टेंगरा और सिंघी का डंक//
सिधरी बेचारी सीधी-साधी मछली है
आसानी से फँस जाती है काँटे में
कबई-सउरी-पेहिना-पोठिया-गरई-गरचुनी-गोयजी
मुंगरी-रेवा-रोहु-झींगा-नैनी-कमलकाट-भाँकुड़-बामी आदि
ये सब चालाक हैं
फिर भी
ताल-तलई-तालाब-बउली-गड़ही-गुच्चा-नहर-नाली-नाला-नदी...
और धान के खेत में
इन्हें पकड़ते हुए शिकारियों को देखता हूँ
जो कछुआ और केकड़ा को भी नहीं छोड़ते
पर वे टेंगरा और सिंघी से डरते हैं
क्योंकि इनके पास डंक होता है
डंक में विष
यही विष इन्हें जाति से बाहर कराता है
और विशेष बना देता है
आज के शिकारी दोड़हा के साथ साथ इन्हें भी
अपना भोजन बनाते हैं
किसी ने ठीक ही कहा कि
मछलियाँ मनुष्य का आहार होती हैं
इन्हें वे खाते हैं
पर मुझ जैसे अनेक शाकाहारी घिन्नाते हैं
दरअसल घिन्नाना मछलियों के प्रति दया नहीं
बल्कि हमारी मनुष्यता की आवाज़ है
जिस पर हमें नाज़ है
हाँ, मैं कह सकता हूँ
कि यह भीतर की पुकार है
मुझे नदी से बहुत प्यार है
मछली के साथ साथ
नदियों का शिकार करने वाले भी हो गये हैं
मैं डंक मारना चाहता हूँ
टेंगरा और सिंघी की तरह
नदी के शिकारियों को
मैं यह भी जानता हूँ
कि वे बहुत भयानक हैं
उनके पेट में पच रही हैं नदियाँ
मछलियों की तरह
लेकिन मैं उनके पेट को चीरकर
अधपची नदियों को बाहर निकालना चाहता हूँ
जल्दी से जल्दी
एक सनकी डॉक्टर की तरह।
(©गोलेन्द्र पटेल
11/09/021)
मार्गदर्शन : गुरुवर सदानंद शाही
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