Friday, January 28, 2022

ई-पत्र : लोकधर्मी आलोचक चौथीराम यादव को गोलेन्द्र पटेल का पत्र

 

(तसवीर है, 81 साल के हुए लोकधर्मी परम्परा के प्रमुख प्रगतिवादी आलोचक व आत्मीय आचार्य प्रो. चौथीराम यादव जी की)

3.

गोलेन्द्र पटेल (छात्र ,बीएचयू) : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश, 221009 दिनांक : 29-01-2022

आदरणीय चौथीराम यादव जी,

                              सादर चरण स्पर्श गुरुजी! आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाएं! आशा है, आप सपरिवार स्वस्थ व सुरक्षित होंगे और साहित्य-सृजन के संदर्भ में कुछ नया सोच रहे होंगे।


पश्येम शरदः शतम् 

जीवेम शरदः शतम् 

बुध्येम शरदः शतम् 

रोहेम शरदः शतम् 

पूषेम शरदः शतम् 

भवेम शरदः शतम् 

भूयेम शरदः शतम् 

भूयसीः शरदः शतात् 

(अथर्ववेद, काण्ड १९, सूक्त ६७) 


27 अगस्त 2021 को दोपहर में बनारस की यात्रा मैं साइकिल से कर रहा था। आज फिर स्मृति में कर रहा हूँ। जो कि सुखद और यादगार है। इस दिन काशी के तीन आचार्यों से मेरी मुलाकात कुछ इस तरह होती है। पहले मैं गाँव से निकला और रामनगर के पुल से होते हुए गुरुवर सदानंद शाही जी के घर गया। गुरुवर के घर जाते वक्त नरिया तिराहे पर मुझे डाउट हुआ। पर पहुंच गया। वहाँ शाही जी से मेरी बातचीत हुई। कुछ बातें उपन्यासकार सुरेन्द्र वर्मा जी के संदर्भ में भी हुईं। वहीं पर सुरेंद्र वर्मा जी के वायरल ऑडियो क्लिप को सुना गया। गुरुवर को सुनना खुद को समृद्ध करना है। संभवतः शाही जी फोन पर किसी से तिब्बती साहित्य की चर्चा कर रहे थे। मुझे गुरुवर श्रीप्रकाश शुक्ल जी से भेंट करनी थी और 'तिमिर में ज्योति जैसे' कोरोनाकालीन कविताओं के संचयन को भी लेना था। शुक्ल जी भोजपुरी अध्ययन केंद्र आ गए थे। यह डेगू का समय था। कई आचार्यों को डेगू हुआ था। कुछ मित्र बात रहे थे कि हिंदी विभाग में गुरुवर रामाज्ञा राय जी को हुआ था। खैर, मैं अभी भी शाही जी के होमलाइब्रेरी में ही हूँ। वहाँ पिजड़े में कुछ सुंदर पंक्षियों को रखा गया है। उनकी चहचहाहट मुझे अच्छी लग रही थी। पर सोचता था इन्हें गुरुजी कैद किये हैं। कवि हृदय के लिए ठीक नहीं है। बहरहाल बात है उनके दाना-पानी की। सो, वह पिजड़े में था। पर उन्हें उड़ान के लिए आसमान ही चाहिए। सोचा, कह दूँ गुरुदेव! इन्हें आजाद कर दीजिए। पर मैं कुछ नहीं कहा। साहित्यिक चर्चाएं होती रहीं। तभी गुरुवर शाही जी मुझे अपने बालकनी में ले गये। फिर साहित्यिक सेंटर 'क कला दीर्घा' लंका (वाराणसी) के विषय में बातें हुईं। उस दिन वहाँ। कोरोनाकाल में सुश्री दीपशिखा पटेल जी के सुंदर चित्रकला की प्रदर्शनी थी और काव्यगोष्ठी भी। मुझे भी अपनी कविताओं का पाठ करना था। गुरुवर को बताया कि मुझे अभी गुरुवर चौथी राम यादव जी और गुरुवर श्रीप्रकाश शुक्ल जी से मिलना है। वहाँ से मैं कथाकार प्रेमचंद पर केंद्रित 'कर्मभूमि' पत्रिका अंक लेकर भोजपुरी अध्ययन केंद्र आया। फिर गुरुवर शुक्ल जी से मेरी बातचीत हुई। शुक्ल जी एक पेपर पर लोकधर्मी आलोचक चौथीराम जी के घर जाने का रफ़ग्राफ खींचें। जिसपर ढ़लान वाले मंदिर का जिक्र था। जब मैं चौथीराम जी के यहाँ जा रहा था। तब उनके यहाँ पहुँचने से पहले मैं ढ़लान वाले किसी और मंदिर के पास पहुंच गया। जब चौथीराम जी को फोन किया। तब तक गुरुदेव लाइव मीटिंग में व्यस्त हो चुके थे। मुझे दूसरा नंबर मिला। उस नंबर पर पुनः फोन किया। अंततः मैं चौथीराम जी के घर पहुँच गया। वहाँ मैम को 'तिमिर में ज्योति जैसे' (स. आ. अरुण होता जी) और 'प्रेमचंद पर केंद्रित कर्मभूमि' का अंक (स. आ. सदानंद शाही जी) को देकर 'क कला दीर्घा' सेंटर लंका लौट आया। चौथीराम जी के घर जब पहुंचा था तभी बुंदाबांदी बारिश हो रही थी। जैसे ही वहाँ से लौटा कुछ दूर बारिश तेज़ हो गई थी। मैं भीग गया। बहरहाल भीगना तो मेरी नियती है। बैग में पुस्तकें थीं। उन्हें भीगने से बचाने के लिए एक दुकान पर रुका मैं। वहाँ देखते देखते दो गज की दूरी किसी ट्रेन का डिब्बा महसूस होने लगा। नाक पर बैल वाला खोंचा मैं लगया था पर वहाँ टिक नहीं पाया। कुछ दूर दूसरे मकान के नीचे खड़ा हुआ। बारिश जब हल्की हुई। मैं नरिया से होते हुए लंका पहुंचा। वहाँ सड़क पर ठेहुनन भर पानी था। अचानक मेरे मुख से निकला कि 'बारिश में बनारस' कभी मत आना गोलेन्दर! मैं 'क कला दीर्घा' में पहुंचा तो वहाँ अग्रज आत्मीय कवि विहाग वैभव जी एवं अन्य लोगों से मेरी मुलाकात होती है।


मित्रो! गुरुवर चौथीराम यादव जी से मेरी मुलाकात अधूरी है। हाँ, बीच में फणीश्वरनाथ रेणु के शताब्दी वर्ष के दिन कबीरमठ में गुरुवर को खाना-वाना खिलाते वक्त सब्जी वगैरह मैं ही परोस रहा था। सोचा कि कह दूँ, गुरुदेव! उस दिन मैं ही आपके यहाँ आया था और आपसे भेंट नहीं हुई। बहरहाल गुरुजी मुझसे मिलने के लिए गुरुजी से अपनी इच्छा जाहिर की। यही मेरे लिए बहुत है। आपका आशीर्वाद यूहीं बना रहे। जल्द ही आपसे से मेरी मुलाकात होगी। 


आपका

गोलेन्द्र पटेल

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व्हाट्सएप नं. : 8429249326




Sunday, January 23, 2022

ई-पत्र : वाचस्पति को गोलेन्द्र पटेल का पत्र

 

                        【युवा कवि गोलेन्द्र पटेल और आ. वाचस्पति जी (वाराणसी)】

2.

गोलेन्द्र पटेल (छात्र ,बीएचयू) : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश, 221009 दिनांक : 24-01-2022

आदरणीय वाचस्पति जी,

                              सादर प्रणाम सर! आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! आशा है, आप सपरिवार स्वस्थ व सुरक्षित होंगे और साहित्य-सृजन के संदर्भ में कुछ नया सोच रहे होंगे। मेरे कुछ साहित्यिक साथी आपसे मिलने के लिए अपनी इच्छा जारी किये हैं। यहाँ एक नाम अपनी दीदी लेना चाहता हूँ जो कि बीएचयू की छात्रा रही हैं। नाम है प्रतिभा श्री मौर्य। आप 74  वर्ष की अवस्था में भी सृजन के संसार में सक्रिय हैं। आपकी यह सक्रियता हमारे लिए सदैव प्रेरणा रहेगी। मेरी सृजनात्मकता की शक्ति आप जैसे सहृदय मार्गदर्शकों की उक्ति ही है। जो सदैव मुझे नयी राह पर चलने के लिए प्रेरित करती है और साहस देती है।

काशी में कविता के पाठक व श्रोता हर गली,चौराहे व घाट पर मिलते हैं। मैं बहुत से लोगों से आपके विषय में सुना हूँ और गुरुवर श्रीप्रकाश शुक्ल की कविता 'अथ काशी प्रवेश' (बोली बात, पृ. 114) में भी आपके बारे में पढ़ा हूँ। बहरहाल आज कविता के पाठकों पर बातचीत करते हुए। मुझे कविता के संदर्भ में आपकी आगामी टिप्पणी याद आई। जो कि है कि "हालात की तह तक जाने की कोशिश से कविता बेहतर बन पाती है। जो सामने है उसके देखने-दिखाने मात्र से भी कविता बन जाती है पर बहुत देर तक टिकती नहीं। मामला "दृष्टि-दृष्टिकोण-अन्तर्दृष्टि"का है।"


पिछले सप्ताह से ही मौसम खराब है। मेरे यहाँ रोज रात में बारिश हो रही है। पगडंडियों पर कीचड़ है। गाँव की गलियों में पनारे की गंध है। सरसों फूली है। पहले की सरसों जिन पर की माहों लगे हुए थे। उनके लिए तो बारिश लाभदायक है पर जो गेहूं के खेत भर गए थे,सींचे गए थे। उनके लिए नुकसान ही नुकसान। मनुष्य प्रकृति को दूह रहा है और प्रकृति मनुष्य को। अभी सुबह का दस बजा है। मुझे बीएचयू जाना है।


पिछले दिनों आदरणीय शिव बाबू मिश्र जी से 'धरती' पत्रिका के विषय में मेरी बात हुई है। वे 'धरती' पत्रिका के प्रकाशन में सहयोगी कार्य करना प्रारम्भ किये हैं। जिसके संपादक आदरणीय श्री शैलेन्द्र चौहान जी की संपादकीय दृष्टि पर चर्चा हुई। दोनों लोग क्रमशः 62 व 64 साल के हैं। मिश्र जी थोड़ा संकोची भले ही हैं पर सहृदय मनुष्य हैं। दिलेर इंसान। कुछ न कुछ करते रहते हैं। वे कुछ वरिष्ठ अल्प-प्रचारित साहित्यकारों के अवदान को प्रस्तुत करने का महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। सर्वश्री धर्मपाल अवस्थी, सेवक वात्सायन, नक्श इलाहबादी और सुपरिचीत दलित साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य पर भी काम किये हैं। 2009 में श्री शैलेन्द्र चौहान जी के रचनाकर्म पर केंद्रित क्रमशः पत्रिका का एक विशेषांक भी संपादित किये हैं। मिश्र जी बातचीत के दौरान बार-बार आपका जिक्र कर रहे। मिश्र जी से बात कर के अच्छा लगा। 


मित्रगण गणतंत्र दिवस व सरस्वती पूजा की तैयारी में लगे हैं और मैं भी। मैं ठीक हूँ। स्वस्थ हूँ। सर! अपना हाल जरूर लिखिएगा। धन्यवाद!

आपका

गोलेन्द्र पटेल







Saturday, January 22, 2022

ई-पत्र : वसंत सकरगाए को गोलेन्द्र पटेल का पत्र

 

( तस्वीर है, कवि व लेखक : वसंत सकरगाए)

1).

गोलेन्द्र पटेल
छात्र, बीएचयू
                                       खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली (उत्तर प्रदेश)
दिनांक : 22-01-2022


आदरणीय वसंत जी,
               आज सवेरे से मेरे यहाँ बेहद घना कोहरा रहा। गलन बहुत है। इंद्रदेव अपने में प्रसन्न हैं। दिनभर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में मित्रो के साथ व्यस्त रहा। कोविड के नियमों का पालन करते हुए। बनारस की यात्रा करके जैसे ही मैं अपने गाँव की गली के एक मोड़ पर पहुंचा तो साइकिल की घंटी के बजाय मोबाइल बजने लगा। देखा आपका नंबर है और समय शाम 5:35 बजे हैं। आपसे कुछ बातें हुईं। अच्छा लगा। मैंने दोपहर में आपकी ताज़ी कविता "चिड़िया-विमर्श" पढ़ी है। इसमें कल्पना और यथार्थ के संयोजन का सौंदर्यशात्र देखते ही बन रहा है। वास्तव में आप नैसर्गिकता के बचाने की नखत की सच्ची कविता रचे हैं। (निस्संकोच-निर्भय कहीं भी बैठ जाती हो /और बिना इतराये जब/विचरती हो सारा आकाश/सचमुच /तुम बहुत सुंदर लगती हो चिड़िया...) बहरहाल रास्ते में ही बारिश की वजह से थोड़ा भींग गया हूँ। आजकल मैं गुरुवर श्रीप्रकाश शुक्ल से भेंट स्वरूप प्राप्त हुईं पुस्तकों का अध्ययनानुशीलन कर रहा हूँ। इस वक्त 'केदारनाथ अग्रवाल और रामविलास शर्मा के पत्रों का संकलन' "मित्र संवाद" को पढ़ा रहा हूँ और सोच रहा हूँ कि "ई-पत्र" नामक कोई साहित्यिक ब्लॉग शुरू कर दूँ। ताकि मैं अपने आत्मीय रचनाकारों को जो पत्र लिखूँ। उन तक तुरंत पहुंचे। जैसे बिजली की चमक कवि की चेतना तक पहुँचती है। खैर, खाने के समय चाय पी रहा हूँ मैं। मुझे लग रहा है कि कविता की केतली में चेतना की चाय गर्म है और आप प्रेम के प्याले में उझिल रहे हैं। बाकी सब ठीक है।

आपका 

गोलेन्द्र पटेल


तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव' के बहाने मनुष्यता की स्थापना : विनय विश्वा

 "तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव' के बहाने मनुष्यता की स्थापना"  "एक लंबी कविता है 'तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव&...