( तस्वीर है, कवि व लेखक : वसंत सकरगाए)
1).
गोलेन्द्र पटेल
छात्र, बीएचयू
खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली (उत्तर प्रदेश)
दिनांक : 22-01-2022
आदरणीय वसंत जी,
आज सवेरे से मेरे यहाँ बेहद घना कोहरा रहा। गलन बहुत है। इंद्रदेव अपने में प्रसन्न हैं। दिनभर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में मित्रो के साथ व्यस्त रहा। कोविड के नियमों का पालन करते हुए। बनारस की यात्रा करके जैसे ही मैं अपने गाँव की गली के एक मोड़ पर पहुंचा तो साइकिल की घंटी के बजाय मोबाइल बजने लगा। देखा आपका नंबर है और समय शाम 5:35 बजे हैं। आपसे कुछ बातें हुईं। अच्छा लगा। मैंने दोपहर में आपकी ताज़ी कविता "चिड़िया-विमर्श" पढ़ी है। इसमें कल्पना और यथार्थ के संयोजन का सौंदर्यशात्र देखते ही बन रहा है। वास्तव में आप नैसर्गिकता के बचाने की नखत की सच्ची कविता रचे हैं। (निस्संकोच-निर्भय कहीं भी बैठ जाती हो /और बिना इतराये जब/विचरती हो सारा आकाश/सचमुच /तुम बहुत सुंदर लगती हो चिड़िया...) बहरहाल रास्ते में ही बारिश की वजह से थोड़ा भींग गया हूँ। आजकल मैं गुरुवर श्रीप्रकाश शुक्ल से भेंट स्वरूप प्राप्त हुईं पुस्तकों का अध्ययनानुशीलन कर रहा हूँ। इस वक्त 'केदारनाथ अग्रवाल और रामविलास शर्मा के पत्रों का संकलन' "मित्र संवाद" को पढ़ा रहा हूँ और सोच रहा हूँ कि "ई-पत्र" नामक कोई साहित्यिक ब्लॉग शुरू कर दूँ। ताकि मैं अपने आत्मीय रचनाकारों को जो पत्र लिखूँ। उन तक तुरंत पहुंचे। जैसे बिजली की चमक कवि की चेतना तक पहुँचती है। खैर, खाने के समय चाय पी रहा हूँ मैं। मुझे लग रहा है कि कविता की केतली में चेतना की चाय गर्म है और आप प्रेम के प्याले में उझिल रहे हैं। बाकी सब ठीक है।
आपका
गोलेन्द्र पटेल
सुन्दर पत्र
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रिय अनुज
ReplyDeleteपत्र लेखन भी एक सृजन ही है. अच्छा है
ReplyDelete