"परिकथा"वाले अलग से युवा लेखन अंक निकालते रहे हैं।अब उनकी पॉलिसी का पता नहीं।लेखकगण विषमता अन्याय शोषण आदि का विरोध काग़ज़ातों पर करते हैं ताकि सनद रहे और वक़्त पर काम आये।अच्छे वेतन की बहुत अच्छी नौकरी पा जाने पर चाय की दुकानों पर बैठने से प्रतिरोध की प्रेरणा मिलती है! किसी और जगह के जुटान से भी क्रांतिकारी विचार जन्म ले सकते हैं।
छवि निर्माण भर का अध्ययन-अधपका पका लेखन-प्रकाशन पत्रिकाओं पुस्तकों के रूप में शुरू में बरसों तक निश्शुल्क सेवा-छवि पुख़्ता होने पर धीमी गति से नगदीकरण-विश्वविद्यालयों सरकारी कमेटियों लिटफेस्ट आदि में न्यौता पाने का अटूट सिलसिला-संपर्क सूत्र सशक्त हों तो साहित्य के छोटे और मोटे इनाम भी मिलते हैं-पद क़द बड़ा हो जाने पर देश विदेश में साहित्यिक पर्यटन के अनेक सुअवसर सुलभ हो सकते हैं!
अभावों दु:खों की कलात्मक प्रस्तुति करनेवाले युवा रचनाकारों का भारत जैसे देश में बढ़िया स्कोप है!विश्वगुरु बन जाने पर साहित्यिक रणनीति नये सिरे से बनानी पड़ेगी। साहित्यकार को इतने पैसे तो कमाने चाहिए कि उसकी पुस्तकें रोशनी पा सकें!समझदार को अनुभवी गुरुजन और भी उन्नतिशील होने के टिप्स पात्रतानुसार दे सकते हैं!-वाचस्पति, वाराणसी.
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