Monday, October 16, 2023

युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ (Yuva Kavi Golendra Patel Kee Kavitaen)

 युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की 13 कविताएँ :-

1).


*हम माटी के प्रेमी किसान हैं*

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गाय, बैल, ट्रैक्टर, थ्रैशर, खेत व खलिहान हमारी पहचान हैं

हमारे बेटे सरहद के जवान हैं

हमारी हथेलियों में कुदाल, खुरपी, फ़रसा व हँसिया के निशान हैं

हम माटी के प्रेमी किसान हैं।


हम धूल, धुआँ, कुआँ व जुआ के गान हैं

हमारे गीतों में गोभी, गन्ना, गेहूँ व धान हैं

हम इनसान के स्वाभिमान हैं

हम माटी के प्रेमी किसान हैं।


तुम्हारी दृष्टि में देव, हम क्यों प्रकृति के क़रीब हैं?

हम क्यों भूखे नंगे ग़रीब हैं?

हम क्यों अनपढ़, गँवार व नादान हैं?

हम माटी के प्रेमी किसान हैं।


हममें क्या कमी है? हमारी भाषा में नमी है

हमारी संस्कृति श्रम की कोख से जन्मी है

हम देश की आन बान शान हैं

हम माटी के प्रेमी किसान हैं।



2).




*मेरा दुःख मेरा दीपक है*

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जब मैं अपने माँ के गर्भ में था

वह ढोती रही ईंट

जब मेरा जन्म हुआ वह ढोती रही ईंट

जब मैं दुधमुंहाँ शिशु था

वह अपनी पीठ पर मुझे 

और सर पर ढोती रही ईंट


मेरी माँ, माईपन का महाकाव्य है

यह मेरा सौभाग्य है कि मैं उसका बेटा हूँ

मेरी माँ लोहे की बनी है

मेरी माँ की देह से श्रम-संस्कृति के दोहे फूटे हैं

उसके पसीने और आँसू के संगम पर

ईंट-गारे, गिट्टी-पत्थर,

कोयला-सोयला, लोहा-लक्कड़ व लकड़ी-सकड़ी के स्वर सुनाई देते हैं


मेरी माँ के पैरों की फटी बिवाइयों से पीब नहीं,

प्रगीत बहता है

मेरी माँ की खुरदरी हथेलियों का हुनर गोइंठा-गोहरा

की छपासी कला में देखा जा सकता है


मेरी माँ धूल, धुएँ और कुएँ की पहचान है

मेरी माँ धरती, नदी और गाय का गान है

मेरी माँ भूख की भाषा है

मेरी माँ मनुष्यता की मिट्टी की परिभाषा है

मेरी माँ मेरी उम्मीद है


चढ़ते हुए घाम में चाम जल रहा है उसका

वह ईंट ढो रही है

उसके विरुद्ध झुलसाती हुई लू ही नहीं, 

अग्नि की आँधी चल रही है

वह सुबह से शाम अविराम काम कर रही है

उसे अभी खेतों की निराई-गुड़ाई करनी है

वह थक कर चूर है

लेकिन उसे आधी रात तक चौका-बरतन करना है

मेरे लिए रोटी पोनी है, चिरई बनानी है

क्योंकि वह मजदूर है!


अब माँ की जगह मैं ढोता हूँ ईंट

कभी भट्ठे पर, कभी मंडी का मजदूर बन कर शहर में

और कभी-कभी पहाड़ों में पत्थर भी तोड़ता हूँ

काटता हूँ बोल्डर बड़ा-बड़ा

मैं गुरु हथौड़ा ही नहीं

घन चलाता हूँ खड़ा-खड़ा


टाँकी और चकधारे के बीच मुझे मेरा समय नज़र आता है

मैं करनी, बसूली, साहुल, सूता, रूसा व पाटा से संवाद करता हूँ

और अँधेरे में ख़ुद बरता हूँ दुख


मेरा दुख मेरा दीपक है!


मैं मजदूर का बच्चा हूँ

मजदूर के बच्चे बचपन में ही बड़े हो जाते हैं

वे बूढ़ों की तरह सोचते हैं

उनकी बातें 

भयानक कष्ट की कोख से जन्म लेती हैं

क्योंकि उनकी माँएँ 

उनके मालिक की किताबों के पन्नों पर 

उनका मल फेंकती हैं 

और उनके बीच की कविता सत्ता का प्रतिपक्ष रचती है।


मेरी माँ अब वही कविता बन गयी है

जो दुनिया की ज़रूरत है!



3).


खर जिउतिया पूजन

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एक माँ की स्मृति जीवित होती है

जीवित्पुत्रिका व्रत से

अनंत दुआएँ द्वार पर आती हैं

सभी संतानें साँपों से बच जाती हैं मुश्किल सफ़र में

विषम समय का विख सोख लेता है सूर्य

गाँव दर गाँव गूँजता है तूर्य


जगत पर टिमटिमाते जुगनुओं की रोशनी में

अढ़ाई अक्षरों के प्रेमपत्र को पढ़ती हैं किशोरियाँ

किलकारियों के कचकचाहटी स्वर में गाती हैं कजरियाँ


“सर्वे भवंतु सुखिनः’ सिद्धांत है हवा के होंठों पर

 ऐ सखी! सृष्टि में फूल मरता है

 पर उसका सौरभ नहीं

 कलियाँ कंठों-कंठ कानों-कान सुनती रहती हैं

 भ्रमरियों की गुनगुनाहट

और आहत तन-मन की आहट

मसलन ‘जीवन का राग नया अनुराग नया”


बाहर धूल भीतर रेत है

अंधेरी आँधियों में मणियों का मौन चमकना

साँप-साँपिन के संयोग का संकेत है

ओसों से बुझ रही है घास की प्यास

साथ छोड़ रहा है श्वास


पर, पेड़ को पता है

पत्तियों के पेट में जाग रही है भूख

कहीं नहीं है सुख

सूख रहा है ऊख


आश्विन-कृष्णा अष्टमी को

जीमूतवाहन जन्नत का वास छोड़कर पृथ्वी पर आते हैं

गरुड़ गगनगंगा में मलयावती के साथ नौका विहार करते हैं

जहाँ ढेर सारे किसान बादलराग गाते हैं


नयननीर की नदियों में शांति है

पर आँखों में क्रांति है

लालिमा बढ़ रही है

टूट रहा है विश्वास

रोष के रस से लबालब भरा है गिलास


गर्भवती अनुभूतियाँ जन्म दे रही हैं स्मृतियों को

जिन्हें जीउतिया माई अमरता का आशीर्वाद दे रही हैं 

स्मृतियों के जीवित रहने से मनुष्यता जीवित रहती है


खैर, यह कोरोना के विरुद्ध छत्तिस घंटों का महासंकल्प है 


इस वायरस-वर्ष ने प्रेम में नजदीकियों को नहीं,

दूरियों के तनाव को स्वीकार किया है

स्पर्श से दोस्ती में दरार पड़ रही है

कच्ची उम्र की बुभुक्षा लड़ रही है


पर्व को परवाह नहीं किसी के जीवन से

मृत्यु नहीं रुकती है किसी के रोकने से

नहीं रुकती हैं

कभी-कभी ख़ुद से ख़ुद की दूरियाँ बढ़ने से

दूरियों के बढ़ने से मन खिन्न है


गँवई शब्द मृत्यु की गंध को सूँघ रहे हैं

मरने से पहले एकत्र होकर

एक ही अगरबत्ती के धुएं को फेफड़े तक पहुँचा रहे हैं

डर के विरुद्ध


व्रतधारिन बूढ़ी औरतें  

नयी नवेली बहुओं को उपदेश दे रही हैं

कि उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद है उपवास


चील्होर था या उल्लू फुसफुसा रही है भीड़

परात का प्रसाद लौट रहा है

चूल्हे के पास


बच्चे हैं

कि गोझिया आज ही खाना चाहते हैं

खर व्रतधारिन समझा रही हैं

जिउतिया माई रात भर खईहन

हम सब सवेरे

(प्रसाद बसियाने पर शीघ्र शक्ति प्रदान करता है, वत्स!) 


बच्चे कह रहे हैं माई हमार हिस्सा हमें दे दे

नाहीं त रतिया में जिउतिया माई कुल खा जईहन

आज शायद ही छोटे बच्चे सो पाएंगे ठीक से

व्रत की बात हट रही है लीक से


यह लोकपर्व मातृशक्ति की तपस्या है!!



4).


*दूब*

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ओ ओस के आँसू!

विपरीत परिस्थिति में

मैं उगी

यों— चेहरे पर उनके लिए ऊब हूँ

मैं हरी दूब हूँ!!



5).



*तीर्थायन*

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सीर गोवर्धन से साबरमती का तीर्थायन

करते हुए

हमने जाना—“गाँधी के राम कौन हैं?

उन्हें चरखा किस संत ने दिया?

उन्होंने बुद्ध को कितना जिया?”



6).


*हिंदी*

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जब कोई बच्चा रोता है

उसकी माँ

उसे मना लेती है ;


हिन्दी हमारी माँ है

उसकी वर्णमाला

‘अ’ से ‘अनपढ़’ को अंत में

‘ज्ञ’ से ‘ज्ञानी’ बना देती है।


7).



*संतप्त क्रियाएँ*

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एक आत्मा चीख रही है

दूसरी चिल्ला रही है

तीसरी चोकर रही है

चौथी अरई दे रही है

पाचवीं ओरिया रही है

छठवीं गरिया रही है

सातवीं बर्रा रही है

इन संतप्त आत्माओं में किस की क्रिया सार्थक है?



8).


*बहन का मतलब*

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अंग्रेजी में ‘बहन’ को ‘सिस्टर’ कहते हैं

जिसका मशहूर मतलब है

‘स्वीट’, ‘इनोसेंट’, ‘सुपर’, ‘टैलेंटेड’, ‘एलिगेंट’ और ‘रिमार्केबल’


हिन्दी में बहन का पहला मतलब है

‘ब’ से ‘बज़्म’ है बहन 

‘ह’ से ‘हथौटी’ है बहन 

‘न’ से ‘नज़्म’ है बहन


बहन का दूसरा मतलब है

‘ब’ से ‘बल’ है बहन (भाई का)

‘ह’ से ‘हल’ है बहन (हर सवाल का)

‘न’ से ‘नल’ है बहन (पानी का)


बहन का तीसरा मतलब है

‘ब’ से बाप के लिए बधाई बन जाना 

‘ह’ से हक के लिए हथियार उठाना

‘न’ से नीच के लिए नाख़ून बढ़ाना


बहन! बहन का चौथा मतलब क्या है?

“दूसरे की बहन को अपनी बहन समझना!”

■ 


9).


*पहली कक्षा* (बाल कविता)

______________________________________


हम हर दिन पढ़ने जाते हैं 

हम सब यह गाते हैं

कलम के आगे झुकता है भाला

सबसे प्यारी है हमारी पाठशाला


हम पहली कक्षा के विद्यार्थी हैं

हमें याद करनी है गिनती

हमें याद करनी है वर्णमाला

सबसे प्यारी है हमारी पाठशाला


बोलो बच्चों एक साथ

जय जवान जय किसान जय विज्ञान


हम पहली कक्षा के विद्यार्थी हैं

हमें याद करना है राष्ट्रगान

हमें खोलना है दिमाग़ का ताला

सबसे प्यारी है हमारी पाठशाला


हम पहली कक्षा के विद्यार्थी हैं

हमें याद करनी हैं किताब की बातें

हमें बनानी है शब्दों की माला

सबसे प्यारी है हमारी पाठशाला


बोलो बच्चों एक साथ

जय हिन्द जय भारत!


10).


*हरियाली विहीन देश* (बाल कविता)

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वह देश हरियाली विहीन जंगल है, बच्चो!

जहाँ की सरकार शेरनी है और न्याय शेर

वह देश हरियाली विहीन जंगल है, बच्चो!

जहाँ अधिकार माँगने वाली जनता विषहीन बिरनी है

भेंड़ है, बकरी है, गाय है, भैंस है और हिरनी है

वह देश हरियाली विहीन जंगल है, बच्चो!

जहाँ नदी सड़क है और पहाड़ पोखरा

वह देश हरियाली विहीन जंगल है, बच्चो!

जहाँ हर घर प्लास्टिक के पेड़ पाये जाते हैं

वह देश हरियाली विहीन जंगल है, बच्चो!

जहाँ एक पौधा रोपते हुए कई बुद्धिजीवी तसवीर खींचाते है

वह देश हरियाली विहीन जंगल है, बच्चो!

जहाँ पंख के लिए पानी नहीं है और न ही चौपायों के लिए चारा

वह देश हरियाली विहीन जंगल है, बच्चो!

जहाँ हर पाँच साल पर गूँजता है मानवता का नारा।।



11).


*गुब्बारे* (बाल कविता)

______________________________________


मैं बचपन से बेचता हूँ

प्यारे-प्यारे गुब्बारे

मैं बेचता हूँ आसमान के तारे

मैं बेचता हूँ चुनाव के नारे

मैं बेचता हूँ बच्चों का खेलौना

मैं बेचता हूँ तरह-तरह का खेलौना

मैं बेचता हूँ खेलौना

ले लो ना, खेलौना ले लो ना।


मैंने यह कसम है खाई

ये गुब्बारे किस्मत के मारे बच्चे सारे

निःशुल्क ले सकते हैं भाई

आओ! आओ!

खेलौना देखो!

जो मनभाये ले लो

पढ़ो-लिखो और खेलो!


गुब्बारे रंग-बिरंगे प्यारे-प्यारे

इतने सारे मैं लेकर आया हूँ 

गुब्बारे ले लो! गुब्बारे ले लो!...



12).


*खिलौने* (बाल कविता)

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अच्छे खिलौने

बच्चों के व्यक्तित्व को निखारते हैं


खिलौने, सीखने की प्रक्रिया में सहायक होते हैं

अक्सर मेले में अमीर माँ-बाप कहते हैं

“अच्छे बच्चे खिलौनें लेने के लिए नहीं रोते हैं!”


और गरीब माँ-बाप कहते हैं

“बेटा! चेलो आगे, इससे बढ़िया खिलौना दिलाऊँगा!”

जब कि सच यह है 

कि गरीबी बच्चे को हामिद बना देती है

हाँ, वही हामिद

जिसका चिमटा व्यवस्था को चुनौती देता है

जो कथा-साहित्य में अमर है

सुनो! बाँसुरी का कितना सुंदर स्वर है! 


देखो! ये चूल्हे पर चढ़े हुए कुकर सीटी मारते हैं

अच्छे खिलौने

बच्चों के व्यक्तित्व को निखारते हैं!



13).


*हमें चाहिए* (बाल कविता)

______________________________________


हम मनुष्य हैं

हम देश हैं

हमें चाहिए

‘अ’ से अधिकार 

हमें चाहिए

‘क’ से किसान 

हमें चाहिए

‘ज’ से जवान

हमें चाहिए

‘व’ से विज्ञान

हमें चाहिए

‘स’ से संविधान

हमें चाहिए

‘ह’ से हक

हमें चाहिए

‘ज्ञ’ से ज्ञान

हम मनुष्य हैं

हम देश हैं!

नाम : गोलेन्द्र पटेल (लोकधर्मी कवि व लेखक)

संपर्क :

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।

पिन कोड : 221009

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com

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