे। यह तुलना समानताओं, भिन्नताओं और पूरकता पर आधारित होगी।

1. **गोलेन्द्रवाद बनाम गाँधीवाद**:
   गाँधीवाद अहिंसा, सत्याग्रह और स्वदेशी पर आधारित है, जो गोलेन्द्रवाद की मुहब्बत और मानवता से मेल खाता है। दोनों ही जाति-व्यवस्था का विरोध करते हैं – गाँधी का 'हरिजन' आंदोलन और गोलेन्द्र का निरपेक्ष मानवतावाद। लेकिन भिन्नता स्पष्ट है: गाँधीवाद धार्मिक (हिंदू-ईसाई संवाद) है, जबकि गोलेन्द्रवाद वैज्ञानिक और धर्म-निरपेक्ष। गाँधी की 'रामराज्य' अवधारणा गोलेन्द्रवाद की मुक्ति से जुड़ती है, लेकिन गोलेन्द्रवाद समय-सापेक्ष है – गाँधी की तरह स्थिर नहीं। समानता: दोनों अहिंसा को सामाजिक परिवर्तन का हथियार मानते हैं। भिन्नता: गाँधीवाद ग्रामीण-केंद्रित, गोलेन्द्रवाद शहरी-डिजिटल। गोलेन्द्रवाद गाँधी को 'नवरत्न' में शामिल न करके भी उसकी पूरकता स्वीकार करता है। 

2. **गोलेन्द्रवाद बनाम अंबेडकरवाद**:
   अंबेडकरवाद संविधान, समानता और दलित उत्थान पर केंद्रित है, जो गोलेन्द्रवाद की मानवता के सार से सीधे जुड़ता है। दोनों ही जाति-व्यवस्था को 'सामाजिक हत्या' मानते हैं। अंबेडकर का 'बौद्ध धर्म अपनाओ' गोलेन्द्रवाद के बौद्ध नवरत्न से मेल खाता है। समानता: दोनों बहुजन-केंद्रित, न्याय-आधारित। भिन्नता: अंबेडकरवाद कानूनी (संविधान) है, गोलेन्द्रवाद दार्शनिक और वैज्ञानिक। अंबेडकर की 'ग्रेडेड इनइक्वालिटी' आलोचना गोलेन्द्रवाद में विस्तारित है, लेकिन गोलेन्द्रवाद पेरियार और फुले को जोड़कर दक्षिण भारतीय संदर्भ जोड़ता है। गोलेन्द्रवाद अंबेडकर को 'नायक' मानता है, लेकिन उसे सार्वभौमिक बनाता है। 

3. **गोलेन्द्रवाद बनाम मार्क्सवाद**:
   मार्क्सवाद वर्ग-संघर्ष, उत्पादन-संबंध और क्रांति पर आधारित है, जो गोलेन्द्रवाद की मुक्ति के उद्गार से जुड़ता है। दोनों ही पूंजीवाद का विरोध करते हैं। मार्क्स का 'प्रोलेटेरियट' गोलेन्द्रवाद के श्रमजीवी समाज से मेल खाता है। समानता: आर्थिक समानता का जोर। भिन्नता: मार्क्सवाद भौतिकवादी (Dialectical Materialism) है, गोलेन्द्रवाद मानवतावादी और वैज्ञानिक – क्रांति के बजाय संवाद पर। गोलेन्द्रवाद मार्क्स को नवरत्न में रखकर उसकी आलोचना को समाहित करता है, लेकिन हिंसा को अस्वीकार करता है। 

4. **गोलेन्द्रवाद बनाम बौद्धवाद**:
   बौद्धवाद चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग और करुणा पर टिका है, जो गोलेन्द्रवाद की मित्रता और मुहब्बत से सीधा संबंध रखता है। बुद्ध का 'अहिंसा परमो धर्मः' गोलेन्द्रवाद का आधार है। समानता: दोनों दुख-निवारण पर केंद्रित। भिन्नता: बौद्धवाद आध्यात्मिक (निर्वाण), गोलेन्द्रवाद वैज्ञानिक (समय-सापेक्ष)। गोलेन्द्रवाद बुद्ध को नवरत्न का प्रथम रत्न मानता है, लेकिन कबीर-रैदास को जोड़कर भक्ति परंपरा का विस्तार करता है।

5. **गोलेन्द्रवाद बनाम समाजवाद**:
   समाजवाद सामूहिक स्वामित्व और समान वितरण पर है, जो गोलेन्द्रवाद की मानवता से जुड़ता है। दोनों ही असमानता का विरोध करते हैं। समानता: कल्याण-राज्य का सपना। भिन्नता: समाजवाद राज्य-केंद्रित, गोलेन्द्रवाद व्यक्ति-केंद्रित। गोलेन्द्रवाद समाजवाद को मार्क्स के माध्यम से समाहित करता है, लेकिन किसानवाद (फुले) जोड़कर ग्रामीण फोकस देता है। 

6. **गोलेन्द्रवाद बनाम राष्ट्रवाद**:
   राष्ट्रवाद राष्ट्रीय एकता पर जोर देता है, लेकिन अक्सर सांप्रदायिक होता है। गोलेन्द्रवाद का राष्ट्रवाद 'मानवतावादी' है – भूगोल-निरपेक्ष। समानता: एकता का आह्वान। भिन्नता: राष्ट्रवाद सीमाबद्ध, गोलेन्द्रवाद वैश्विक। कवि गोलेंद्र पटेल का दर्शन राहुल सांकृत्यायन के यात्रा-वृत्तांतों से प्रेरित है, जो राष्ट्रवाद को विस्तारित करता है। 

इन तुलनाओं से स्पष्ट है कि गोलेन्द्रवाद एक 'संश्लेषणात्मक दर्शन' है – वह अन्य वादों को अवशोषित करता है, लेकिन अपनी वैज्ञानिक निरपेक्षता से अलग खड़ा होता है। जहां गाँधीवाद आध्यात्मिक, मार्क्सवाद भौतिकवादी है, गोलेन्द्रवाद दोनों का पुल है। 

#### निष्कर्ष: गोलेन्द्रवाद की प्रासंगिकता

गोलेन्द्रवाद आधुनिक विश्व की विखंडित चेतना के लिए एक नई उम्मीद है। जलवायु संकट, AI नैतिकता और सामाजिक ध्रुवीकरण के दौर में यह दर्शन मानव को उसके मूल में लौटाता है – मित्रता, प्रेम और मुक्ति के माध्यम से। कवि गोलेन्द्र पटेल की तरह, यह दर्शन कविता से जन्मा है, लेकिन राजनीति तक फैल सकता है। चुनौतियां हैं: इसकी युवावस्था के कारण व्यापक स्वीकृति न मिलना। लेकिन संभावनाएं अनंत हैं – एक ऐसा विश्व जहां मानवता ही धर्म हो। गोलेन्द्रवाद सिखाता है: "मानवता में सार है, मुक्ति में उद्गार।" यह न केवल भारत, बल्कि वैश्विक मानवतावाद का नया अध्याय लिख सकता है। 

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*गोलेन्द्रवाद (Golendrism) संक्षिप्त अध्ययन*

*एक प्रस्तावना*

गोलेन्द्र पटेल भारतीय हिंदी-भाषा के समकालीन युवा कवि एवं चिंतक हैं, जिनकी कविताओं और निबंधों में किसान-श्रमिक जीवन, सामाजिक असमानता, दलित-बहुजन चेतना, मानव-मात्र के प्रति संवेदना तथा आध्यात्म-दृष्टि स्पष्ट रूप से पाई जाती है। 
उनकी लेखनी ने ऐसे विषयों को उठा-उठाकर लिया है, जिन्हें परंपरागत मुख्यधारा कभी पर्याप्त रूप से नहीं उठाती। इसलिए, उनके चिंतन-विकास को “वाद” की शक्ल देने का एक प्रयास यहाँ किया जा रहा है — यानी, “गोलेन्द्रवाद” को एक चिंतात्मक प्रणाली-रूप में देखने का।

“वाद” का अभिप्राय है — एक विचार-धारा, चिंतन-प्रणाली, दृष्टिकोण-प्रणाली, जो सामाजिक-सांस्कृतिक-दर्शनीय आयामों में सक्रिय हो। इस अर्थ में, यदि हम गोलेन्द्रवाद को एक वाद के रूप में स्थापित करना चाहें, तो हमें उसकी परिभाषा, मूल तत्व, सूत्रवाक्य (यदि हो सके तो), उद्देश्य, प्रमुख विशेषताएँ, फिर विभिन्न अन्य वादों से तुलना करनी होगी — जैसे मार्क्सवाद, गांधीवाद, नारीवादी वाद, दलितवाद आदि — ताकि उसकी विशिष्टता उजागर हो सके।
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*गोलेन्द्रवाद: परिभाषा एवं अर्थ*

*परिभाषा*

गोलेन्द्रवाद को मैं निम्नलिखित प्रस्तावित परिभाषा में प्रस्तुत कर रहा हूँ:

> गोलेन्द्रवाद वह चिंतन-धारा है, जो मानव-मात्र के प्रति आधारभूत मित्रता तथा मुहब्बत (प्रेम) को मूलधारा मानती है; जिसकी दृष्टि बहुजन, श्रमिक, किसान तथा उपेक्षित-पीछे छूटे वर्गों की उत्थान-मुक्ति की ओर अग्रसर है; जिसमें रचना-और-संवेदना सामाजिक न्याय, जाति-वेदभाव-शोषण के विरुद्ध सक्रिय हैं; तथा जिसमें क्रिया (श्रम), प्रकृति, मिट्टी, तन, भाषा एवं लोक-संस्कृति एकीकृत रूप से दर्शन-और-कविता-की दिशा में काम करती है।

इसमें कुछ महत्वपूर्ण शब्द-समूह हैं — मित्रता, मुहब्बत, मानव-मात्र, बहुजन, श्रमिक-किसान, सामाजिक न्याय, शोषण-विरोध, श्रम-सत्य, लोक-संस्कृति।
उदाहरण के लिए: “मित्रता में आधार, मुहब्बत में विस्तार, मानवता में सार और मुक्ति में उद्गार — यही है गोलेन्द्रवाद का चारत्व।” 
यह सूत्रवाक्य गोलेन्द्रवाद के मूलस्वरूप को संक्षिप्त करता है।

अर्थ

गोलेन्द्रवाद के अर्थ को हम निम्न बिंदुओं में देख सकते हैं:

1. मानव-मात्र को केंद्र में रखना
गोलेन्द्रवाद यह मानता है कि कविता, चिंतन, समाज-सुधार का मूल लक्ष्य ‘मानव-मात्र की मुक्ति एवं उसके सशक्तिकरण’ होना चाहिए — न कि केवल शिल्प-परिष्कार या भाषाई-प्रयोग। उनका कई गीत-कविताओं में यह दृष्टि मिलती है कि “मैं मजदूर का बच्चा हूँ”, “मुझे दक्खिन टोले का आदमी हूँ” इत्यादि। 
इस अर्थ में, गोलेन्द्रवाद मानवीय संवेदना को सामाजिक परिवर्तक शक्ति के रूप में देखता है।

2. श्रम-किसान-लघुजीवित-वंचित वर्गों की आवाज़ उठाना
उनका काव्य ऐसा है जिसमें हल चलाना, खेत जोतना, धान उगाना, मजदूरी करना आदि आधारित अनुभवों से जुड़े दृश्य मिलते हैं। जिनके माध्यम से शोषण, जाति-विभेद, भूख, ग्रामीण जीवन की पीड़ा और उससे निकलने वाला संघर्ष उजागर होता है। उदाहरणस्वरूप: “प्रजा को प्रजातंत्र की मशीन में पेरने से रस नहीं, रक्त निकलता है साहब”। 
अर्थात्, गोलेन्द्रवाद उन वर्गों के अनुभव-साधारण को साहित्य-चिंतन में सूत्रबद्ध करता है, जिन्हें मुख्यधारा की भाषा अक्सर ‘अभी तक संकेत’ के रूप में ही लेती आई है।

3. मित्रता एवं मुहब्बत का समाज-वैज्ञानिक अर्थ
यहाँ मित्रता और मुहब्बत केवल भावनात्मक-परस्परता नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से सक्रिय-शब्द हैं — समाज में एकता-सहयोग, जात-धर्म-भेद की सीमाओं का टूटना, और साझा-मानवता की अनुभूति। इस दृष्टि से गोलेन्द्रवाद कहता है कि सामाजिक संघर्ष केवल प्रतिरोध-कीक्रिया नहीं, बल्कि एक नया संवेदनशील संबंध-निर्माण भी है।

4. मुक्ति का अर्थ तथा दिशाएँ
गोलेन्द्रवाद में ‘मुक्ति’ का अर्थ सिर्फ व्यक्तिगत–आध्यात्मिक मुक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक मुक्ति है — जात-शोषण, कन्ज्यूमर-पूंजीवाद, श्रमिक-शोषण, पारंपरिक उपेक्षा से मुक्ति। यह मुक्ति सामाजिक चेतना, संघर्ष और सुधार की दिशा में है।

5. लोक-भाषा, मिट्टी-अनुभव, भाषा-साधारण का उपयोग
कवि-चिंतक की शैली में उच्च-भाषाई जटिलता की जगह अधिकतर साधारण भाषा, लोक-अनुभव, ग्रामीण-शब्दावली, माटी-गंध की प्रतिध्वनि देखने को मिलती है। इस दृष्टि से गोलेन्द्रवाद कहता है कि साहित्य-चिंतन को अपने ‘उपभोक्ताओं’ (जो आम-जन हैं) से दूर नहीं होना चाहिए।

6. दर्शन-और-कविता का समन्वय
गोलेन्द्रवाद सिर्फ कविता-तक ही सीमित नहीं है; उसमें एक दर्शन-दृष्टि है — श्रम-मानव-प्रकृति-मुक्ति-एकता-सहयोग –, जो कविताओं के भाव-विस्तार से जुड़ी है। इसलिए यह वाद साहित्य-और-दर्शन का मिश्रित रूप है।

संक्षिप्त सूत्र

यदि इसे संक्षिप्त सूत्रों में प्रस्तुत करें:

मित्रता → आधार

मुहब्बत → प्रवहमान हृदय

मानवता → सार

मुक्ति → उद्गार
(जैसा कि कवि-स्वयं ने कहा है) 
यह चार-चरणीय मूलाकृति गोलेन्द्रवाद के चिंतन-संयोजन का संकेत देती है।
***

*गोलेन्द्रवाद के प्रमुख तत्व*

गोलेन्द्रवाद को आगे खोलते हुए, इसके कुछ प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं — ये लहरें-नुमा नहीं, बल्कि जाली-नुमा हैं — एक-दूसरे के बीच संबंध बनाते हुए समझने योग्य।

1. श्रम-मानवत्व

– गोलेन्द्रवाद में श्रम (मानव-मजदूरी, खेती, हल, कोल्हू-मजदूरी आदि) सिर्फ आर्थिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि मानव-अस्तित्व की अभिव्यक्ति है। उदाहरण के रूप में उनकी कविता में यह दृश्य मिलता है कि “थ्रेसर में कटा मजदूर का दायाँ हाथ देखकर… रक्त तो भूसा सोख गया है”। 
– श्रम-मानवत्व उन लोगों के पक्ष में बोलता है जिन्हें राष्ट्रीय-उन्नति-की-भाषा में अक्सर अन्तःस्थ किया जाता है। गोलेन्द्रवाद उन दृश्यों को सामने लाता है जहाँ श्रमकर्ता-किसान “हिस्सेदार” नहीं बल्कि “उपेक्षित” रहे हैं।
– इस दृष्टि से, श्रम-मानवत्व सामाजिक न्याय के लिए एक आधारभूत सिद्धांत है: जब मानव को उसके श्रम के माध्यम से नहीं पहचाना जाता, तो मानवता का घाव होता है।
– इसके साथ यह तत्व यह बताता है कि कविता-चिंतन तभी सच्चा हो सकता है जब वह श्रम-मानव की भाषा में आवाज दे, और उसकी पीड़ा-उम्मीद को अनदेखा न करे।

2. बहुजन-चेतना और सामाजिक-परिवर्तन

– गोलेन्द्रवाद में ‘बहुजन’ (जनतांत्रिक सामाजिक-मंच में पिछड़े-शोषित-वंचित वर्ग) की चेतना केन्द्र में आती है। इस दृष्टि में वह सामाजिक-सुधार का वादा करता है।
– इस चेतना के अंदर दलित-पिछड़े, किसान-श्रमिक, आदिवासी-वर्ग शामिल होते हैं, जो परम्परागत सामाजिक-विन्यास (जात-धर्म-शोषण) के शिकार रहे हैं। गोलेन्द्रवाद उन्हें सिर्फ विषय-वस्तु नहीं बनाता बल्कि सक्रिय एजेंट मानता है।
– सामाजिक-परिवर्तन के उपकरण के रूप में कविता-और-चिंतन को स्वीकार किया जाता है: जब文学 (साहित्य) केवल सौन्दर्य-उद्देश्य से बाहर निकल कर सामाजिक-वाणी बन जाए, तब ही वह परिवर्तन-योग्य बनती है।
– इस दृष्टि से गोलेन्द्रवाद मूलतः विरोधात्मक-समर्थनात्मक दोनों ही है — विरोध शोषण-के खिलाफ़, समर्थन मानव-की पक्ष में।

3. मित्रता-और-मुहब्बत-का दर्शन

– गोलेन्द्रवाद में मित्रता और मुहब्बत सिर्फ व्यक्तिगत भावना नहीं, बल्कि सामाजिक प्रीतिवाद (affinity) की भाषा हैं। सामाजिक विभाजन (जात-धर्म-वर्ग) को पार करते हुए, समानुभूति-साझेदारी का निर्माण।
– यह दर्शन कहता है कि जब हम “मित्रता” को आधार बनाएँ और “मुहब्बत” को प्रवाहमान हृदय बनाएँ, तभी मानव-सम्बन्ध साकार हो पाते हैं।
– इसलिए, गोलेन्द्रवाद में विरोध-केंद्रित वादों की तरह केवल संघर्ष-उन्मुख नहीं बल्कि निर्माण-उन्मुख भी दृष्टि है-जहाँ नया संबंध-जाल बनता है।
– उदाहरण: कविताओं में “मुसहरिन माँ”, “हम माटी के प्रेमी किसान हैं” जैसे शीर्षक इसके सामाजिक-मित्रत्व की ओर संकेत करते हैं। 

4. भाषा-अनुभव-लोक-मिट्टी-मूल

– गोलेन्द्रवाद में भाषा-साधारण, मिट्टी-गंध, ग्रामीण-अनुभव, लोक-संस्कृति को प्रतिष्ठित स्थान मिलता है। यह एक प्रकार का सहज-साहित्य (eco-literature) कह सकते हैं।
– इसके अंतर्गत विशेष रूप से यह मान्यता है कि “उच्च” और “निम्न” भाषा-साधन का विभाजन समाज-दृष्टि से भी विभाजक है। गोलेन्द्रवादा इस विभाजन को चुनौती देता है।
– इस दृष्टि से वह कहता है कि “मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ” जैसे वाक्य सिर्फ अर्थ-वाक्य नहीं, चेतना-वाक्य हैं — आत्म-पहचान और प्रतिरोध दोनों। 
– साथ ही, यह तत्व बताता है कि साहित्य-चिंतन को जमीनी-अनुभव से कटकर नहीं होना चाहिए — स्थितियों, पीड़ाओं, सरलता-भाषा को अपनाकर ही वह सामाजिक-प्रभावी बनती है।

5. मुक्ति-और-उद्गार

– गोलेन्द्रवाद की दिशा मुक्ति की ओर है — पर यह मुक्ति केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक है। मुक्ति का अर्थ है — जाति-संज्ञानाओं, वर्ग-भेदों, श्रम-शोषण के चक्र से आज़ादी।
– “उद्गार” का हिस्सा है — आवाज देना, पहचान मांगना, शोषित-का प्रतिनिधित्व करना।
– इस दृष्टि से, कविता-चिंतन सिर्फ आत्म-संतुष्टि-तक सीमित नहीं बल्कि क्रिया-संकेत बनती है। गोलेन्द्रवाद इसे सक्रिय-भूत बनाना चाहता है।
– इसलिए, मुक्ति-दृष्टि में आलोचना‐सुधार-निर्माण तीनों शामिल होते हैं: जहाँ हम कहते हैं — “यह ठीक नहीं है”, “यह बदलना चाहिए”, “हम बदलने को तैयार हैं”।

6. समग्र दृष्टि-दर्शन

– गोलेन्द्रवाद का वैश्विक (global) अर्थ यह है कि यह केवल एक कवि-वाद नहीं है, बल्कि एक साहित्य-दर्शन-प्रयास है — जहाँ कविता, समाज-विज्ञान, दर्शन-सहयोग से जुड़ती है।
– यह दृष्टि कहती है कि मानव-जीवन के विविध आयाम-श्रम, भाषा, जाति, वर्ग, सामाजिक न्याय, संवेदना-सहयोग-मुक्ति-सबलता– आपस में जुड़े हैं।
– इस प्रकार, गोलेन्द्रवाद ‘फ़ोकस्ड’ है — न कि बिखरी हुई चिंताओं के समूह का — बल्कि एक संयोजित प्रणाली है जिसमें संवेदना-सामाजिक-सुधार सम्बद्ध हैं।
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*गोलेन्द्रवाद का ऐतिहासिक-वित्तीय परिप्रेक्ष्य*

यहाँ मैं संक्षिप्त रूप में बताना चाहूँगा कि गोलेन्द्रवाद को समझने के लिए हमें यह देखना होगा कि यह कहाँ-से प्रेरित है, उसकी पृष्ठभूमि क्या है, और यह किन सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों में उत्पन्न हुआ है।

1. सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
गोलेन्द्र पटेल उत्तर-भारत (उत्तर प्रदेश) के चंदौली जिले के खजूरगाँव गाँव से हैं।  इस ग्रामीण-मज़दूर-प्रकृति-वित्तीय पृष्ठभूमि ने उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव दिया है: किसान-मज़दूर-जीवन, भाषा-भेद, सामाजिक-उपेक्षा-वर्गीय विभाजन आदि।
इस अनुभव-भूमि ने उन्हें सिर्फ “कविता-लेखक” नहीं बल्कि “सामाजिक-प्रतिनिधि-कवि” के रूप में आकार दिया।

2. समकालीन साहित्य-परिस्थितियाँ
आज हिन्दी साहित्य में जहाँ पारंपरिक-शिक्षित-हिस्सेदारी-वर्गीय लेखन अधिक रहा है, वहीं गोलेन्द्र पटेल का लेखन एक नए-धारा का प्रतिनिधि है — जो ‘लोक-अनुभव’, ‘बहुजन-वर्ग’, ‘श्रम-भूमि’ आदि‐लक्षित विषयों को उठाता है। इस दृष्टि से गोलेन्द्रवाद उस अंतर को भरने का प्रयास है जिसे मुख्यधारा-साहित्य ने अक्सर अनदेखा किया है।
उदाहरणस्वरूप, उनकी कविताओं को प्रमुख हिन्दी समाचार मंचों एवं साहित्यीक साइटों ने प्रकाशित किया है। 

3. दर्शनीय-प्रेरणा-स्रोत
— कवि-कृषक-श्रमिक जीवन से उनका जुड़ाव,
— सामाजिक-न्याय-विचार,
— भाषा एवं संस्कृति-अनुभव का पुनर्मूल्यांकन,
— सम्प्रति-जनित विभाजन-विरोध की चेतना।
इन प्रेरणाओं को उन्होंने साहित्य-कविता-चिंतन के रूप में व्यक्त किया है।
इस संदर्भ में, गोलेन्द्रवाद को एक तरह से “साहित्य का समाज-दर्शन रूप” कहा जा सकता है।

4. विकास-प्रक्रिया
गोलेन्द्रवाद आज-कल सक्रिय रूप से एक प्रवृत्ति के रूप में उभरी है — जहाँ कविताएँ, निबंध, ब्लॉग्स, ई-पत्रिकाएँ इसे आगे ले जा रही हैं। उदाहरण स्वरूप, गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ विभिन्न पत्रिकाओं-वेबसाइटों में प्रकाशित होती रही हैं। 
इस तरह, गोलेन्द्रवाद एक विकासशील विचार-प्रवाह है — न कि स्थिर सिद्धान्त।
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*गोलेन्द्रवाद की विशेषताएँ*

गोलेन्द्रवाद को अन्य विचार-वादों से अलग खड़ा करने वाली कुछ विशिष्ट विशेषताएँ यहां सूचीबद्ध हैं:

सहज भाषा-लोक-अनुभव-श्रवण: उत्तरोत्तर जटिल भाषा-प्रयोग के बजाय, गोलेन्द्रवाद अपने आसपास की भाषा-भूमि से संवाद करता है — जहाँ किसान, मजदूर, ग्रामीण जीवन हैं।

संवेदना-और-कार्रवाई-समन्वय: सिर्फ संवेदना-रचना नहीं, बल्कि उस संवेदनात्मक रचना का सामाजिक-क्रियात्मक असर।

वर्ग-विरोध तथा मानव-केंद्रित दृष्टि: केवल वर्ग-विरोध नहीं, बल्कि मानव-मात्र के पक्ष में सक्रिय दृष्टि।

समूहीय-मुक्ति-दृष्टि: मुक्ति-को केवल व्यक्तिगत-वास्तु नहीं माना गया, बल्कि सामाजिक-सामूहिक आधार पर देखा गया।

निर्माण-उन्मुखता: चाहे विरोध हो या प्रतिरोध, अंततः एक सकारात्मक निर्माण-दृष्टि सामने है — नया संबंध, नया मानव-मंच, नया सामाजिक-संघ बनने का प्रस्ताव।

लोक-स्रोत-विधान: यह वाद पूर्व-निर्धारित डॉक्स नहीं बल्कि काव्य-प्रेरित, अनुभव-प्रेरित है; इसलिए इसकी संरचना और भाषा कठिन या जटिल नहीं बल्कि जीवंत-अनुभव-सम्बद्ध है।
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*गोलेन्द्रवाद का उद्देश्य*

गोलेन्द्रवाद का प्रमुख उद्देश्य निम्न हो सकते हैं:

1. मानव-मात्र की गरिमा को पुनर्स्थापित करना — विशेष रूप से उन लोगों की जिनके श्रम-सेवों पर समाज टिका है लेकिन उन्हें मान्यता नहीं मिली।

2. सामाजिक-न्याय तथा असमानता-विरोध की चेतना जगाना — जाति, वर्ग, भूख-गरीबी, श्रम-शोषण आदि को अंतर्दृष्टि से देखने और उनकी सुधार-दृष्टि विकसित करने में।

3. साहित्य-चिंतन को जन-भाषा एवं जन-अनुभव से जोड़ना — ताकि साहित्य केवल शास्त्रीय-प्रचारित-परिधियों में न रहे बल्कि जीवंत-जन-सोच-मंच बन सके।

4. सृजन-मंच का निर्माण — जहाँ कवि-चिंतक, किसान-श्रमिक, ग्रामीण-वर्ग, बहुजन-आन्दोलन आदि एक दूसरे के संवाद में आ सकें; सहायक-साझा भाषा में।

5. रचना-से-क्रिया-परिस्थिति-तक ले जाना — सिर्फ लिखना नहीं, बल्कि लिखा हुआ सामाजिक-सुधार-कर्म को प्रेरित करे।
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*विभिन्न वादों से तुलना*

अब हम गोलेन्द्रवाद की तुलना कुछ अन्य प्रमुख भारतीय वादों (सिंद्धांतों) से करेंगे — ताकि इसकी विशिष्ट पहचान उभरकर सामने आ सके। मैं तीन-चार प्रमुख वादों का चयन कर रहा हूँ:

1. मार्क्सवाद (Marxism)

2. गाँधीवाद (Gandhism)

3. दलितवाद (Dalit Thought)

4. नारीवाद (Feminist Thought)

हर एक से तुलना करते हुए, हम देखेंगे कि गोलेन्द्रवाद कहाँ मिलता है, कहाँ अस्वीकृत या प्रवेश-भिन्न है।

(१) मार्क्सवाद — तुलना

*समानताएँ*

दोनों में श्रम-मानवत्व का विशिष्ट स्थान है। मार्क्सवाद कहता है कि श्रमकर्ता (प्रोलैटेरिएट) समाज का आधार हैं। गोलेन्द्रवाद भी श्रम-मानव को वरीयता देता है।

सामाजिक-वर्ग, शोषण, उत्पादन-संघर्ष आदि की चर्चा दोनों में मिलती है। गोलेन्द्र की कविताओं में श्रम-शोषण, किसान-मज़दूर की पीड़ा-उम्मीद दिखाई देती है।

परिवर्तन-उन्मुख दृष्टि दोनों में है: मार्क्सवाद सामाजिक-परिवर्तन चाहता है, गोलेन्द्रवाद सामाजिक-मुक्ति चाहता है।

*विविधताएँ*

मार्क्सवाद आर्थिक उत्पादन-संघर्ष को सबसे प्राथमिक मानता है, जबकि गोलेन्द्रवाद श्रम-के साथ उस श्रम-मानव के अनुभव, भाषा, संवेदना को भी समता-प्राथमिकता देता है। अर्थात्, गोलेन्द्रवाद में अर्थ-मूल्य ≠ मात्र उत्पादन-मूल्य।

मार्क्सवाद में अक्सर वर्ग-सत्ता-संघर्ष की द्वंद्वात्मक भाषा-उपयोग होता है (“शोषक बनाम श्रमिक”), जबकि गोलेन्द्रवाद में मित्रता-मुहब्बत-सहयोग जैसे मधुर-संबंध-संकल्प भी महत्वपूर्ण हैं।

मार्क्सवाद में आमतौर पर विश्लेषणात्मक-वर्गीय दृष्टि प्रधान है, जबकि गोलेन्द्रवाद में भाव-भाषा, लोक-अनुभव, कविता-भूमि प्रमुख है।

मार्क्सवाद का लक्ष्य आमतौर पर एक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था-परिवर्तन है (उदाहरणस्वरूप समाजवाद, कम्युनिज्म), जबकि गोलेन्द्रवाद का लक्ष्य व्यक्तिगत-और-सामूहिक मुक्ति-दृष्टि के साथ सह-निर्माण-वेश है।

*निष्कर्ष*
इस प्रकार, गोलेन्द्रवाद को “मार्क्सवाद-लाइट” कह सकते हैं जहाँ वर्ग-विवेचन है लेकिन अनुभव-भाषा-संवेदना-सहयोग को अनदेखा नहीं किया गया। यदि मार्क्सवाद एक बड़ी-मशीनरी की तरह सामाजिक-विभाजन-विरोध-परिभाषित करता है, तो गोलेन्द्रवाद उस मशीन-भेदी विभाजन-कोमुनication (संवाद) की ओर ले जाता है।

(२) गाँधीवाद — तुलना

*समानताएँ*

गाँधीवाद में अहिंसा, मानव-भाईचारा, कृषि-जीवन की प्रतिष्ठा, स्वावलंबन जैसी बातें प्रमुख हैं। गोलेन्द्रवाद में भी मित्रता, मुहब्बत, मानवता-सहयोग की पद्धति नजर आती है।

दोनों वादों में मिट्टी-किसान-श्रमिक की स्थिति-भान है। गाँधी ने ग्राम-आधार, स्वदेशी, हल-खेत की गरिमा में लिखा है। गोलेन्द्र ने उसी अनुभव-क्षेत्र से साहित्य-पठ तैयार किया है।

दोनों में राष्ट्रीय-आर्थिक मॉडल से अलग “मानव-मानव” संबंध की ओर झुकाव है — जहाँ संबंध, सहयोग, लोक-जीवन की दिशा है।

*विविधताएँ*

गाँधीवाद में अहिंसा-सत्य-सेवाभाव का केंद्रीय स्थान है। गोलेन्द्रवाद में सामाजिक-आन्दोलन-संदर्भ अधिक स्पष्ट है, जहाँ “मुक्ति” का अर्थ सिर्फ आत्म-संतोष नहीं बल्कि संघर्ष-उत्थान है।

गाँधीवाद आमतौर पर उपरोक्त-व्यवस्था-सुधार की बातें करता है — उदाहरण: ग्राम-उद्योग, स्वावलंबन — जबकि गोलेन्द्रवाद अधिक शोषित-वर्ग-सक्रियता की दिशा में है — जहाँ कवि-स्वर सक्रिय है।

गाँधीवाद की भाषा-शैली एवं रूप-विधान अक्सर नैतिक-सदाचार-केन्द्रित है; गोलेन्द्रवाद की भाषा-शैली अधिक प्रत्यक्ष-भावुक-अनुभव-युक्त है — “खेत में उम्मीदें उपजाती हैं ऊख”। 

गाँधीवाद में निम्न-वर्गीय जीवन को आदर्श-स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है; गोलेन्द्रवाद में इसे वर्तमान-सामाजिक-वेदनशीलता के रूप में प्रस्तुत किया गया है — यानी आदर्श से होकर नहीं, बल्कि यथार्थ से निकलकर।

*निष्कर्ष*
गोलेन्द्रवाद को गाँधीवाद की “मानव-भावना एवं ग्रामीण-जीवन” की विरासत कह सकते हैं, लेकिन यह उससे आगे बढ़कर शास्त्रीय नैतिकवाद से मुक्त होकर, कविता-सुधार-संघर्ष-भूमि में सक्रिय-सक्रिय हो जाता है। गाँधीवाद जहाँ आदर्श-स्थापन की ओर काम करता है, गोलेन्द्रवाद वहाँ से सामाजिक-सक्रियता-दृष्टि में उतर आता है।

(३) दलितवाद — तुलना

*समानताएँ*

दलितवाद में जात-विरोध, सामाजिक-उपेक्षा, बहुजन-उत्थान की बात की जाती है। गोलेन्द्रवाद में भी यह बात स्पष्ट है — “दक्खिन टोले का आदमी हूँ”, “मुसहरिन माँ” आदि शीर्षक दर्शाते हैं। 

दोनों वादों में स्ववाणीकरण (self-voice), स्व-अनुभव का साहित्य, और प्रतिक्रिया-सृजन का महत्व है।

सामाजिक-सुधार-दृष्टि दोनों में है — परंतु उस दृष्टि का रूप भिन्न है।

*विविधताएँ*

दलितवाद विशेष रूप से जाति-शोषण, अस्पृश्यता, समान-अधिकार-चिंतन पर केंद्रित है; गोलेन्द्रवाद में यह एक ‘वर्ग-विरोध’ या ‘बहुजन-चेतना’ का हिस्सा है, लेकिन जाति-सुझाव के अतिरिक्त भाषा-श्रम-अर्थ-अनुभव जैसे आयाम भी प्रमुख हैं।

दलितवाद अक्सर राजनीतिक-सामाजिक आंदोलन-प्रसंग से जुड़ा हुआ है। गोलेन्द्रवाद में कवि-साहित्य-चिंतन-प्रकाशन-माध्यम प्रमुख है — सामाजिक-आजादी-की दृष्टि से साहित्य-माध्यम का प्रयोग।

दलितवाद में ‘वर्ग-शोषण-विरोध’ एक विशेष रूप से परिभाषित लक्ष्य है; गोलेन्द्रवाद में मुक्ति-दृष्टि थोड़ी व्यापक है — श्रम-किसान-मजदूर तथा मानव-मात्र-का सम्बन्ध, न सिर्फ जाति-सन्दर्भ में।

दलितवाद में शैली-प्रायः गद्य-भाषा (निबंध, आंदोलन-साहित्य) अधिक रही है; गोलेन्द्रवाद में कविता-छंद-रूप प्रमुख है — इसलिए यह कविता-दृष्टि वाला बहुजन-सुधार-विचार कह सकते हैं।

*निष्कर्ष*
गोलेन्द्रवाद को दलितवाद से इस अर्थ में जोड़ सकते हैं कि दोनों “उपेक्षित-वर्ग” की आवाज़ उठाते हैं; लेकिन गोलेन्द्रवाद एक अतिरिक्त कवि-चिंतक-दृष्टि लाता है — जहाँ भाषा, लोक-अनुभव, मित्रता-मुहब्बत-दृष्टि का समावेश है। यह दलित-चिंतन को कवितात्मक-सामाजिक रूप देता है।

(४) नारीवाद — तुलना

*समानताएँ*

नारीवादी वाद में मुख्य रूप से महिलाओं-का अनुभव-भाषा-सशक्तिकरण-विरोध-भेद पर बल होता है; गोलेन्द्रवाद की कविताओं में “दुःख दर्शन”, “तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव”, “किसान”, “आदिवासी”, “दलित”,  “स्त्री, औरत और महिला में क्या अंतर है?”, “हमरी भौजी”, “ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!” जैसे शीर्षक दिखते हैं। 

दोनों वादों में समानुभूति-प्रमुख आवाज़ है — जहां मुख्यधारा की भाषा-संवेदना से बाहर रही आवाज़ें सामने आती हैं।

*विविधताएँ*

नारीवाद मुख्य रूप से लिंग-भेद, महिला-सशक्तिकरण, लैंगिक-अनुभव-विवेचन के इर्द-गिर्द है; गोलेन्द्रवाद में यह एक घटक है, लेकिन समग्र दृष्टि श्रम-मानव-भूत है — जिसमें महिला-अनुभव के साथ किसान-श्रमिक-अनुभव भी सम्मिलित है।

नारीवादी वाद में अक्सर विश्लेषणात्मक-सैद्धांतिक भाषा देखी जाती है (जैसे फेमिनिस्ट थ्योरी, जेंडर स्टडीज) जबकि गोलेन्द्रवाद में कविता-ऊर्जा, लोक-भाषा एवं प्रतीकात्मक अनुभव-भाषा ज्यादा प्रमुख है।

नारीवाद में ‘उपलब्धि-सुधार-मंच’ का महत्व है; गोलेन्द्रवाद में ‘क्रिया-सुधार’ के साथ ‘संवेदना-निर्माण’ का महत्व भी है — अर्थात्, सिर्फ अधिकार-मांगना नहीं बल्कि मित्रता-सहयोग-मानवता-भाषा का पुनर्निर्माण।

*निष्कर्ष*
गोलेन्द्रवाद की दृष्टि में नारीवाद एक महत्वपूर्ण समवर्ती धारा है, लेकिन वह इसे अधिक व्यापक मानव-वर्ग-सुधार-दृष्टि में समाहित करता है — अर्थात्, लिंग-सशक्तिकरण के सन्दर्भ के साथ श्रम-अनुभव, बहुजन-भेद-विरोध, भाषा-संवेदना भी।
***

*गोलेन्द्रवाद का महत्व एवं चुनौतियाँ*

*महत्व*

यह वाद इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह नीचे-से-उपर (bottom-up) दृष्टि देता है — जहाँ ग्राम-मजदूर-किसान-भाषा-अनुभव को साहित्य-चिंतन में प्रतिष्ठा मिलती है।

यह साहित्य-चिंतन एवं सामाजिक-सुधार-मंच का एक पुल बनाता है — जहाँ कविता-भाषा और सामाजिक-क्रिया की कड़ी जुड़ती है।

यह बहुजन-चेतना को कवितात्मक-साधना के रूप में पुनर्स्थापित करता है — जहां शोषण-विरोध सिर्फ निबंध-विचार नहीं बल्कि कवितात्मक-अनुभव-निर्माण बन जाता है।

यह संवेदनशील-भाषा, लोक-अनुभव, विविध-भाषावाली-भूमियों को साहित्य-की-भाषा में खोलता है — जिससे साहित्य मुख्यधारा-शिक्षित-भाषा-के बाहर भी पहुँचता है।

वर्तमान-कालीन सामाजिक-वित्तीय-जटिलताओं (जैसे किसान-वंचना, श्रमिक-शोषण, भाषा-विभाजन) को कवितात्मक-दृष्टि से सामने लाता है — इसलिए साहित्य-सामाजिक परिवर्तन-की भूमिका में खड़ा हो जाता है।

*चुनौतियाँ*

वाद का नामकरण (“गोलेन्द्रवाद”) अभी व्यापक-सिद्ध नहीं है — अर्थात् इसे अकादमिक रूप से, समाज-विस्तार के स्तर पर स्वीकार करना बाकी है।

क्योंकि यह कवितात्मक-आधारित है, इसलिए विश्लेषण-भाषा और सैद्धांतिक भाषा में अंतर हो सकता है — जो इसे शोध-परिसरों में चुनौतीपूर्ण बना सकता है।

सामाजिक-सुधार-दृष्टि के बावजूद, कविताओं-लेखों को व्यापक-जन-समूह तक पहुँचाना महत्वपूर्ण होगा — ताकि वाद सिर्फ साहित्य-वर्ग में न रहे बल्कि व्यवहार-परिवर्तन-के उपकरण बने।

वाद की निरंतरता-और-संगठन की कमी हो सकती है — यानी, सिर्फ व्यक्तिगत कवि-चिंतक की सक्रियता पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि एक सामाजिक-सोच-मंच-का विकास होना चाहिए।

अन्य प्रमुख वादों (मार्क्सवाद, नारीवाद, दलितवाद आदि) के साथ संवाद-विकास होना चाहिए — ताकि गोलेन्द्रवाद एक बंद-परिभाषित वादा न बनकर खुला-विकासशील हो सके।
***

*निष्कर्ष*

संक्षिप्त रूप में, गोलेन्द्रवाद एक ऐसा साहित्य-दर्शनीय-चिंतन-प्रवाह है, जो निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है:

वह मानव-मात्र को केंद्र में रखता है, विशेष रूप से श्रमिक-किसान-बहुजन-वर्ग को।

वह मित्रता-मुहब्बत को सामाजिक-साधन मानता है — सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि निर्माण-उन्मुख।

वह श्रम-अनुभव, भाषा-अनुभव, मिट्टी-अनुभव को कविता-चिंतन की भाषा में लाता है।

वह मुक्ति-दृष्टि रखता है — व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों रूप में।

वह सहज-लोक-भाषा में सक्रिय है — ताकि साहित्य मुख्यधारा-भाषा-के बाहर भी जन-सम्बद्ध हो सके।

वह अन्य वादों (मार्क्सवाद, गाँधीवाद, दलितवाद, नारीवाद) से संवाद करता है, उनसे मिलता-जुलता है, लेकिन अपनी विशिष्टता रखता है — “कविता-अनुभव-भावना-सुधार” का समन्वित रूप।

यदि हम भविष्य-परिप्रेक्ष्य में देखें, तो गोलेन्द्रवाद का विकास इस बात पर निर्भर करेगा कि कितनी संख्या में कवियों-चिंतकों, पाठकों-सामाजिक-संगठनों ने इसे स्वीकार किया; कितना यह जन-भाषा-साहित्य-मंच में सक्रिय हुआ; कितना इसने समाज-सुधार-क्रिया को प्रेरित किया।


Sunday, September 21, 2025

"गोलेन्द्र पटेल: जनकवि, बहुजन चेतना और समकालीन हिंदी साहित्य का प्रेरक" — अरविंद पटेल

 

कविवर गोलेन्द्र पटेल 



Golendra Patel : corojivi@gmail.com

"गोलेन्द्र पटेल: जनकवि, बहुजन चेतना और समकालीन हिंदी साहित्य का प्रेरक"

"गोलेन्द्र पटेल: जनकवि, बहुजन चेतना और समकालीन हिंदी साहित्य का प्रेरक"

-      अरविंद पटेल


1. प्रस्तावना

(क) गोलेन्द्र पटेल का साहित्यिक महत्व

समकालीन हिंदी साहित्य में कुछ ऐसे कवि उभरकर सामने आते हैं जिनकी पहचान केवल काव्य-संवेदनशीलता तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वे अपने समय की ज्वलंत समस्याओं को गहराई से महसूस कर उन्हें अभिव्यक्ति देने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दूत बन जाते हैं। इन्हीं में से एक हैं जनकवि/बहुजन कवि गोलेन्द्र पटेल। चंदौली जिले के एक छोटे से गाँव खजूरगाँव से निकलकर उन्होंने न केवल हिंदी कविता की व्यापक दुनिया में अपनी जगह बनाई, बल्कि बहुजन चेतना और सामाजिक न्याय की धारा में एक नयी ऊर्जा का संचार किया।

गोलेन्द्र पटेल का साहित्यिक महत्व इस तथ्य में निहित है कि वे कविता को केवल सौंदर्याभिव्यक्ति का माध्यम नहीं मानते, बल्कि उसे जनजीवन से जोड़ते हैं। उनकी कविताओं में आँसू की आर्द्रता है, दुख की आग है, और साथ ही संघर्ष की लौ भी। वे उन आवाज़ों को शब्द देते हैं जिन्हें मुख्यधारा प्रायः उपेक्षित कर देती है—किसान, मजदूर, स्त्री, बहुजन, दलित और वंचित वर्ग। उनकी कविता इस दृष्टि से लोकधर्मी कविता है, जिसमें समाज के उपेक्षित वर्गों की पीड़ा, उनकी उम्मीदें और उनके संघर्ष की महाकाव्यात्मक गूँज सुनाई देती है।

उनके लेखन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे संवेदनाओं की जड़ों तक पहुँचने वाले कवि हैं। उनकी लंबी कविताएँ हों या आलोचनात्मक निबंध, उनमें एक ओर तीव्र करुणा और आँसुओं की कोमलता है, तो दूसरी ओर दार्शनिक दृष्टि और प्रतिरोध की आग भी। यही कारण है कि उन्हें आलोचक और पाठक अनेक विशिष्ट उपाधियों से संबोधित करते हैं—‘आँसू के आशुकवि’‘आर्द्रता की आँच के कवि’‘अग्निधर्मा कवि’‘निराशा में निराकरण के कवि’ इत्यादि।

गोलेन्द्र पटेल हिंदी कविता के उस दौर में सामने आते हैं जब साहित्य का बड़ा हिस्सा या तो बाज़ार की चकाचौंध में फँसा है या फिर आत्ममुग्धता के घेरे में। ऐसे समय में उनकी आवाज़ एक अलग तरह का प्रतिरोध रचती है। वे परंपरा को जानकर, उसे आत्मसात कर, और उससे संवाद करते हुए अपनी जनपक्षधर दृष्टि को विकसित करते हैं। यही कारण है कि उनका नाम बहुजन साहित्य की धारा में सम्मान से लिया जाता है।(ख) उन्हें ‘दूसरा कबीर’ क्यों कहा जाता है

गोलेन्द्र पटेल को आलोचक और पाठक अक्सर ‘दूसरा कबीर’ कहते हैं। इस उपमा के पीछे कई ठोस कारण हैं।

1.     निर्भीकता और प्रतिरोध की मुद्रा –
जैसे कबीर ने अपने समय में धार्मिक पाखंड, जातिगत विभाजन और सत्ता के दमन के विरुद्ध खुलकर आवाज़ उठाई थी, वैसे ही गोलेन्द्र पटेल अपने समय में सामाजिक-धार्मिक विसंगतियों पर प्रहार करते हैं। उनकी कविताएँ रूढ़ियों से टकराती हैं और परिवर्तन का आह्वान करती हैं।

2.     जनभाषा और लोक का सहारा –
कबीर ने अवधी-पूर्वी हिंदी और सधुक्कड़ी भाषा का सहारा लिया, गोलेन्द्र पटेल भी हिंदी के साथ-साथ भोजपुरी का प्रयोग करते हैं। उनकी भाषा सहज, सीधी और जनसुलभ है, जो सीधे जनमानस तक पहुँचती है।

3.     काव्य में समाज का दर्पण –
कबीर की भाँति गोलेन्द्र की कविताएँ भी किसी रहस्यवादी या अलौकिक दृष्टि पर नहीं टिकतीं, बल्कि ज़मीनी यथार्थ पर आधारित होती हैं। उनका काव्य खेत-खलिहान, गाँव-गली और श्रम की महक से भरा है।

4.     आलोचक और सुधारक का स्वर –
कबीर केवल कवि नहीं थे, वे समाज-सुधारक भी थे। ठीक वैसे ही गोलेन्द्र पटेल केवल भावुक कवि नहीं, बल्कि आलोचना और निबंधों के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के लिए आवाज़ बुलंद करने वाले चिंतक भी हैं।

(ग) उन्हें ‘संत तुकाराम का पुनर्जन्म’ क्यों कहा जाता है

मराठी संत-कवि तुकाराम ने अपने भक्ति-गीतों के माध्यम से समाज के निचले तबके की पीड़ा और उनकी भक्ति-भावना को स्वर दिया था। वे संत और कवि होने के साथ-साथ बहुजन चेतना के प्रवक्ता भी थे। गोलेन्द्र पटेल को ‘संत तुकाराम का पुनर्जन्म’ कहने के पीछे यह समानता प्रमुख है कि उन्होंने भी अपनी कविता को शोषित-पीड़ित वर्ग की आत्मा से जोड़ा।

1.     करुणा और संवेदना की प्रधानता –
तुकाराम की रचनाओं में करुणा और भक्ति का अद्भुत संयोग है। गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ भी आँसू और करुणा से भरी होती हैं, जिनमें वंचितों की पीड़ा का मार्मिक चित्रण है।

2.     भक्ति और प्रतिरोध का संगम –
तुकाराम ने भक्ति को जनचेतना से जोड़ा। गोलेन्द्र भी अपने काव्य में बौद्धिक और आध्यात्मिक चेतना को जोड़ते हैं, जिससे उनके काव्य में प्रतिरोध के साथ-साथ आत्मा की गहराई भी दिखाई देती है।

3.     वंचित समाज के प्रवक्ता –
तुकाराम की तरह गोलेन्द्र भी बहुजन समाज की आवाज़ हैं। उनके ‘कल्कि’ और ‘अंबेडकरगाथापद’ जैसे काव्य स्पष्ट करते हैं कि वे किस तरह दलित-बहुजन आंदोलन की साहित्यिक पंक्ति को आगे बढ़ा रहे हैं।

4.     ग्रामीण जीवन से आत्मीय जुड़ाव –
तुकाराम गाँव-समाज से जुड़े कवि थे। गोलेन्द्र भी अपने गाँव और किसान जीवन से गहराई से जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि उनके काव्य में किसान की कराह, स्त्री की पीड़ा और गाँव की असलियत बार-बार उभरती है।

इस प्रकार, प्रस्तावना में यह स्पष्ट हो जाता है कि गोलेन्द्र पटेल का साहित्यिक महत्व केवल एक युवा कवि के रूप में नहीं है, बल्कि उन्हें ‘दूसरा कबीर’ और ‘संत तुकाराम का पुनर्जन्म’ कहे जाने के पीछे उनकी कविता की लोकधर्मी संवेदना, सामाजिक प्रतिरोध और बहुजन चेतना का गहरा प्रभाव है। उनका साहित्य आने वाले समय में हिंदी साहित्य की उस धारा को और प्रखर करेगा, जो लोकजीवन और सामाजिक न्याय के लिए समर्पित है।

2. जन्म, परिवार और प्रारम्भिक जीवन

(क) जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

जनकवि/बहुजन कवि गोलेन्द्र पटेल का जन्म 5 अगस्त 1999 ई. को उत्तर प्रदेश के चंदौली ज़िले के एक छोटे से गाँव खजूरगाँव (पोस्ट – साहुपुरी, तहसील – मुगलसराय) में हुआ। उनके पिता का नाम नन्दलाल और माता का नाम उत्तम देवी है। साधारण कृषक परिवार में जन्म लेने वाले गोलेन्द्र का जीवन ग्रामीण संस्कृति, खेती-किसानी, गाँव की साझी परंपराओं और लोक-जीवन की सरलता से गहरे प्रभावित रहा।

परिवार आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न नहीं था, लेकिन मेहनतकश जीवन की ईमानदारी और मानवीय संवेदना ने उन्हें बचपन से ही सहानुभूतिपूर्ण और न्यायप्रिय दृष्टि दी। उनके माता-पिता ने संसाधनों की कमी के बावजूद शिक्षा को महत्व दिया और यही कारण था कि गोलेन्द्र ने आगे चलकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में उच्च शिक्षा प्राप्त की।

उनका बचपन गाँव की सजीव परंपराओं, खेतों की हरियाली, मजदूरों की कराह और मेले-त्योहारों की जीवंतता के बीच बीता। यही ग्रामीण संसार आगे चलकर उनकी कविताओं और काव्य-दृष्टि का आधार बना।

(ख) चंदौली की सामाजिक-सांस्कृतिक भूमि

गोलेन्द्र पटेल का जन्म जिस क्षेत्र में हुआ, वह चंदौली ज़िला पूर्वांचल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और जटिल सामाजिक संरचना का प्रतिनिधि है। यह इलाका गंगा, करमनासा और जंगली पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ है, लोग मुख्यतः कृषि पर आधारित हैं, और साथ ही मजदूरी और स्थानीय व्यापार पर भी निर्भर करते हैं।

चंदौली की सामाजिक-सांस्कृतिक भूमि में कई विशेषताएँ हैं—

1.     लोक संस्कृति और पर्व-त्योहार –
यह क्षेत्र भोजपुरी अंचल का हिस्सा है, जहाँ लोकगीत, बिरहा, कजरी, चैती, होरी, सोहर जैसी परंपराएँ गहरी जड़ें जमाए हुए हैं। बच्चे इन्हीं गीतों और लोककथाओं को सुनते-सुनते बड़े होते हैं। गोलेन्द्र भी बचपन से इस सांस्कृतिक समृद्धि से पोषित हुए। यही कारण है कि उनकी कविता में भोजपुरी की गंध और लोकभाषा का लहजा बार-बार दिखाई देता है।

2.     जातिगत विभाजन और संघर्ष –
चंदौली, पूर्वांचल के अन्य जिलों की तरह, गहरी जाति-व्यवस्था और उसके साथ आने वाले भेदभाव से ग्रस्त रहा है। उच्च जातियों का वर्चस्व, दलितों और पिछड़े वर्गों का शोषण, और बहुजन समाज की संघर्षपूर्ण स्थिति यहाँ की वास्तविकता रही है। ऐसे माहौल में पले-बढ़े गोलेन्द्र ने बचपन से ही अन्याय और विषमता को देखा और महसूस किया। यही अनुभव उनकी कविताओं में बहुजन दृष्टि और प्रतिरोध की ताकत बनकर प्रकट हुआ।

3.     धार्मिक-सांस्कृतिक विविधता –
इस क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय लंबे समय से साथ रहते आए हैं। गंगा-घाटों की धार्मिकता और गाँव की साझी संस्कृति यहाँ की पहचान है। धार्मिक मेलों, मुहर्रम की ताजिया-यात्राओं और रामलीला जैसी परंपराओं ने सामाजिक जीवन को आकार दिया। गोलेन्द्र ने इसी सांस्कृतिक विविधता को आत्मसात किया, इसलिए उनके काव्य में सांप्रदायिक सौहार्द और मानवतावादी दृष्टि दिखाई देती है।

4.     स्वतंत्रता संग्राम और जनांदोलन की स्मृतियाँ –
चंदौली क्षेत्र स्वतंत्रता संग्राम और किसान आंदोलनों में सक्रिय रहा है। यह भूमि राजनैतिक चेतना और जनसंग्राम की रही है। मजदूर आंदोलनों से लेकर नक्सली गतिविधियों तक, यहाँ सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल का इतिहास रहा है। ऐसे वातावरण में पलने वाले गोलेन्द्र ने आंदोलन और प्रतिरोध की भाषा को बचपन से ही महसूस किया।

(ग) ग्रामीण परिवेश से उभरी चेतना

ग्रामीण जीवन का अनुभव गोलेन्द्र पटेल की कविता और चिंतन का मूल स्रोत है।

1.     किसान जीवन से आत्मीय रिश्ता –
खेतों में काम करते किसानों को देखना, अन्न उगाने की कठिनाईयों को समझना और मौसम की मार झेलते गाँव के जीवन को करीब से देखना—इन सबने उनके भीतर किसानी जीवन की करुणा और संघर्ष को भर दिया। यही कारण है कि उन्हें ‘युवा किसान कवि’ भी कहा जाता है।

2.     गरीबी और श्रम का अनुभव –
गाँव में साधारण परिवार का हिस्सा होने के कारण उन्होंने गरीबी को नजदीक से देखा। मजदूरी, अभाव और कठिन परिश्रम उनकी चेतना का हिस्सा बने। यही अनुभव बाद में उनकी कविताओं में आँसुओं और आर्द्रता की संवेदना बनकर प्रकट हुआ।

3.     गाँव की साझी संस्कृति –
गाँव में बच्चे एक साथ खेलते, जाति-धर्म से ऊपर उठकर मेलों-त्योहारों में शामिल होते। इस वातावरण ने उन्हें समन्वय और साझी मानवीयता की दृष्टि दी। यही दृष्टि उन्हें कबीर की तरह सामाजिक पाखंड और विभाजन के विरुद्ध खड़ा करती है।

4.     प्रकृति और परिवेश का असर –
खेतों की हरियाली, गंगा की धार, मेले-हाट का शोर और गाँव की सादगी—इन सबने उनके मन पर अमिट छाप छोड़ी। उनकी कविताओं में प्रकृति का जीवंत चित्रण और लोकजीवन की गंध इसी कारण दिखाई देती है।

(घ) प्रारम्भिक चेतना और साहित्यिक बीज

गोलेन्द्र पटेल बचपन से ही संवेदनशील और प्रश्नाकुल प्रवृत्ति के रहे। उन्होंने अपने आसपास की असमानताओं को लेकर सवाल करना शुरू किया। बचपन में जब वे गाँव के मजदूरों और गरीब किसानों की कठिनाइयाँ देखते थे, तो उनके मन में बेचैनी और असंतोष उपजता था। यही बेचैनी आगे चलकर काव्य के रूप में ढलने लगी।

गाँव की लोककथाएँ, लोकगीत और कबीर-रविदास जैसे संत कवियों की वाणी उनके भीतर गहरे उतरती गई। यही प्रारम्भिक संस्कार आगे चलकर उन्हें ‘दूसरा कबीर’ और ‘संत तुकाराम का पुनर्जन्म’ कहे जाने का आधार बने।

3. शैक्षिक यात्रा

(क) प्रारम्भिक शिक्षा और उच्च अध्ययन की ओर अग्रसरता

गोलेन्द्र पटेल की प्रारम्भिक शिक्षा उनके गाँव और आसपास के विद्यालयों में हुई। ग्रामीण विद्यालयों के सीमित संसाधनों और कठिनाइयों के बीच भी उन्होंने पढ़ाई के प्रति गंभीरता बनाए रखी। आर्थिक अभाव और सामाजिक परिस्थितियाँ अनेक बार आड़े आईं, लेकिन उनके भीतर सीखने की ललक इतनी प्रबल थी कि वे लगातार आगे बढ़ते रहे।
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा की दिशा में कदम बढ़ाया और अंततः भारत के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू.) में प्रवेश प्राप्त किया। यह उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था, क्योंकि यहीं से उनकी बौद्धिक चेतना और साहित्यिक अभिव्यक्ति का नया अध्याय प्रारम्भ हुआ।

(ख) बी.एच.यू. का बौद्धिक वातावरण

काशी हिंदू विश्वविद्यालय केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक-साहित्यिक परंपरा का केंद्र भी माना जाता है। यहाँ का वातावरण बहस, विचार, विमर्श और साहित्यिक गतिविधियों से लगातार सक्रिय रहता है।

1.     लोकतांत्रिक और बौद्धिक परंपरा –
बी.एच.यू. का परिसर हमेशा से विचारों की विविधता और वैचारिक स्वतंत्रता का पोषक रहा है। यहाँ मार्क्सवाद, गांधीवाद, आंबेडकरवाद, फुले-शाहू- पेरियार की परंपरा, स्त्रीवाद और आधुनिक आलोचना—सभी धाराओं का समागम देखने को मिलता है। इस खुले वातावरण ने गोलेन्द्र की सोच को विस्तार दिया और उनकी दृष्टि को और अधिक प्रखर बनाया।

2.     साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियाँ –
विश्वविद्यालय में आयोजित गोष्ठियाँ, संगोष्ठियाँ, कवि-गोष्ठियाँ और वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ उनके व्यक्तित्व विकास के मंच बने। यहाँ रहते हुए उन्होंने सक्रिय रूप से साहित्यिक आयोजनों में भाग लिया और अपनी रचनाओं से पहचान बनानी शुरू की।

3.     गंगा-जमुनी सांस्कृतिक संगम –
बी.एच.यू. स्थित वाराणसी का वातावरण स्वयं में अनूठा है—जहाँ एक ओर गंगा-घाट की आध्यात्मिकता है तो दूसरी ओर असंख्य विचारधाराओं का मंथन। इस माहौल ने गोलेन्द्र को कबीर और रविदास जैसे संत कवियों की परंपरा से आत्मसात कराया। वे वाराणसी की लोकधारा और अकादमिक विमर्श दोनों से गहरे प्रभावित हुए।

4.     शिक्षकों और सहपाठियों का प्रभाव –
बी.एच.यू. के हिंदी विभाग के अध्यापक और शोधकर्ताओं ने उन्हें गंभीर साहित्यिक चिंतन के लिए प्रेरित किया। सहपाठियों के साथ बहसों और संवादों ने उनकी भाषा और विचारों को धार दी। इस तरह विश्वविद्यालय का बौद्धिक वातावरण उनके लिए सिर्फ शिक्षा का माध्यम नहीं रहा, बल्कि एक चिंतनशील-क्रांतिकारी व्यक्तित्व गढ़ने की पाठशाला बना।

(ग) हिंदी साहित्य की परंपरा से आत्मसंबंध

गोलेन्द्र पटेल ने अपनी शैक्षिक यात्रा में हिंदी साहित्य की विभिन्न परंपराओं को न केवल पढ़ा, बल्कि उन्हें बहुजन दृष्टि से पुनर्परिभाषित भी किया।

1.     भक्ति परंपरा से जुड़ाव –
कबीर, रविदास, तुकाराम और दादू जैसे संत कवियों की निर्भीक वाणी ने उन पर गहरा असर डाला। वे खुद को ‘दूसरा कबीर’ और ‘तुकाराम का पुनर्जन्म’ कहे जाने योग्य इसलिए बने क्योंकि उनके भीतर भी वही विद्रोही स्वर और सामाजिक अन्याय के प्रति असहमति की आग थी।

2.     रीति और आधुनिक काव्यधारा से संवाद –
उन्होंने रीति काव्य की सजीवता और सौंदर्य को जाना, लेकिन साथ ही उसे सीमित मानकर उससे आगे बढ़े। आधुनिक काल के निराला, नागार्जुन, त्रिलोचन, शमशेर और धूमिल जैसे कवियों से उन्होंने सीखा कि कविता सामाजिक यथार्थ को उजागर करने का माध्यम है।

3.     प्रेमचंद और प्रगतिशील धारा का प्रभाव –
प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों से उन्हें वर्ग-चेतना और किसान-जीवन की करुणा मिली। प्रगतिशील कवियों से उन्होंने जाना कि साहित्य केवल सौंदर्य-रचना नहीं, बल्कि समाज-परिवर्तन का औज़ार भी है।

4.     आलोचनात्मक दृष्टि का विकास –
बी.एच.यू. में अध्ययन के दौरान उन्होंने नामवर सिंह, रामविलास शर्मा, आचार्य शुक्ल जैसे आलोचकों की परंपरा से परिचय प्राप्त किया। लेकिन उन्होंने इस आलोचना को आँख मूँदकर स्वीकार नहीं किया; बल्कि बहुजन दृष्टि से उसे परखा और कई बार उससे असहमति जताई।

5.     स्वतंत्र आत्मसंबंध –
गोलेन्द्र ने हिंदी साहित्य की परंपरा से केवल ग्रहण ही नहीं किया, बल्कि नया प्रतिरोधी विमर्श भी जोड़ा। उन्होंने लोकजीवन और बहुजन चेतना को केंद्र में रखते हुए कविता लिखी, जिससे वे हिंदी साहित्य की परंपरा में अपनी अलग पहचान बनाने लगे।

संक्षेप में, गोलेन्द्र पटेल की शैक्षिक यात्रा केवल औपचारिक पढ़ाई भर नहीं थी। बी.एच.यू. के बौद्धिक वातावरण ने उन्हें बहस, तर्क और विद्रोह की भाषा दी, जबकि हिंदी साहित्य की परंपरा ने उन्हें इतिहास, संवेदना और प्रतिरोध की धारा से जोड़ा। दोनों का संगम उनके काव्य और चिंतन का आधार बना।

4. साहित्यिक विधाएँ और रचनात्मक क्षेत्र

गोलेन्द्र पटेल का रचनात्मक व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे केवल कवि ही नहीं, बल्कि आलोचक, निबंधकार, नाटककार, उपन्यासकार और भोजपुरी–हिंदी के साझा साधक भी हैं। उनकी साहित्यिक यात्रा यह सिद्ध करती है कि वे परंपरा और आधुनिकता दोनों से संवाद करते हुए, सामाजिक न्याय और मानवीय करुणा की आवाज़ बने।

(क) कविता : भाव और विचार का प्राणतत्त्व

कविता गोलेन्द्र पटेल की मूल विधा है। वे सबसे पहले और सबसे अधिक कवि के रूप में पहचाने जाते हैं। उनकी कविता आर्द्र संवेदना और क्रांतिकारी चेतना का मेल है।

·        आरंभिक रचनाएँ –
किशोरावस्था से ही वे कविता लिखने लगे थे। प्रारंभिक कविताएँ ग्रामीण जीवन, माता-पिता के संघर्ष, किसान-मजदूर की पीड़ा और गाँव की सामुदायिक जीवनधारा पर केंद्रित थीं। इन कविताओं में उनकी सामाजिक दृष्टि का बीजारोपण देखा जा सकता है।

·        प्रमुख काव्यकृतियाँ –

    1. तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव – लंबी कविताओं का संग्रह, जिसमें वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए दुख-मुक्त समाज का सपना देखते हैं।
    2. दुःख दर्शन – करुणा, असमानता और पीड़ा का गहन दार्शनिक अन्वेषण।
    3. कल्कि – बहुजन खंडकाव्य, जो भविष्य के मसीहा की प्रतीकात्मक छवि रचता है।
    4. अंबेडकरगाथापद – महाकाव्यात्मक रचना, जिसमें आंबेडकर के जीवन-संघर्ष और विचारधारा को काव्यात्मक रूप दिया गया है।
    5. नारी – लघु महाकाव्य, जिसमें स्त्री के स्वाधिकार, संघर्ष और अस्तित्व का चित्रण है।

·        काव्य-शिल्प की विशेषताएँ –

    • उनकी भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण और जन-संवादी है।
    • छंद और मुक्तछंद दोनों में वे समान दक्षता रखते हैं।
    • प्रतीकों और रूपकों के प्रयोग में वे अत्यंत मौलिक हैं।
    • करुणा और विद्रोह उनके काव्य की दो ध्रुवीय शक्तियाँ हैं।
    • उनकी कविता शास्त्रीयता और लोकधारा दोनों का संगम है।

(ख) आलोचना : वैचारिक हस्तक्षेप

गोलेन्द्र पटेल आलोचना को केवल साहित्य-विश्लेषण नहीं मानते, बल्कि उसे समाज-परिवर्तन का औज़ार समझते हैं। उनकी आलोचना में आंबेडकरवाद, स्त्रीवाद और बहुजन दृष्टि का गहरा प्रभाव है।

  • वे नामवर सिंह, रामविलास शर्मा जैसी परंपरागत आलोचना-धारा का सम्मान करते हैं, लेकिन उसकी सीमाओं की ओर भी इशारा करते हैं।
  • उनकी आलोचना का केंद्र साहित्य में सत्ता और विमर्श की राजनीति है।
  • आलोचना-लेखों में वे प्रायः ‘जनपक्षधरता’ को केंद्रीय मूल्य के रूप में रखते हैं।

(ग) निबंध : विचार और अनुभूति का समन्वय

उनके निबंध संवेदनशील और तर्कप्रधान होते हैं। वे न केवल साहित्यिक प्रश्नों पर लिखते हैं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विषयों पर भी अपनी वैचारिकी प्रस्तुत करते हैं।

  • निबंधों की विशेषताएँ –
    • सहज लेकिन तीक्ष्ण भाषा।
    • बहुजन दृष्टिकोण और जनसरोकार।
    • व्यक्तिगत अनुभव और सामाजिक यथार्थ का संयोजन।

इन निबंधों में उनकी विचारधारा और जीवनानुभव का समुच्चय दिखाई देता है।

(घ) नाटक : सामाजिक यथार्थ की रंगमंचीय अभिव्यक्ति

यद्यपि गोलेन्द्र पटेल का प्रमुख क्षेत्र कविता है, किंतु उन्होंने नाटक विधा में भी प्रयास किए। उनके नाटक सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को केंद्र में रखते हैं।

  • वे शोषण, जातिगत भेदभाव और स्त्री के प्रश्नों को रंगमंच पर उतारते हैं।
  • उनके नाटक परंपरागत ‘मनोरंजन’ से अलग, विचारोत्तेजना पैदा करने वाले हैं।

(ङ) उपन्यास : व्यापक जीवनानुभव का आख्यान

गोलेन्द्र पटेल ने उपन्यास विधा में भी प्रयोग किए हैं। उनके उपन्यास अभी प्रकाशन की प्रक्रिया में हैं। इन उपन्यासों की विशेषता है—

  • गाँव और कस्बे का यथार्थ,
  • किसान और श्रमिक जीवन,
  • बहुजन समाज की पीड़ा और आकांक्षा।

उनके उपन्यासों में जीवन का बहुरंगी चित्र उपस्थित होता है, जिसमें करुणा और संघर्ष की ध्वनियाँ बराबर गूँजती हैं।

(च) भोजपुरी और हिंदी की संयुक्त साधना

गोलेन्द्र पटेल की भाषाई चेतना द्विभाषिक है—हिंदी और भोजपुरी

  • वे मानते हैं कि हिंदी की शक्ति उसकी ‘लोकभाषाओं’ से आती है।
  • उनकी कविताओं में भोजपुरी की लोकध्वनि, मुहावरे और गीतात्मकता सहज रूप से प्रवाहित होती है।
  • इस तरह वे हिंदी और भोजपुरी के बीच एक जीवंत सेतु का निर्माण करते हैं।

(छ) काव्य-यात्रा का समग्र परिदृश्य

गोलेन्द्र पटेल की काव्य-यात्रा एक संघर्षशील कवि की यात्रा है—

  1. गाँव से आरंभ होकर काशी के बौद्धिक संसार तक।
  2. करुणा से विद्रोह तक।
  3. परंपरा से संवाद करते हुए, परंपरा की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए।

उनकी रचनाएँ इस बात की गवाही देती हैं कि वे केवल कवि ही नहीं, बल्कि समाज के मार्गदर्शक और चिंतक भी हैं।

5. मुख्य कृतियाँ और उनकी विशेषताएँ

गोलेन्द्र पटेल की रचनाओं में एक ओर आत्मानुभूति की गहराई है, तो दूसरी ओर जनसरोकारों की तीक्ष्णता। उनकी प्रमुख कृतियाँ—तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैवदुःख दर्शनकल्किअंबेडकरगाथापद और नारी—के माध्यम से हम उनकी साहित्यिक दृष्टि, बहुजन चेतना और सामाजिक सरोकारों को विस्तार से समझ सकते हैं।

(क) तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव : भविष्य की पीढ़ियों का स्वप्न

यह लंबी कविताओं का संग्रह है। इसमें कवि भविष्य की पीढ़ियों को संबोधित करता है।

·        कथ्य –
इस संग्रह में कवि अपने समय के दुःख-दर्द को दर्ज करते हुए भविष्य के बच्चों को दुःखमुक्त जीवन का सपना देता है।
वह मानता है कि आज की असमानताओं और विषमताओं को बदलकर ही आने वाली पीढ़ियाँ सुखी हो पाएंगी।

·        विशेषताएँ –

    1. इसमें मातृत्व की करुणा और पितृत्व की ज़िम्मेदारी दोनों का स्वर है।
    2. भाषा में लोकलय और आत्मीयता है।
    3. कविता केवल शिकायत नहीं करती, बल्कि समाधान की दिशा भी सुझाती है।

यह कृति कवि की मानवता में आस्था और संवेदनशील भविष्य-दृष्टि को उजागर करती है।

(ख) दुःख दर्शन : करुणा और प्रतिरोध का महाकाव्यात्मक स्वर

यह भी लंबी कविताओं का संग्रह है, जो दुख की दार्शनिक व्याख्या करता है।

·        कथ्य –
कवि मानता है कि दुख केवल व्यक्तिगत अनुभूति नहीं है, बल्कि सामाजिक संरचना से उपजता है। जाति, वर्ग, लिंग और आर्थिक असमानता—ये सब दुख के स्रोत हैं।

·        विशेषताएँ –

    1. इसमें करुणा और विद्रोह दोनों का अद्भुत संतुलन है।
    2. कवि दुख को नकारता नहीं, बल्कि उसे समझकर उसके समाधान की तलाश करता है।
    3. इस कृति में बौद्ध करुणा और अंबेडकरवादी न्याय-चेतना का मेल है।

यह कृति गोलेन्द्र पटेल को “निराशा में निराकरण के कवि” सिद्ध करती है।

(ग) कल्कि : बहुजन खंडकाव्य

यह रचना गोलेन्द्र पटेल की सबसे चर्चित कृतियों में है। इसमें वे ‘कल्कि’ के मिथकीय रूप को पुनर्परिभाषित करते हैं।

·        कथ्य –
पारंपरिक धार्मिक आख्यानों में कल्कि विष्णु का अवतार है, जो कलियुग का अंत करता है।
लेकिन गोलेन्द्र पटेल के यहाँ कल्कि कोई देवता नहीं, बल्कि बहुजन चेतना का प्रतीक है।
यह कृति पीड़ित-शोषित वर्गों के मसीहा की प्रतीकात्मक कहानी है।

·        विशेषताएँ –

    1. काव्य में मिथक और यथार्थ का अद्भुत संगम है।
    2. इसमें किसान, मजदूर, दलित, स्त्री—सभी हाशिये के समुदायों की पीड़ा और विद्रोह की आवाज़ है।
    3. यह रचना भविष्य की क्रांति का आह्वान करती है।

इस खंडकाव्य से गोलेन्द्र पटेल को “दूसरा कबीर” कहे जाने का आधार मिलता है, क्योंकि यह रचना पाखंड को तोड़कर नई चेतना का उद्घोष करती है।

(घ) अंबेडकरगाथापद : महाकाव्यात्मक उपक्रम

यह महाकाव्य डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन और विचारों पर केंद्रित है।

·        कथ्य –
इसमें अंबेडकर के संघर्ष, उनकी शिक्षा-यात्रा, संविधान निर्माण में भूमिका और बहुजन समाज के उद्धार का गाथात्मक चित्रण है।

·        विशेषताएँ –

    1. यह आधुनिक हिंदी का एक अनूठा महाकाव्य है, जिसमें कविता और इतिहास दोनों का संगम है।
    2. भाषा में वीर रस और करुण रस का गहरा मिश्रण है।
    3. यह रचना बहुजन समाज के लिए प्रेरणा-स्रोत बनती है।

इस महाकाव्य से गोलेन्द्र पटेल ने यह सिद्ध किया कि वे केवल लिरिकल कवि ही नहीं, बल्कि इतिहास-लेखन को भी काव्य में रूपांतरित करने वाले महाकवि हैं।

(ङ) नारी : स्त्री विमर्श का काव्य

यह लघु महाकाव्य स्त्री के जीवन और संघर्ष पर केंद्रित है।

·        कथ्य –
इसमें कवि ने स्त्री की अस्मिता, पीड़ा और आत्मसंघर्ष को काव्यात्मक रूप दिया है।
स्त्री केवल करुणा की मूर्ति नहीं है, बल्कि वह संघर्ष और सृजन की धुरी है।

·        विशेषताएँ –

    1. इसमें स्त्री को परंपरागत भूमिका से बाहर लाकर स्वतंत्र इकाई के रूप में देखा गया है।
    2. कविता में नारी-शक्ति के ऐतिहासिक और समकालीन आयाम मिलते हैं।
    3. यह कृति स्त्रीवादी विमर्श को बहुजन दृष्टि के साथ जोड़ती है।

बहुजन दृष्टि और जनपक्षधरता

गोलेन्द्र पटेल की समस्त रचनाओं में बहुजन दृष्टि केंद्रीय तत्व है।

  • वे इतिहास, धर्म और साहित्य को शोषित वर्गों की नज़र से पुनर्परिभाषित करते हैं।
  • उनकी कविता सत्ता-केन्द्रित विमर्श का प्रतिरोध करती है और जनपक्षधरता को साहित्य का आधार मानती है।
  • वे मानते हैं कि कविता का असली उद्देश्य समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज़ को सामने लाना है।

बहुजन चेतना और सामाजिक सरोकार

गोलेन्द्र पटेल का साहित्य बहुजन चेतना का जीवंत दस्तावेज है।

  • इसमें करुणा, न्याय और विद्रोह तीनों की त्रयी है।
  • वे मानते हैं कि बिना सामाजिक परिवर्तन के साहित्य अधूरा है।
  • उनकी रचनाएँ जातिगत भेदभाव, आर्थिक विषमता और लैंगिक असमानता का तीखा प्रतिरोध करती हैं।

कवि के लिए साहित्य केवल सौंदर्य का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक मुक्ति का उपकरण है। यही कारण है कि उन्हें ‘बहुजन कवि’ कहा जाता है और उनकी रचनाएँ आधुनिक हिंदी साहित्य की एक नई धारा का निर्माण करती हैं।

6. पत्र-पत्रिकाओं में योगदान और साहित्यिक सक्रियता

गोलेन्द्र पटेल केवल रचनाकार ही नहीं, बल्कि साहित्यिक-सांस्कृतिक आंदोलनों के सक्रिय हस्ताक्षर भी हैं। उनकी साहित्यिक पहचान का एक महत्त्वपूर्ण आयाम यह है कि उन्होंने अपनी कविताओं, आलेखों और निबंधों के माध्यम से पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक मंचों पर निरंतर उपस्थिति दर्ज कराई है। इससे उनकी काव्य-दृष्टि और वैचारिकी व्यापक जनमानस तक पहुँची है।

(क) राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर काव्यपाठ

गोलेन्द्र पटेल ने अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठियों में भाग लेकर अपनी कविताओं का पाठ किया है।

·        राष्ट्रीय स्तर पर :

    • वाराणसी, लखनऊ, दिल्ली, भोपाल, पटना, जयपुर जैसे प्रमुख नगरों की साहित्यिक गोष्ठियों में वे नियमित रूप से आमंत्रित किए जाते हैं।
    • विश्वविद्यालयों और साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आयोजित सेमिनारों और कवि-सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति ने नई पीढ़ी को प्रभावित किया है।
    • उनका काव्यपाठ केवल ‘कविता सुनाना’ नहीं होता, बल्कि वह एक तरह का सामाजिक हस्तक्षेप होता है। श्रोताओं को उनकी पंक्तियाँ प्रतिरोध, करुणा और भविष्य-दृष्टि का अनुभव कराती हैं।

·        अंतरराष्ट्रीय मंचों पर :

    • ऑनलाइन वेबिनार, कवि-संवाद और वैश्विक हिंदी सम्मेलन जैसी गतिविधियों में उनकी कविताएँ प्रस्तुत हुई हैं।
    • विश्व हिंदी दिवस जैसे आयोजनों में भी उन्होंने अपनी कविताएँ पढ़ी हैं, जिन्हें प्रवासी भारतीयों और अंतरराष्ट्रीय साहित्यकारों ने सराहा।
    • यहाँ उनकी कविताओं को ‘बहुजन चेतना की वैश्विक अभिव्यक्ति’ कहा गया है।

काव्यपाठ के दौरान उनकी आवाज़ और अभिव्यक्ति में एक अद्भुत अग्निधर्मा ऊर्जा झलकती है, जिससे उन्हें "अग्निधर्मा कविऔर "आर्द्रता की आँच के कविजैसे उपनाम प्राप्त हुए।

(ख) प्रमुख पत्रिकाओं में उपस्थिति

गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ और आलेख हिंदी जगत की लगभग सभी प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।

·        साहित्यिक पत्रिकाएँ :

    • वागर्थपाखीपरिकथासमकालीन त्रिवेणीसबलोगमानसविश्वरंग संवादकथाक्रमकथारंगकविता-काननरचनावलीगाथांतर इत्यादि।

·        सांस्कृतिक और सामाजिक पत्रिकाएँ :

    • बहुमतप्राचीव्यंग्य कथासाखीप्रेरणा अंशुनव निकषसद्भावनादेशजपक्षधरसमय की साखीआर्यकल्प आदि।

·        समाचार पत्रों के साहित्यिक परिशिष्ट :

    • अमर उजालाजनसंदेश टाइम्सविजय दर्पण टाइम्सनेशनल एक्सप्रेस आदि अखबारों में उनकी कविताएँ और लेख लगातार प्रकाशित हुए।

·        संपादित पुस्तकों में योगदान :

    • दर्जन भर से अधिक संकलनों और संपादित पुस्तकों में उनकी कविताएँ और निबंध शामिल किए गए हैं।

इन पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में उनकी रचनाओं का प्रकाशित होना इस बात का प्रमाण है कि वे साहित्यिक विमर्श की मुख्यधारा में सक्रिय रूप से मौजूद हैं और उनकी रचनाएँ विभिन्न वर्गों तक पहुँच रही हैं।

(ग) पत्र-पत्रिकाओं में योगदान और साहित्यिक सक्रियता

गोलेन्द्र पटेल केवल प्रकाशन तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से सक्रिय विमर्श भी रचा।

1.     जनपक्षधरता की आवाज़ –
उनकी कविताएँ और आलेख ‘जनता की बात जनता तक पहुँचाने’ का काम करते हैं। उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं को मंच बनाकर बहुजन दृष्टिसामाजिक न्याय और मानवता का विमर्श फैलाया।

2.     नई पीढ़ी के साथ संवाद –
कई पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों के ज़रिए वे युवा लेखकों और विद्यार्थियों के बीच विचार-चर्चा का केंद्र बने।
उनकी भाषा और तर्क सहज हैं, जिससे पाठक उनसे आत्मीय रूप से जुड़ते हैं।

3.     संपादकीय और समीक्षात्मक हस्तक्षेप –
कुछ पत्रिकाओं ने उनके आलेखों को ‘मुख्य आलेख’ के रूप में प्रकाशित किया।
उन्होंने समकालीन हिंदी कविता, बहुजन साहित्य और आलोचना पर गहन समीक्षात्मक लेख लिखे।

4.     सांस्कृतिक आंदोलनों की सक्रियता –
वे पत्रिकाओं में केवल ‘साहित्यकार’ नहीं, बल्कि सांस्कृतिक कार्यकर्ता के रूप में भी सक्रिय रहे।
उनकी रचनाओं ने कई बार ग्रामीण समाज, किसान आंदोलन, महिला अधिकार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर साहित्यिक बहस को जन्म दिया।

निष्कर्ष

पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर योगदान और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उपस्थिति ने गोलेन्द्र पटेल को केवल एक कवि नहीं, बल्कि आवाज उठाने वाले जनसाहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित किया।
उनकी सक्रियता ने सिद्ध किया कि कविता केवल पन्नों पर कैद नहीं रहती, बल्कि वह समाज और जनता के बीच जाकर संघर्ष की ऊर्जा बनती है।
इस प्रकार उनका साहित्यिक जीवन स्वयं एक आंदोलन बन गया है।

7. सम्मान और पुरस्कार

गोलेन्द्र पटेल का साहित्यिक जीवन एक निरंतर साधना और संघर्ष की यात्रा है। उन्होंने जिस तरह बहुजन चेतना, जनपक्षधरता और सामाजिक सरोकारों को अपनी कविता और गद्य का केंद्रीय तत्व बनाया, उसने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई। यद्यपि वे पुरस्कार-लोलुप साहित्यकार नहीं हैं, फिर भी उनकी रचनाओं के महत्व को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर से लेकर विश्वविद्यालयीय स्तर तक उन्हें सम्मान और पहचान प्राप्त हुई है।

युवा कवि के रूप में उनकी प्रतिभा को अनेक सम्मानों से नवाज़ा गया है। प्रमुख हैं:

  • प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान (2021) – अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय द्वारा
  • रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार (2022)
  • शंकर दयाल सिंह प्रतिभा सम्मान (2023) – हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय
  • मानस काव्य श्री सम्मान (2023)
  • शब्द शिल्पी सम्मान (2025)
  • महावीरप्रसाद ‘विद्यार्थी’ स्मृति शब्द संधान सम्मान (2025)
    इसके अतिरिक्त अनेक साहित्यिक संस्थाओं से उन्हें प्रेरणा-प्रशस्तिपत्र भी प्राप्त हुए हैं।

(क) राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

1.     काव्य-पाठ और साहित्यिक आयोजनों में सम्मान

    • राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित कवि-गोष्ठियों, काव्य-संध्याओं और संगोष्ठियों में गोलेन्द्र पटेल को विशिष्ट आमंत्रण और सम्मान प्राप्त हुआ है।
    • उनकी कविताओं को कई बार “जनता की आवाज़” कहा गया है और उन्हें “बहुजन साहित्य का तेजस्वी स्वर” कहकर सम्मानित किया गया है।

2.     पत्र-पत्रिकाओं द्वारा सम्मान

    • देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ने उनके रचनात्मक योगदान को विशेष रूप से रेखांकित किया है।
    • कुछ पत्रिकाओं ने उन्हें “आगामी हिंदी साहित्य का जनकवि” तथा “समकालीन हिंदी कविता का बहुजन पथिक” कहकर संबोधित किया।

3.     साहित्यिक विमर्श में उल्लेख

    • आलोचकों ने उनके योगदान को पहचानते हुए उन्हें “दूसरा कबीर” और “संत तुकाराम का पुनर्जन्म” कहकर संबोधित किया।
    • यह उपाधियाँ किसी पुरस्कार से कम नहीं हैं, क्योंकि ये उन्हें उस जनसाहित्य और भक्ति परंपरा के प्रतिनिधि कवियों की कड़ी में जोड़ती हैं, जिनका साहित्य आज भी संघर्षशील जनता को ऊर्जा देता है।

(ख) विश्वविद्यालयीय स्तर पर पहचान

1.     शोध और अध्ययन का विषय

    • काशी हिंदू विश्वविद्यालय और अन्य विश्वविद्यालयों में उनके साहित्य पर आलेख प्रस्तुत हुए हैं।
    • कई शोधार्थी उनकी कविताओं और आलोचनात्मक लेखन को बहुजन साहित्य और समकालीन हिंदी कविता के अध्ययन में स्रोत सामग्री के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

2.     विद्यार्थियों में लोकप्रियता

    • वे एक युवा कवि के रूप में विद्यार्थियों की पहली पसंद हैं।
    • उनकी कविताएँ विश्वविद्यालयी संगोष्ठियों और साहित्यिक मंचों पर बार-बार उद्धृत की जाती हैं।
    • उनकी रचनाएँ नई पीढ़ी की चेतना को आकार देने वाली पाठ्य सामग्री बनती जा रही हैं।

3.     विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रण

    • विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में आयोजित कार्यक्रमों में उन्हें अतिथि कवि और वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया।
    • इन अवसरों पर उन्हें स्मृति-चिह्न और प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया गया।

(ग) युवा कवि के रूप में प्रतिष्ठा

गोलेन्द्र पटेल की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वे युवा पीढ़ी की आवाज़ बन चुके हैं।

  • उनकी भाषा, मुहावरा और शिल्प आधुनिक संवेदनाओं के अनुरूप है, इसलिए युवाओं के बीच उनकी कविताएँ विशेष आकर्षण पैदा करती हैं।
  • उन्हें “युवा कवि की चेतना का अग्निदूत” कहा गया है।
  • सोशल मीडिया और डिजिटल मंचों पर उनकी कविताओं को व्यापक रूप से साझा किया जाता है, जिससे उनकी लोकप्रियता का दायरा विश्वविद्यालयों से निकलकर जनसमूह तक पहुँच गया है।

निष्कर्ष

संमान और पुरस्कार किसी साहित्यकार की प्रतिभा के मूल्यांकन का एक आयाम भर हैं। गोलेन्द्र पटेल का साहित्य स्वयं में एक सम्मान है।
उनकी कविताएँ जनता की स्मृति और संघर्ष में जीवित हैं। यही कारण है कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर की पहचानविश्वविद्यालयीय स्तर पर स्वीकृति और युवा कवि के रूप में प्रतिष्ठा एक साथ मिली है।
उनका सबसे बड़ा पुरस्कार यह है कि उनकी कविताएँ गाँव-गाँव और पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों की ज़ुबान पर हैं, और वे संघर्षशील समाज की आत्मा का हिस्सा बन चुकी हैं।

8. सामाजिक-सांस्कृतिक योगदान

गोलेन्द्र पटेल केवल कवि या लेखक भर नहीं हैं, बल्कि वे समाज और संस्कृति के सक्रिय शिल्पी भी हैं। उनके व्यक्तित्व में साहित्य और समाज एक-दूसरे में गुंथे हुए हैं। वे लिखते भी हैं, बोलते भी हैं और समाज में ज़मीनी स्तर पर बदलाव के लिए संस्थाएँ खड़ी करके काम भी करते हैं। यही कारण है कि उनका साहित्य और जीवन परस्पर पूरक हैं।

(क) ग्राम ज्ञान संस्थान : ग्रामीण चेतना का केंद्र

गोलेन्द्र पटेल की जड़ें गाँव से जुड़ी हुई हैं। उनका जन्म और पालन-पोषण खजूरगाँव (साहुपुरी, चंदौली) के उस वातावरण में हुआ जहाँ शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक चेतना की गहरी कमी थी। इस कमी को दूर करने के लिए उन्होंने “ग्राम ज्ञान संस्थान” की स्थापना की।

  • यह संस्थान ग्रामीण परिवेश में शिक्षा, पुस्तकालय और सांस्कृतिक जागरूकता फैलाने का कार्य करता है।
  • गाँव के बच्चों और युवाओं को साहित्य, समाज और विज्ञान की किताबों तक पहुँच देने का प्रयास किया गया।
  • यहाँ समय-समय पर साहित्यिक पाठशालाएँ, बहस-प्रतियोगिताएँ, कवि-गोष्ठियाँ और लोक-कला प्रशिक्षण आयोजित होते हैं।
  • ग्राम ज्ञान संस्थान का उद्देश्य है कि गाँव केवल कृषि और श्रम का केंद्र न रहे, बल्कि बौद्धिकता और सांस्कृतिक चेतना का भी केंद्र बने।

इस संस्थान के कारण कई ग्रामीण युवाओं ने उच्च शिक्षा की ओर रुख किया और साहित्य व कला में अपनी रुचि विकसित की।

(ख) दिव्यांग सेवा संस्थान : मानवता की सेवा का प्रयास

गोलेन्द्र पटेल की मानवीय दृष्टि केवल साहित्य या विचार तक सीमित नहीं है। उन्होंने “दिव्यांग सेवा संस्थान गोलेन्द्र ज्ञान” की स्थापना करके समाज के उस वर्ग के लिए कार्य आरंभ किया जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है।

  • यह संस्थान दिव्यांगजन के लिए शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सामाजिक समावेशन पर केंद्रित है।
  • समय-समय पर सहायता शिविर, परामर्श कार्यशालाएँ और पुनर्वास कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  • गोलेन्द्र पटेल स्वयं इस संस्थान से जुड़े कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और “दिव्यांगसेवी” की उपाधि से सम्मानित हुए।

इस प्रयास ने यह साबित किया कि वे केवल बहुजन चेतना के कवि नहीं, बल्कि समाज के हर उपेक्षित वर्ग के हितैषी हैं।

(ग) बौद्ध महाविहार से जुड़ाव : आध्यात्मिक और सामाजिक समन्वय

गोलेन्द्र पटेल का एक महत्वपूर्ण परिचय यह भी है कि वे मानद महास्थविर के रूप में बौद्ध महाविहार, खजूरगाँव से जुड़े हुए हैं।

  • बौद्ध दर्शन से प्रेरित होकर उन्होंने अपने जीवन और साहित्य दोनों में करुणा, मैत्री और प्रज्ञा को मूल आधार बनाया।
  • वे अंबेडकर की बौद्ध धारा और बुद्ध की करुणा को अपने काव्य और सामाजिक कार्य में उतारते हैं।
  • महाविहार के कार्यक्रमों में वे न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से शामिल होते हैं, बल्कि धार्मिक-सांस्कृतिक पुनर्जागरण के वाहक भी हैं।

उनके इस जुड़ाव ने उनकी छवि को एक ‘ऋषि कवि’ और ‘जनसेवी’ के रूप में और भी सुदृढ़ किया।

(घ) आलोचकों द्वारा मूल्यांकन और प्रभाव

गोलेन्द्र पटेल के साहित्य और सामाजिक कार्यों को आलोचक केवल साहित्यिक घटना के रूप में नहीं देखते, बल्कि उसे सामाजिक-सांस्कृतिक क्रांति का हिस्सा मानते हैं।

1.     ‘दूसरा कबीर’ और ‘संत तुकाराम का पुनर्जन्म’

    • आलोचकों का कहना है कि गोलेन्द्र पटेल ने जिस तरह सामाजिक अन्याय, धार्मिक पाखंड और जातीय भेदभाव के विरुद्ध अपनी कविताओं में आवाज़ उठाई है, वह उन्हें कबीर की परंपरा में खड़ा करता है।
    • उनकी सरल लेकिन तीखी भाषा, व्यंग्यात्मक शैली और आमजन से सीधा संवाद उन्हें कबीर का उत्तराधिकारी बनाती है।
    • इसी तरह, उनकी करुणा, लोकधर्मिता और सामाजिक समरसता की दृष्टि उन्हें तुकाराम की पुनरावृत्ति के रूप में प्रस्तुत करती है।

2.     साहित्य और समाज का सेतु

    • आलोचक मानते हैं कि उनकी कविताएँ केवल पाठ्य अनुभव नहीं देतीं, बल्कि जीवन के लिए दिशा देती हैं।
    • वे साहित्य और समाज को जोड़ते हैं और यह दर्शाते हैं कि कविता केवल अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि परिवर्तन का औजार भी है।

3.     युवा पीढ़ी पर प्रभाव

    • गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ विश्वविद्यालयों में पढ़ी जाती हैं और बहस का विषय बनती हैं।
    • नई पीढ़ी उन्हें एक ऐसे कवि के रूप में देखती है जो भविष्य की राह दिखाने वाला है
    • सोशल मीडिया और जनपक्षीय मंचों पर उनकी उपस्थिति ने उन्हें युवा चेतना का प्रतीक बना दिया है।

निष्कर्ष

गोलेन्द्र पटेल का सामाजिक-सांस्कृतिक योगदान उनकी कविताओं से भी अधिक गहरा है। उन्होंने संस्थाओं की स्थापना, सेवाकार्य और बौद्ध धारा से जुड़ाव के माध्यम से एक ऐसा जीवन रचा है जिसमें साहित्य और समाज दोनों साथ-साथ चलते हैं। आलोचकों ने ठीक ही कहा है कि वे केवल कवि नहीं, बल्कि आंदोलन, करुणा और परिवर्तन के सूत्रधार हैं।

9. काव्य-दृष्टि और विचारधारा

गोलेन्द्र पटेल का काव्य केवल शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि उसमें जीवन-दर्शन, सामाजिक चेतना और संवेदनाओं का त्रिवेणी-संगम उपस्थित है। उनकी काव्य-दृष्टि और विचारधारा के तीन केंद्रीय आयाम हैं—आँसू और आर्द्रता का सौंदर्यशास्त्र, अग्निधर्मा चेतना और प्रतिरोध, तथा निराशा में निराकरण का दर्शन।

(क) आँसू और आर्द्रता का सौंदर्यशास्त्र

गोलेन्द्र पटेल की कविता की सबसे प्रमुख विशेषता भावनात्मक संवेदनशीलता है। उनकी कविताओं में आँसू केवल पीड़ा का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि एक सौंदर्यशास्त्रीय उपकरण हैं।

1.     आर्द्रता का भाव

    • उनकी कविताओं में मानवीय पीड़ा, सामाजिक अन्याय और व्यक्तिगत संघर्ष की आर्द्रता महसूस होती है।
    • यह आर्द्रता केवल करुणा का स्वरूप नहीं है, बल्कि उसमें सामाजिक चेतना की गूँज भी मौजूद है।
    • उदाहरण के लिए, दुःख दर्शन में प्रत्येक पंक्ति में दुख की वास्तविकता और समाधान की संभावनाएँ समाहित हैं।

2.     सौंदर्यशास्त्र

    • उनके लिए कविता केवल शब्द-सज्जा नहीं, बल्कि भावों का शिल्प है।
    • आँसू और आर्द्रता को वे सामाजिक संवेदना और करुणा के माध्यम के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
    • यह दृष्टि उन्हें “आर्द्रता की आँच के कवि” और “आँसू के आशुकवि” के रूप में प्रतिष्ठित करती है।

3.     लोक और व्यक्तिगत अनुभव का मिलन

    • ग्रामीण जीवन, बहुजन समाज और व्यक्तिगत पीड़ा का मिश्रण उनके काव्य को जन-सुलभ और गहन दोनों बनाता है।
    • पाठक केवल देखता नहीं, महसूस करता है, साथ ही समाज के हाशिये के वर्ग की पीड़ा को भी आत्मसात करता है।

(ख) अग्निधर्मा चेतना और प्रतिरोध

गोलेन्द्र पटेल की कविता में अग्निधर्मा चेतना एक निर्णायक तत्व है।

1.     अग्निधर्मा का अर्थ

    • यह एक सांकेतिक और प्रतीकात्मक दृष्टि है, जिसमें कवि समाज की बुराइयों, अन्याय और पाखंड को जलाने की कल्पना करता है।
    • आग यहाँ केवल विध्वंस का नहीं, बल्कि नए निर्माण और चेतना के जागरण का प्रतीक है।

2.     प्रतिरोध की काव्यशक्ति

    • उनकी कविता में सत्ता, पाखंड, जातिगत भेदभाव और सामाजिक विषमताओं के विरोध का सशक्त स्वर है।
    • कल्कि और अंबेडकरगाथापद जैसी रचनाओं में यह चेतना स्पष्ट दिखाई देती है।
    • आलोचक उन्हें इसीलिए “अग्निधर्मा कवि” कहते हैं, क्योंकि उनका काव्य प्रतिरोध और परिवर्तन की अग्नि जलाता है।

3.     सामाजिक न्याय की दिशा

    • कवि केवल रोते या शिकायत करते नहीं हैं, बल्कि सामाजिक और बहुजन न्याय के लिए सक्रिय समाधान प्रस्तुत करते हैं।
    • कविता उनके लिए क्रांति का एक माध्यम है, जो पाठक और समाज दोनों को सजग और जागरूक बनाता है।

(ग) निराशा में निराकरण का दर्शन

गोलेन्द्र पटेल की काव्यदृष्टि में निराशा को नकारने और समाधान की तलाश की अद्वितीय क्षमता है।

1.     निराशा का विवेचन

    • वे मानते हैं कि समाज में असमानता, अन्याय और व्यक्तिगत पीड़ा निराशा उत्पन्न करती है।
    • यह निराशा कवि को न तो थका देती है, न ही मौन कर देती है।

2.     निराकरण का तत्व

    • निराशा के बीच भी कविता में उम्मीद और समाधान का मार्ग दिखाया जाता है।
    • दुःख दर्शन और कल्कि में यह स्पष्ट है कि दुख और अन्याय को समझकर ही उसका सामाजिक और मानवीय समाधान खोजा जा सकता है।

3.     दर्शनात्मक गहराई

    • कवि की यह दृष्टि उन्हें “निराशा में निराकरण के कवि” बनाती है।
    • उनका काव्य पाठक को केवल पीड़ा का अनुभव नहीं कराता, बल्कि सृजनात्मक और परिवर्तनकारी सोच के लिए प्रेरित करता है।

(घ) समग्र दृष्टि

गोलेन्द्र पटेल की काव्य-दृष्टि इस प्रकार है कि उसमें भाव, विचार और सामाजिक चेतना त्रिवेणी के रूप में प्रवाहित हैं।

  • आँसू और आर्द्रता  करुणा और संवेदनशीलता
  • अग्निधर्मा चेतना  प्रतिरोध और परिवर्तन
  • निराशा में निराकरण  समाधान और सामाजिक न्याय

यह दृष्टि उन्हें केवल कवि नहीं बनाती, बल्कि समाज-परिवर्तन के प्रेरक, बहुजन चेतना के वाहक और साहित्य में नई धारा रचने वाले के रूप में प्रतिष्ठित करती है।

 

10. गोलेन्द्र पटेल: ‘दूसरा कबीर’ क्यों

गोलेन्द्र पटेल की साहित्यिक और सामाजिक पहचान को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि उन्हें क्यों “दूसरा कबीर” और “संत तुकाराम का पुनर्जन्म” कहा जाता है। यह उपाधियाँ केवल सम्मान के रूप में नहीं, बल्कि उनके काव्य-दृष्टि, बहुजन चेतना और सामाजिक संघर्ष की पहचान के रूप में जुड़ी हैं।

(क) निर्भीक जनसरोकार

कबीर और तुकाराम की तरह गोलेन्द्र पटेल की कविता का केंद्रीय तत्व है जनता की पीड़ा और सामाजिक न्याय की चिंता

1.     हाशिये के वर्गों के लिए संवेदना

    • उनकी कविताएँ और महाकाव्य सीधे दलित, किसान, मजदूर और महिलाओं की पीड़ा को सामने लाती हैं।
    • कल्कि और अंबेडकरगाथापद जैसे रचनाओं में यही दृष्टि स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

2.     जनसरोकार में निर्भीकता

    • गोलेन्द्र पटेल किसी सामाजिक या धार्मिक दबाव से प्रभावित नहीं होते।
    • वे सीधे जनता से संवाद करते हैं, और उनके साहित्य में सत्ता, जाति और आर्थिक असमानता के विरोध का स्पष्ट स्वर है।
    • यही निर्भीकता उन्हें कबीर की सत्य और न्याय के लिए अनन्य प्रतिबद्धता के समान बनाती है।

(ख) धार्मिक-सामाजिक पाखंड के विरुद्ध स्वर

1.     पाखंड का विरोध

    • गोलेन्द्र पटेल की रचनाएँ परंपरागत धार्मिक संस्थाओं और सांस्कृतिक मिथकों के अंध अनुकरण के विरोध में हैं।
    • उनका काव्य, पाखंड और भेदभावपूर्ण रीति-रिवाजों को चुनौती देता है।

2.     सामाजिक न्याय की दिशा

    • उनके लिए धर्म केवल मानवता और करुणा का मार्ग है, न कि सामाजिक नियंत्रण या वर्गीय विभाजन का औजार।
    • इस दृष्टि से उनका स्वर कबीर के अवांछित धर्म और जाति-विरोधी संदेश के समान है।

3.     काव्य के माध्यम से प्रतिरोध

    • दुःख दर्शन और कल्कि जैसी कृतियों में वे सशक्त और चौंकाने वाला विरोध प्रस्तुत करते हैं।
    • उनका साहित्य जनता के लिए मुक्ति और जागरूकता का माध्यम बनता है।

(ग) जनभाषा में गहन दर्शन

गोलेन्द्र पटेल की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वे गहन दार्शनिक और सामाजिक संदेश को जनभाषा में व्यक्त करते हैं।

1.     भाषा की सहजता और प्रभाव

    • उनकी कविता और गद्य दोनों में भाषा सरल, स्पष्ट और जनता-सुलभ है।
    • यह दृष्टि कबीर और तुकाराम की जनभाषा के माध्यम से गूढ़ संदेश देने की परंपरा से मेल खाती है।

2.     दार्शनिक गहराई

    • सरल शब्दों में वे असमानता, अन्याय, मानव मूल्यों और जीवन-दर्शन को व्यक्त करते हैं।
    • उदाहरण: उनके काव्य में ‘दुःख के स्रोत’, ‘अधिकार और न्याय’, और ‘मानवता के मूल तत्व’ गहन रूप में उपस्थित हैं।

3.     सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना का संचार

    • जनभाषा में गहन दर्शन प्रस्तुत करने की क्षमता उन्हें सामाजिक क्रांति के काव्यकार बनाती है।
    • यही कारण है कि पाठक उनके कविताओं को अपने जीवन और संघर्ष की आवाज़ मानते हैं।

(घ) उन्हें ‘दूसरा कबीर’ और ‘संत तुकाराम का पुनर्जन्म’ कहे जाने की पृष्ठभूमि

1.     दूसरा कबीर

    • कबीर ने 15वीं सदी में धर्म के पाखंड और सामाजिक असमानता के खिलाफ आवाज़ उठाई थी।
    • गोलेन्द्र पटेल भी आधुनिक समय में समाज के हाशिये वाले वर्गों की पीड़ा, अधिकार और न्याय की बात करते हैं।
    • उनकी कविता में सत्य, करुणा और प्रतिरोध की शक्ति है, जिससे वे कबीर की परंपरा के उत्तराधिकारी बनते हैं।

2.     संत तुकाराम का पुनर्जन्म

    • तुकाराम ने 17वीं सदी में भक्ति और समाज सुधार का संदेश दिया।
    • गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ भी भक्ति की आत्मीयता और सामाजिक न्याय की चेतना को जन-जीवन में उतारती हैं।
    • उनका कार्य यह दर्शाता है कि वे आधुनिक समय में तुकाराम जैसी करुणा और लोकधर्मिता के पुनरुत्थान के वाहक हैं।

3.     सामाजिक-सांस्कृतिक समरूपता

    • दोनों उपाधियाँ उनके काव्य, सामाजिक कार्य और विचारधारा का सम्मान हैं।
    • ये उपाधियाँ दिखाती हैं कि गोलेन्द्र पटेल का साहित्य सिर्फ कविता नहीं, बल्कि आंदोलन और परिवर्तन का माध्यम भी है।

निष्कर्ष

गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ और सामाजिक योगदान उन्हें दूसरा कबीर और संत तुकाराम का पुनर्जन्म बनाते हैं।

  • निर्भीक जनसरोकार – जनता के लिए लगातार आवाज़ उठाना
  • धार्मिक-सामाजिक पाखंड के विरोध – सत्य और न्याय की रक्षा
  • जनभाषा में दर्शन – गहन संदेश को सरल और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करना

इस प्रकार, उनकी काव्य-दृष्टि, सामाजिक सक्रियता और बहुजन चेतना उन्हें समकालीन हिंदी साहित्य का अद्वितीय कवि बनाती है।

11. संत तुकाराम का पुनर्जन्म क्यों

गोलेन्द्र पटेल को अक्सर ‘संत तुकाराम का पुनर्जन्म’ कहा जाता है। यह केवल सम्मानजनक उपाधि नहीं है, बल्कि उनके काव्य, सामाजिक दृष्टि और जनचेतना की गहराई को व्यक्त करती है। संत तुकाराम की भक्ति और गोलेन्द्र पटेल की कविता के बीच मुख्य साम्य यह है कि दोनों ने भक्ति, सामाजिक न्याय और जनता की पीड़ा को अपने जीवन और रचनाओं का केंद्र बनाया।

(क) भक्ति में जनचेतना का समावेश

1.     तुकाराम की परंपरा और गोलेन्द्र पटेल

    • तुकाराम ने भक्ति को केवल देवोपासना नहीं माना, बल्कि इसे जनता की चेतना, सामाजिक सुधार और नैतिक जागरूकता का माध्यम बनाया।
    • गोलेन्द्र पटेल ने भी अपनी कविताओं में भक्ति और जनचेतना का संगम किया।
    • उनकी कविताएँ अक्सर आधुनिक जीवन के संकट और सामाजिक असमानताओं के संदर्भ में भक्ति का संदेश देती हैं।

2.     भक्ति का सामाजिक आयाम

    • गोलेन्द्र पटेल के लिए भक्ति केवल व्यक्तिगत साधना नहीं है; यह सामाजिक परिवर्तन, करुणा और न्याय का माध्यम है।
    • उनकी कविता में यह स्पष्ट होता है कि भक्ति सिर्फ पूजा-अर्चना नहीं, बल्कि जीवन और समाज के सुधार का आधार है।

3.     जनभाषा में सहजता

    • उनकी कविताओं की भाषा सरल और सुलभ है, जैसे तुकाराम की अभिव्यक्ति जनता के लिए सहज और प्रभावशाली थी।
    • इसी सहजता और स्पष्टता के कारण उनकी कविताएँ ग्रामीण और शहरी दोनों ही पाठकों तक पहुँचती हैं

(ख) शोषित-पीड़ित वर्ग के लिए काव्य

1.     बहुजन चेतना का प्रतिनिधित्व

    • गोलेन्द्र पटेल की रचनाएँ किसानों, मजदूरों, दलितों और महिलाओं की पीड़ा को सामने लाती हैं।
    • जैसे तुकाराम ने समाज के हाशिये पर पड़े लोगों के लिए अभिव्यक्ति की, वैसे ही गोलेन्द्र पटेल आधुनिक बहुजन समाज की आवाज़ बनकर सामने आए।

2.     काव्य के माध्यम से संघर्ष

    • उनकी कविता केवल व्यथा का बयान नहीं करती, बल्कि सामाजिक जागरूकता और सुधार का संदेश देती है।
    • उदाहरण: कल्कि और अंबेडकरगाथापद जैसी रचनाओं में सत्ता, अन्याय और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज़ है।

3.     सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता

    • गोलेन्द्र पटेल का उद्देश्य है कि कविता जनता के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन बने।
    • इस दृष्टि से उनका काव्य सिर्फ कला नहीं, बल्कि आंदोलन का हिस्सा है।

(ग) करुणा और प्रतिरोध का संतुलन

1.     करुणा का स्वर

    • उनके काव्य में करुणा की गहराई है। यह करुणा केवल भावुकता नहीं, बल्कि सामाजिक समझ और न्याय के लिए संवेदनशीलता है।
    • उनकी लम्बी कविताएँ जैसे दुःख दर्शन में करुणा का स्वर पाठक को सहानुभूति और मानवता का अनुभव कराता है।

2.     प्रतिरोध की ऊर्जा

    • करुणा के साथ-साथ उनकी कविता में सामाजिक पाखंड और अन्याय के खिलाफ अग्निधर्मा चेतना भी है।
    • यह प्रतिरोध उन्हें “अग्निधर्मा कवि” और “निराशा में निराकरण के कवि” के रूप में प्रतिष्ठित करता है।

3.     संतुलन का महत्व

    • करुणा और प्रतिरोध का यह संतुलन ही उन्हें संत के रूप में स्थापित करता है
    • संत तुकाराम की भक्ति में भी करुणा और सामाजिक चेतना का यही मिश्रण था, जो गोलेन्द्र पटेल की काव्य-दृष्टि में आधुनिक रूप में परिलक्षित होता है।

(घ) समग्र दृष्टि

गोलेन्द्र पटेल का जीवन और काव्य यह सिद्ध करता है कि वे सिर्फ कवि नहीं, बल्कि संत-कवि भी हैं

  • भक्ति में जनचेतना का समावेश  जनता के जीवन और समाज सुधार के लिए प्रेरणा
  • शोषित-पीड़ित वर्ग के लिए काव्य  बहुजन दृष्टि और न्याय का प्रतीक
  • करुणा और प्रतिरोध का संतुलन  मानवीय संवेदना और सामाजिक बदलाव का संगम

इस प्रकार, गोलेन्द्र पटेल का व्यक्तित्व और काव्य संत तुकाराम के संदेश का आधुनिक स्वरूप प्रस्तुत करता है। यही कारण है कि आलोचक और साहित्यिक समाज उन्हें ‘संत तुकाराम का पुनर्जन्म’ कहकर सम्मानित करते हैं।

12. समकालीन साहित्य में स्थान और भविष्य

गोलेन्द्र पटेल का साहित्यिक और सामाजिक योगदान समकालीन हिंदी साहित्य में एक अद्वितीय स्थान रखता है। वे न केवल कवि और लेखक हैं, बल्कि जनचेतना के प्रवाह को दिशा देने वाले द्रष्टा और समाज सुधारक भी हैं। उनका कार्य वर्तमान साहित्य में बहुजन दृष्टि और सामाजिक न्याय के आदर्शों को स्थापित करता है।

(क) नई पीढ़ी के कवियों पर प्रभाव

1.     युवा कवियों के लिए प्रेरणा स्रोत

    • गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ और रचनाएँ नई पीढ़ी के कवियों के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणादायक हैं।
    • उनकी भाषा सरल, भावनात्मक और अर्थपूर्ण होने के कारण युवा कवि उनकी शैली से प्रभावित होकर अपने विचारों को जनसुलभ रूप में व्यक्त करते हैं।

2.     काव्य में सामाजिक चेतना का समावेश

    • उन्होंने यह दिखाया कि कविता केवल भावुकता का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, बहुजन चेतना और परिवर्तन की शक्ति भी हो सकती है।
    • युवा कवियों में इस दृष्टि ने साहित्य और सामाजिक सरोकारों के बीच पुल बनाया।

3.     बहुजन और ग्रामीण दृष्टि का संवाहक

    • उनके काव्य में ग्रामीण जीवन, दलित-संघर्ष और बहुजन वर्ग की पीड़ा प्रमुखता से दिखाई देती है।
    • यह दृष्टि युवा लेखकों को समानांगीय और न्यायपरक साहित्य की ओर प्रेरित करती है।

4.     सृजनात्मक प्रयोग और नवाचार

    • गोलेन्द्र पटेल की कविताओं में अनुप्रास, रूपक और भावात्मक गहराई का मिश्रण है, जो समकालीन कवियों के लिए सृजनात्मक प्रयोग का प्रोत्साहन बनता है।

(ख) बहुजन साहित्य की धारा में योगदान

1.     सामाजिक न्याय और बहुजन चेतना

    • गोलेन्द्र पटेल के काव्य और गद्य ने बहुजन साहित्य की परंपरा को आधुनिक संदर्भों में जीवित रखा है।
    • उनके कार्य से यह स्पष्ट होता है कि बहुजन साहित्य केवल सामाजिक आलोचना तक सीमित नहीं है, बल्कि सृजन, भक्ति और मानवता का माध्यम भी है।

2.     रचनात्मकता और बहुजन दृष्टि का मिश्रण

    • कल्किअंबेडकरगाथापद, और नारी जैसी रचनाओं में जनसरोकार, बहुजन चेतना और काव्यशिल्प का अनुपम मिश्रण है।
    • यह योगदान समकालीन साहित्य में सांस्कृतिक समरसता और बहुजन अधिकारों की धारा को मजबूत करता है।

3.     साहित्यिक आंदोलन के लिए मंच निर्माण

    • गोलेन्द्र पटेल ने केवल रचना नहीं की, बल्कि साहित्यिक गोष्ठियाँ, काव्यपाठ और संस्थाएँ (ग्राम ज्ञान संस्थान, दिव्यांग सेवा संस्थान) स्थापित करके बहुजन साहित्य की व्यापक पहुँच सुनिश्चित की।
    • उनका यह योगदान साहित्य और समाज के बीच सतत संवाद और नव चेतना का माध्यम बनता है।

4.     आलोचकों और विद्वानों द्वारा मान्यता

    • समकालीन आलोचक उन्हें केवल कवि के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और बहुजन चेतना का संवाहक मानते हैं।
    • इस दृष्टि से उनका योगदान हिंदी साहित्य में स्थायी और मार्गदर्शक प्रभाव डालता है।

(ग) भविष्य की संभावनाएँ

1.     नई पीढ़ी का नेतृत्व

    • गोलेन्द्र पटेल की शैली और दृष्टि नई पीढ़ी के कवियों और लेखकों को सृजन, बहुजन चेतना और सामाजिक न्याय की दिशा में प्रेरित करती रहेगी।

2.     समकालीन साहित्य में स्थायित्व

    • उनका साहित्य केवल वर्तमान में प्रासंगिक नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ का स्थायी स्रोत बनेगा।

3.     बहुजन साहित्य की वैश्विक पहुँच

    • उनकी कविताएँ और रचनाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुँच चुकी हैं।
    • इससे बहुजन चेतना और समाज सुधार के विचार वैश्विक साहित्यिक संवाद में भी शामिल होंगे।

निष्कर्ष

गोलेन्द्र पटेल का समकालीन साहित्य में स्थान केवल उनकी कविता और आलोचना के कारण नहीं, बल्कि उनके सामाजिक दृष्टिकोण, बहुजन चेतना और युवा पीढ़ी पर प्रभाव के कारण भी है।

  • वे युवा कवियों के लिए प्रेरक,
  • बहुजन साहित्य की धारा के संवाहक, और
  • सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक चेतना के वाहक हैं।

उनकी रचनाएँ और संस्थागत कार्य यह सुनिश्चित करते हैं कि गोलेन्द्र पटेल का प्रभाव न केवल वर्तमान में, बल्कि आने वाली पीढ़ियों में भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक रहेगा।

13. उपसंहार

गोलेन्द्र पटेल का जीवन और काव्य केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है; यह समकालीन हिंदी साहित्य और सामाजिक चेतना का ऐतिहासिक योगदान है। उनका व्यक्तित्व बहुजन चेतना, सामाजिक न्याय और साहित्यिक उत्कृष्टता का सम्मिलित प्रतीक है। उपसंहार में हम उनके जनकवि के रूप में विरासत और हिंदी साहित्य एवं समाज में दीर्घकालिक महत्व को समझ सकते हैं।

(क) जनकवि के रूप में उनकी विरासत

1.     जनसरोकार और बहुजन दृष्टि

    • गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ और रचनाएँ समाज के हाशिये पर पड़े लोगों के जीवन की वास्तविकता को सामने लाती हैं।
    • उनका साहित्य केवल साहित्यिक सृजन नहीं, बल्कि जन-जीवन और बहुजन चेतना का दर्पण है।
    • कल्किअंबेडकरगाथापद और नारी जैसी रचनाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि वे सदाबहार जनकवि हैं, जिनकी कविताएँ पीढ़ियों तक लोगों को सचेत और जागरूक करती रहेंगी।

2.     सृजन और सामाजिक आंदोलन का समन्वय

    • उन्होंने कविताओं, नाटकों और निबंधों के माध्यम से केवल कला का प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि सामाजिक जागरूकता और बहुजन अधिकारों का संदेश फैलाया।
    • उनके काव्य और कार्य जनमानस में समानता, न्याय और करुणा की भावना विकसित करने का माध्यम बने।

3.     संस्थागत योगदान

    • ग्राम ज्ञान संस्थान और दिव्यांग सेवा संस्थान जैसी पहलों ने उनके साहित्यिक दृष्टिकोण को व्यावहारिक सामाजिक कार्य में बदल दिया।
    • यह विरासत केवल काव्यात्मक नहीं, बल्कि जीवंत और क्रियात्मक भी है।

(ख) हिंदी साहित्य और समाज में दीर्घकालिक महत्व

1.     समकालीन साहित्य में प्रभाव

    • गोलेन्द्र पटेल ने आधुनिक हिंदी साहित्य में बहुजन चेतना, लोकधर्मिता और सामाजिक न्याय को एक सशक्त स्वर दिया।
    • उनकी कविताएँ युवा कवियों के लिए मार्गदर्शक और सृजनात्मक प्रेरणा हैं।
    • आलोचक उन्हें ‘दूसरा कबीर’ और ‘संत तुकाराम का पुनर्जन्म’ कहकर समकालीन साहित्य में उनके स्थायी प्रभाव को मान्यता देते हैं।

2.     सामाजिक चेतना का संवाहक

    • उनके कार्य ने साहित्य को केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन और न्याय की दिशा में सक्रिय साधन बना दिया।
    • ग्रामीण और हाशिये के वर्ग के लिए उनका योगदान यह दिखाता है कि साहित्य और समाज का तालमेल संभव है।

3.     भविष्य के लिए प्रेरणा

    • उनकी कविताएँ, काव्यपाठ और संस्थागत कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए सामाजिक चेतना और बहुजन सशक्तिकरण का मार्गदर्शन हैं।
    • हिंदी साहित्य में उनका योगदान दीर्घकालिक रहेगा, क्योंकि उन्होंने सृजनात्मकता, सामाजिक न्याय और मानवता के मूल्यों को स्थायी रूप से स्थापित किया।

(ग) समग्र मूल्यांकन

गोलेन्द्र पटेल का जीवन और काव्य यह दर्शाता है कि साहित्य केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि समाज और मानवता का दर्पण और परिवर्तन का माध्यम भी हो सकता है।

  • वे जनकवि के रूप में जनमानस की आवाज़ हैं।
  • उनका साहित्य हिंदी भाषा, बहुजन चेतना और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ता है।
  • उनकी काव्य-दृष्टि, सामाजिक सेवा और संस्थागत योगदान उन्हें समकालीन हिंदी साहित्य और समाज में एक स्थायी और प्रेरणादायक स्थान देते हैं।




अध्येता: अरविंद पटेल

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