(डॉ महेंद्र प्रसाद कुशवाहा, डॉ. कमलेश वर्मा, प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल, प्रो. विजय बहादुर सिंह, श्री मदन कश्यप, डॉ . आरती निर्मल, डॉ दीनानाथ मौर्य)
1. महामारी और कविता हिंदी आलोचना की अष्टाध्यायी है -- डॉ. कमलेश वर्मा
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हिंदी के सुपरिचित कवि -आलोचक श्रीप्रकाश शुक्ल द्वारा लिखित पुस्तक 'महामारी और कविता 'के लोकार्पण सह परिचर्चा में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में हिंदी के वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने कहा कि इतिहास गतिशील होता है और यह पुस्तक अपने समय के महामारी के इतिहास को दर्ज करती है । इस पुस्तक में श्रम की संस्कृति के साथ मौलिक प्रतिमान स्थापित हुए हैं । यह पुस्तक गंभीर काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन के साथ आज की कविता को रचाने का उपक्रम है । कार्यक्रक की अध्यक्षता कर रहे हिंदी विभागाध्यक्ष व प्रमुख ,कला संकाय का ही. वि .वि .प्रो. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि यह पुस्तक महामारी की यात्रा की सुखद अनुभूति है । इस पुस्तक के केंद्र में भारतीय और पाश्चात्य विद्वान महत्वपूर्ण दस्तावेज के रूप में उपस्थित हैं ।महामारी और कविता पुस्तक के लेखक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने पुस्तक पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यह पुस्तक महामारी के मंगल की पुस्तक न हो कर महामारी की मर्दन है ।यह पुस्तक संकट की सर्जना रही है ।जीवित मनुष्यों मनुष्यों के संवेदना को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करती है उन्होंने कहा कि यह पुस्तक पुरखों के स्मरण का केंद्र विंदु है उन्होंने कहा कि हमारे पुरखे कैसे अपने समय की महामारी के चिता में जलते रहे लेकिन अपने को धूमिल नहीं करने दिए । इस पुस्तक में ईश्वर प्रश्नांकित होते दिखाई देते हैं और इसमें निरीश्वरता का गहरा भावबोध है । महामारी पर अपनी बात को रखते हुए प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि इस महामारी को राज्य की नजरिये से नहीं मनुष्यों की नजरिये से देखता हूँ । आगे उन्होंने कहा कि महामारी एक उद्योग है मैं इसे उद्योग बनने के पहले उद्यम के रूप में लिया है ।
विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ .कमलेश वर्मा ने अपनी बात को रखते हुए कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ल जी की यह पुस्तक महामारी के आधार पर कविता का मूल्यांकन करती है। कविता के भीतर मध्यकालीन परिवेश का तलाश करती है ।उन्होंने कहा कि यह पुस्तक हिंदी आलोचना की नयी सैद्धान्तिकीय है।उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण बात कहा कि हिंदी आलोचना की यह पुस्तक अष्टाध्यायी है क्योंकि इसमें आठ अध्याय हैं । डॉ कमलेश वर्मा ने कहा कि इस पुस्तक को आगे प्रस्थान ग्रन्थ के रूप में याद किया जायेगा । इस पुस्तक में सैद्धांतिक आलोचना और व्यवहारिक आलोचना दोनों पक्षों को रखने का सफल प्रयास है।आगे उन्होंने कहा कि ईश्वर की सत्ता पर पुनर्विचार करने की ऒर संकेत करती है ।जो बड़ी सत्ताएं हैं ईश्वर ,सरकार और विज्ञान इन तीनो सत्ताओं को महामारी के सामने संकुचित होना पड़ा ।
विशिष्ट वक्ता डॉ . आरती निर्मल ने कहा कि यह पुस्तक महामारी के समय की एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है उन्होंने होमर की इलियट में दर्ज महामारी प्लेग का जिक्र किया ।साथ ही कई पाश्चात्य विद्वानों को इस पुस्तक से जोड़ के देखा।डॉ आरती निर्मल ने कहा कि जब कोई त्रासदी जन्म लेती है तो सामाजिक ,आर्थिक ,धार्मिक , आध्यत्मिक और शैक्षणिक गतिविधियों को पुनः पारिभाषित करने की जरुरत होती है उन्होंने कहा कि यह पुस्तक विषम परिस्थितियों में संघर्ष करने की सीख देती है ।
विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ दीनानाथ मौर्य ने कहा कि जब कभी महामारी की बात होगी यह पुस्तक बार - बार दोहराई जायेगी उन्होंने कहा कि यह पुस्तक कविता और आपसी संबंधों का गठजोड़ की भूमिका है ।यह पुस्तक महामारी की निरंतरता की खोज करती है ।पुस्तक सह लेखक परिचय देते हुए युवा आलोचक डॉ विंध्याचल यादव ने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ल बालू में भी प्रसव धर्मिता को देखते हैं । डॉ विंध्याचल यादव ने मध्यकालीन परिवेश पर बात करते हुए तुलसीदास और रैदास के समय के महामारी का उल्लेख किया । आधुनिक हिंदी कविता के कई महत्वपूर्ण कवियों खास कर निराला और उनकी तोड़ती पत्थर कविता को केंद्र में रख कर इस पुस्तक के महत्व को रेखांकित किया । डॉ प्रभात मिश्र ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि यह पुस्तक प्रकृति और मनुष्य के बीच के संतुलन की उपज है ।इस पुस्तक को महामारी के कई गहरे संदर्भो से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि महामारी और कविता मनुष्य के सामाजिक सरोकारों सर्जना करती है ।
कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ महेंद्र प्रसाद कुशवाहा ने किया । धन्यवाद ज्ञानपन डॉ विवेक सिंह ने किया ।कार्यक्रम में प्रो चंपा सिंह ,प्रो वशिष्ठ अनूप ,प्रो आशीष त्रिपाठी ,प्रो प्रभाकर सिंह , प्रो नीरज खरे ,प्रो कृष्णमोहन सिंह ,डॉ निलय उपाध्याय ,डॉ रविशंकर सोनकर ,डॉ सत्यपाल ,डॉ हरीश कुमार ,उमेश गोस्वामी ,आर्यपुत्र दीपक ,प्रतीक त्रिपाठी ,सोनू शर्मा ,राकेश पांडेय ,भीम कन्नौजिया , दिवाकर , जुही ,रंजना और हिन्दी विभाग के तमाम छात्र /छात्राएं उपस्थित रहें।
©अमरजीत राम
(असिस्टेंट प्रोफेसर, कवि व लेखक)
2.
परिवेशगत संलग्नता का प्रमाण है 'महामारी और कविता': मदन कश्यप
बीएचयू स्थित हिंदी विभाग के सभागार में महत्वपूर्ण कवि एवं आलोचक, भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक एवं आचार्य प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल की आलोचना पुस्तक -'महामारी और कविता कोरोजीविता से कोरोजयता तक ' पर लोकार्पण सह परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता कला संकाय प्रमुख प्रो. विजय बहादुर सिंह ने की।
आरंभ में कुलगीत प्रस्तुति के बाद अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि यह पुस्तक महामारी की यात्रा में सुखद अनुभूति है। सत्ता बड़ी क्रूर होती है जो अवसर की तलाश कर लेती है। कवि का दायित्व हो जाता है कि वह स्थितियों को सामने रखे। पुस्तक भारतीय और पाश्चात्य दोनों दृष्टिकोण को स्थापित करती है।
लेखक सह पुस्तक परिचय देते हुए युवा आलोचक डॉ. विंध्याचल यादव ने कहा कि पुस्तक महामारी में साथ खड़े होकर देखने की कोशिश है। लेखक इस पुस्तक के माध्यम से त्रासदी के पक्ष में खड़ा होता है। यह भक्ति आंदोलन, छायावाद और समकालीन कविता पर महत्वपूर्ण टिप्पणी है।
पुस्तक पर आत्मवक्तव्य देते हुए प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि यह पुस्तक महामारी के मंगल नहीं बल्कि महामारी के मर्दन की पुस्तक है। यह संकट में सर्जना का प्रमाण रही है और मेरे लिए पुरखों के प्रेरणा का आधार भी। हमारे पुरखों ने जलती चिताओं के बीच भी जीवन के उत्साह को जिस तरह धूमिल नहीं होने दिया, पुस्तक के माध्यम से मेरी भी यही कोशिश रही है। पुस्तक के रचना की तात्कालिक प्रेरणा मदन कश्यप की कविता की तीन पंक्तियों से मिली।
प्रो. शुक्ल ने कहा कि यह पुस्तक राज्य के नजरिए से नहीं, मनुष्य के नजरिए से देखने की कोशिश है। पुस्तक के शब्दगत संरचना में समकालीनता जरूर है किंतु अर्थगत बहुलता में यह चिरकालिक है। प्रो. शुक्ल ने कहा कि उनकी यह पुस्तक महामारी को उद्योग बनने के पहले उसके जीवन को दर्ज करने की कोशिश है। यह उस उद्यम की शिनाख्त करती पुस्तक है। पुस्तक महामारी के जिस उच्च तापमान पर जाकर लिखी गई है वह बहुत पककर निकली है।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता, हिंदी के प्रसिद्ध कवि मदन कश्यप ने कहा कि हिंदी में कविता को समय और परंपरा से जोड़कर लिखी जाने वाली यह महत्वपूर्ण पुस्तक है। जिसमें चौथी सदी के यूनान के महामारी की त्रासदी से लेकर समकालीन त्रासदी तक कई स्थापनाएं हैं। हिंदी में इस तरह के सैद्धांतिक निर्माण का यह पहला प्रयास है। इस धारा की यह गंगोत्री बनी रहेगी। पुस्तक में परिवेशगत संलग्नता है, आज की कविता के नए प्रतिमानों को रचने का उपक्रम है यह पुस्तक। पहली बार प्रकृति की सत्ता ईश्वर की सत्ता से बड़ी हुई है। पुस्तक में प्रकृति को समझने के संकेत मौजूद हैं।
विशिष्ट वक्तव्य देते हुए अंग्रेजी विभाग बीएचयू में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आरती निर्मल ने कहा कि बिना संकट के सृजन संभव नहीं। लेखक ने पुस्तक में हिंदी के महत्वपूर्ण कवियों के साथ नीत्से, कामू, डेफो जैसे पाश्चात्य लेखकों का भी उल्लेख किया है जो आगे शोध में महत्वपूर्ण साबित होगा। पुस्तक में गद्य की भाषा में पद्य का विश्लेषण है और एक आलोचक की दृष्टि भी। आपदा के काल में ये आज के परिवेश पर महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
राजकीय महाविद्यालय सेवापुरी के हिंदी विभाग के अध्यापक डॉ. कमलेश वर्मा ने कहा कि लेखक ने महामारी के आधार पर कविता के अध्ययन की नई पद्धति दी है। यह हिंदी आलोचना में महामारी और कविता के रिश्ते की अष्टाध्यायी है। आगे चलकर महामारी और कविता पर जब भी बात होगी पुस्तक को प्रस्थान रूप में देखा जाएगा।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय , प्रयागराज के हिंदी विभाग में कार्यरत डॉ. दीनानाथ मौर्य ने कहा कि भय के बीच साहित्य मनुष्यता की बात करता है। मनुष्य के होने की, मनुष्यता की जो बात नज़ीर की कविता में है वह इस पुस्तक में मिलती है। महामारी के सन्दर्भ में यह पुस्तक एक जातीय पंरपरा की खोज है। यह महामारी के सन्दर्भ से निरंतरता की खोज करती है।
कार्यक्रम में सेतु प्रकाशन समूह विशेष सहयोगी रहा। स्वागत वक्तव्य हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ प्रभात मिश्र ने दिया। संचालन एवं संयोजन बीएचयू हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रो. डॉ. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा ने किया।धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ विवेक सिंह ने दिया।
©जूही त्रिपाठी
(शोधार्थी, भोजपुरी अध्ययन केंद्र, बीएचयू)
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
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